चेतन भगत का कॉलम:  टैक्स में इतनी ज्यादा रियायत दुनिया के कम ही देश देते हैं
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चेतन भगत का कॉलम: टैक्स में इतनी ज्यादा रियायत दुनिया के कम ही देश देते हैं

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5 घंटे पहले

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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार - Dainik Bhaskar

चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार

भारत में एक लाख रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह को अच्छा माना जाता है। सालाना 12 लाख रुपए के हिसाब से ये करीब 13,780 डॉलर बैठते हैं। यह आंकड़ा भारत की प्रति व्यक्ति आय से साढ़े चार गुना से भी ज्यादा है, जो आईएमएफ के मुताबिक करीब 2,940 डॉलर है। और इसके ​बावजूद अब आपको कानूनी तौर पर इसके लिए कोई आयकर नहीं चुकाना होगा!

दुनिया में बहुत कम ऐसे देश हैं, जहां प्रति व्यक्ति आय से चार गुना से ज्यादा कमाई करना भी पूरी तरह से कर-मुक्त हो। 2025 का बजट मध्यम वर्ग के लिए मेगा-हिट साबित हुआ है। यह अकसर नजरअंदाज किए जाने वाले उच्च-मध्यम वर्ग के लिए भी एक बड़ा तोहफा है।

न केवल 12 लाख रुपए सालाना आमदनी अब कर-मुक्त है, बल्कि वेतनभोगियों को मानक-कटौती के रूप में अतिरिक्त 75,000 रुपए भी मिले हैं। एक ऐसा परिवार, जिसमें पति-पत्नी दोनों कमाते हैं और उनमें से प्रत्येक की सालाना आय 12.75 लाख रुपए है (यानी उनकी संयुक्त आय 25.5 लाख रुपए वार्षिक या 2.12 लाख रुपए मासिक है) तो उन्हें भी अब कोई आयकर नहीं देना होगा।

क्या अब भी कोई टैक्स के बारे में शिकायत कर सकता है? कम से कम वे लोग तो नहीं, जो इन आय सीमाओं के भीतर हैं। और इनमें भारत का बड़ा हिस्सा शामिल है। सरकार ने आखिरकार उनकी बात सुनी और एक ऐसा बजट पेश किया, जिसकी 2014 से ही मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग को उम्मीद थी।

कम से कम आयकर के मामले में तो अब भारतीयों के एक बड़े हिस्से के ‘अच्छे दिन’ आ ही गए हैं। हालांकि बजट में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य और बुनियादी ढांचे पर खर्च भी शामिल थे, लेकिन सबसे अधिक चर्चा इतने बड़े तबके के लिए बड़ी कर-राहत के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रही।

अलबत्ता इससे सरकार को 1 लाख करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो सकता है। सरकार को राजस्व के रूप में कुल अनुमानित 35 लाख करोड़ रुपए मिलते हैं, जिनमें टैक्स का हिस्सा 28.4 लाख करोड़ रुपए है। लेकिन यह सरकार की वित्तीय सेहत के लिए कोई बहुत बड़ा झटका नहीं है।

इस साल करों से मिलने वाले राजस्व में 11% बढ़ोतरी का अनुमान था, जो कोई 3 लाख करोड़ रुपए था। देखें तो सरकार ने इसका एक-तिहाई हिस्सा करदाताओं को लौटा दिया है। अनुमान लगाया गया है कि इससे 1 करोड़ से अधिक लोगों पर अब कोई टैक्स-लायबिलिटी नहीं होगी।

वर्तमान में केवल 2.4 करोड़ व्यक्ति ही आयकर चुका रहे थे और अब तो वे 1.4 करोड़ रह जाएंगे। यह भारत की आबादी का लगभग 1% है! एक और चौंकाने वाली बात यह है कि अब भारत में दस में से नौ वेतनभोगी कर्मचारियों को कोई आयकर नहीं देना होगा।

बहुत कम सरकारी नीतियों का इतना तत्काल और व्यापक प्रभाव पड़ता है, खासकर समाज के अधिक समृद्ध वर्गों पर। लेकिन इस कदम से भाजपा को राजनीतिक लाभ होने की संभावना है। उसके पक्ष में जनमत मजबूत होगा- खासकर सम्पन्न और मुखर सोशल मीडिया-प्रेमी वर्गों के बीच। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या यह पूरे देश के लिए अच्छा है?

यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इससे सरकारी वित्त पर दबाव नहीं पड़ने वाला, क्योंकि कर-राजस्व में अभी भी बढ़ोतरी का अनुमान है। इसका रहस्य अप्रत्यक्ष कराधान में है- विशेष रूप से जीएसटी में, जिसे हर भारतीय चुकाता ही है, चाहे उसकी आमदनी जो भी हो। मजबूत जीएसटी संग्रह ने ही सरकार को आयकर में छूट देने में सक्षम बनाया है।

यह स्पष्ट है कि सरकार उपभोग-आधारित कर मॉडल की ओर बढ़ रही है। यह भारत के लिए सही भी है, क्योंकि बड़े असंगठित क्षेत्र के कारण आयकर का अनुपालन चुनौतीपूर्ण है। इसके अलावा, बहुत अधिक आय वालों पर कर अभी भी बहुत अधिक हैं और कॉर्पोरेट कर सरकारी राजस्व का विश्वसनीय स्रोत बना हुआ है।

राजकोषीय घाटे की हालत में भी साल-दर-साल सुधार हो रहा है। दूसरी तरफ, 99% आबादी को आयकर-दायित्वों से बाहर रखना और शेष 1% पर बोझ डालना एक स्थायी दीर्घकालिक रणनीति नहीं हो सकती।

दूसरे, कम प्रत्यक्ष कर मुद्रास्फीति बढ़ा सकते हैं- या तो सरकारी कर्जों में बढ़ोतरी के जरिए या उसे अधिक नोट छापने के लिए प्रेरित करके। इससे बुनियादी ढांचे की महत्वपूर्ण परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं के लिए पैसा घट सकता है। इसके बावजूद दशकों के बाद ऐसा बजट आया है, जो मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग पर केंद्रित है, इसका जश्न मनाया जाना चाहिए।

यह साफ है कि सरकार उपभोग- आधारित कर-मॉडल की ओर बढ़ रही है। आज हर भारतीय जीएसटी चुकाता ही है, चाहे उसकी आमदनी जो भी हो। मजबूत जीएसटी संग्रह ने ही सरकार को आयकर में छूट देने में सक्षम बनाया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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