रिलेशनशिप- 90% एनर्जी तो एक्सपेक्टेशन में बर्बाद हो रही:  ज्यादा अपेक्षा रखने के नुकसान, एक्सपर्ट से जानें कैसे बनें आत्मनिर्भर
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रिलेशनशिप- 90% एनर्जी तो एक्सपेक्टेशन में बर्बाद हो रही: ज्यादा अपेक्षा रखने के नुकसान, एक्सपर्ट से जानें कैसे बनें आत्मनिर्भर

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1 घंटे पहलेलेखक: शशांक शुक्ला

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शांति की शुरुआत वहीं से होती है, जहां अपेक्षाएं खत्म हो जाती हैं।“

– भगवान बुद्ध

गाढ़े वक्त में दोस्त की मदद की थी। सोचा था, मेरे हर सुख-दुख में वो भी साथ खड़ा रहेगा। जब मुझ पर मुसीबत आएगी तो वो बिना मांगे ही खुद आगे बढ़कर मदद का हाथ बढ़ाएगा, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। उम्मीद तो टूटी ही, दिल भी टूट गया।

इस अपेक्षा के साथ स्टार्टअप की शुरुआत की थी कि अगले पांच सालों में कंपनी यूनीकॉर्न बन जाएगी और अगले दस सालों में सफलता कदम चूमेगी। लेकिन जैसा सोचा और चाहा था, वैसा कुछ भी नहीं हुआ।

ऐसी अनगिनत कहानियां हैं, उम्मीदों के टूटने, अपेक्षाओं के अधूरे रह जाने की।

अमेरिकन स्प्रिचुअल टीचर फ्रांसेज कू अपनी किताब ‘द पावर ऑफ जीरो एक्सपेक्टेशंस, 7 स्टेप्स टू फ्रीडम फ्रॉम डिसअपॉइंटमेंट’ में लिखती हैं कि हमारी 90 फीसदी जिंदगी तो एक्सपेक्टेशन यानी दूसरों से अपेक्षा में ही बर्बाद हो रही है।

हम अपने परिवार से, दोस्तों से, रिश्तों से, ऑफिस के सहकर्मियों से, बॉस से हमेशा एक्सपेक्टेशंस रखते हैं। प्यार, दोस्ती, मदद और लॉयल्टी की उम्मीद रखते हैं। वह उम्मीद, जो अधिकांश बार टूटती ही है।

ये ऐसी बात है, जिससे शायद हर कोई कनेक्ट कर सकता है। हर कोई इसमें अपने अनुभवों का अक्स देख सकता है। लेकिन सवाल ये है कि उम्मीदों और अपेक्षाओं के इस बोझ से निजात कैसे मिले। तो चलिए, रिलेशनशिप कॉलम में आज इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं।

उम्मीदों का पहाड़ जब भरभराकर गिरता है

जब हमारी उम्मीदें टूटती हैं, तो गहरी तकलीफ पहुंचती है। खासतौर से, जब कोई करीबी या दोस्त हमारी उम्मीद तोड़ता है तो हम छला हुआ महसूस करते हैं। ऐसे में हमारे मन में निराशा, गुस्सा और दुख की भावना घर कर सकती है।

ऐसी स्थिति में हम खुद को अपंग महसूस करते हैं। हमें लगता है कि हमसे ही गलती हुई है। हालांकि, समय के साथ हम इस बात को समझ जाते हैं कि हर किसी से उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। साथ ही किसी की सारी उम्मीदें नहीं पूरी हो सकती हैं।

अधिक अपेक्षाएं रखने से क्या नुकसान होते हैं?

जब हमारी अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो इससे मन में निराशा और हताशा की भावना घर कर सकती है। हम खुद को विक्टिम की तरह महसूस करने लगते हैं।

जब हम किसी से कोई उम्मीद रखते हैं, तो हम चाहते हैं कि सामने वाला उसे पूरा करे। ऐसा नहीं होने से हम अधिक परेशान हो जाते हैं। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं।

आइए ग्राफिक्स को विस्तार से समझते हैं।

अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं

सबसे आम समस्या यह है कि जब आप बहुत अधिक अपेक्षाएं रखते हैं, तो वास्तविकता अक्सर उससे मेल नहीं खाती है। इससे असंतोष की भावना पैदा होती है।

निराशा होती है

जब अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो आप निराश महसूस करते हैं। यह निराशा आपके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

स्ट्रेस बढ़ता है

अपेक्षाओं को पूरा करने का दबाव तनाव और चिंता का कारण बन सकता है। यह तनाव आपके शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है।

भावावेग और व्यग्रता महसूस होती है

बहुत अधिक अपेक्षाएं भावनात्मक अस्थिरता और बेचैनी का कारण बन सकती हैं। आप चिड़चिड़े, उदास या चिंतित महसूस कर सकते हैं।

खुद को विक्टिम की तरह महसूस करते हैं

जब अपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं तो तकलीफ होती है। ऐसे में आप खुद को विक्टिम की तरह महसूस कर सकते हैं। आपको लगता है कि पूरी दुनिया या लोग आपके खिलाफ खड़े हैं।

निराशावादी हो सकते हैं

लगातार निराशा का अनुभव करने से आप निराशावादी बन सकते हैं। आप अपने भविष्य को लेकर नेगेटिव बातें सोचने लगते हैं। इससे आपका नजरिया नकारात्मक हो जाता है और आपको लगने लगता है कि भविष्य में भी चीजें नहीं सुधरने वाली हैं।

बाहरी स्थितियों को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं

जब आप बहुत अधिक अपेक्षाएं रखते हैं, तो आप उन स्थितियों को नियंत्रित करने की कोशिश कर सकते हैं, जो आपके नियंत्रण में नहीं हैं। यह एक व्यर्थ प्रयास है जो केवल अधिक तनाव और निराशा का कारण बनता है।

भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल कप्तान महेंद्र सिंह धोनी से एक सवाल पूछा गया था कि आप इतने शांत कैसे रह लेते हैं।

इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि मैं उन्हीं चीजों को कंट्रोल करने की कोशिश करता हूं, जो चीजें कंट्रोल की जा सकती हैं। जो चीजें मेरे बस में नहीं हैं, मैं उन्हें कंट्रोल करने की कोशिश नहीं करता हूं।

वे बताते हैं कि मैच जीतना या हारना मेरे बस नहीं है, किसी खिलाड़ी से परफॉर्म करवाना मेरे बस में नहीं है। हालांकि, प्लानिंग करना, फील्ड सेट करना जैसी चीजें मेरे कंट्रोल में हैं और मैं उन्हीं से परिणाम को प्रभावित करने की कोशिश करता हूं।

उम्मीद टूटने पर खुद को कैसे संभाले?

हमें अपेक्षाएं कम रखनी चाहिए क्योंकि जब उम्मीदें नहीं होंगी, तो निराशा भी कम होगी। साथ ही, अपनी मेंटल, फिजिकल और इमोशनल हेल्थ पर ध्यान देना चाहिए। इससे जीवन के उतार-चढ़ाव को सही तरीके से संभालने में मदद मिलती है। आइए इसे ग्राफिक से समझते हैं।

खुद पर करें भरोसा

साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता और अमेरिकी गीतकार बॉब डिलन कहते हैं कि जीवन में सबसे भरोसेमंद व्यक्ति हम खुद ही हैं।

हमें खुद पर विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि आखिर में, हम ही अपनी सच्चाई और रास्ते को जानते हैं। दूसरों से उम्मीद नहीं करनी चाहिए। दूसरों से उम्मीद पालना निराशा की पहला कदम है।

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