कुछ ही क्षण पहले
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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार
5 मार्च को एअर इंडिया की फ्लाइट AI-126 ने शिकागो से दिल्ली के लिए 14 घंटे की नॉन-स्टॉप उड़ान भरी। विमान में 300 से ज्यादा यात्री सवार थे और उसमें 12 टॉयलेट्स थे। हालांकि जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ी, एक-एक करके सभी टॉयलेट्स जाम होते गए।
साढ़े चार घंटे बाद- ग्रीनलैंड के ऊपर कहीं- 12 में से 11 टॉयलेट्स उपयोग के योग्य नहीं रह गए। चालक-दल ने विमान को वापस मोड़ने का फैसला किया। इस तरह हवा में दस घंटे बिताने के बाद विमान फिर से शिकागो में उतर गया।
सैकड़ों यात्रियों को दूसरी फ्लाइट्स में समायोजित करना पड़ा, उनका मार्ग बदलना पड़ा या पैसे लौटाने पड़े। जिन यात्रियों ने समय बचाने के लिए नॉन-स्टॉप उड़ान पर लाखों का भुगतान किया था, वे बुरे फंसे और विवाह समारोह, व्यापारिक बैठकें जैसे उनके अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम रह गए।
विमान के टॉयलेट्स की हालत इतनी खराब थी कि उसे चालू हालत में लाने में दो दिन लग गए। एअर इंडिया के अनुसार टॉयलेट्स में पॉलीथीन बैग, चिथड़े और कपड़े पाए गए, जिससे प्लंबिंग व्यवस्था तहस-नहस हो गई। एयरलाइन ने आगे बताया कि इससे पहले की उड़ानों में भी यात्रियों द्वारा ब्लैंकेट्स, अंडरगारमेंट्स और डायपर आदि को फ्लश कर दिया गया था।
कुछ हफ्ते पहले केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी एअर इंडिया की उड़ान में अपने एक बुरे अनुभव के बारे में निराशा जताई थी। हाल के महीनों में इसी तरह की अन्य शिकायतें भी सामने आई हैं। तो आखिर हो क्या रहा है? पहले कहा जाता था कि समस्या एअर इंडिया के पीएसयू होने में है, लेकिन अब तो वह निजी है और टाटा समूह के स्वामित्व में है।
यह समूह मुंबई में ताज महल होटल, उदयपुर में ताज लेक पैलेस, नई दिल्ली में ताज मानसिंह, न्यूयॉर्क में द पियरे सहित कई विश्वस्तरीय संपत्तियों का संचालन करता है। फिर एयरलाइन के संचालन में क्यों बाधा आ रही है? जबकि एअर इंडिया ने विस्तारा के साथ भी विलय किया है, जो भारत की बेहतर एयरलाइंस में से एक थी।
हमें धैर्य रखने के लिए कहा जाता है कि दशकों की अक्षमता को रातोंरात ठीक नहीं किया जा सकता। ठीक है। लेकिन क्या हमें वास्तव में ऐसी स्थिति को स्वीकार करना चाहिए कि एक पूरी फ्लाइट को जाम हुए टॉयलेट्स के कारण वापस लौटना पड़े? भारत की मार्केट-लीडर इंडिगो ने भी ग्राहकों की शिकायतों में वृद्धि देखी है।
हालांकि, कम से कम उसने कभी लग्जरी एयरलाइन होने का दावा नहीं किया। यही बात स्पाइसजेट, अकासा और अन्य भारतीय एयरलाइंस पर भी लागू होती है। वे बिना किसी तामझाम के काम करती हैं- आपको पॉइंट ए से पॉइंट बी तक पहुंचाना। इससे ज्यादा कुछ नहीं। उन्होंने कभी विश्वस्तरीय सेवाओं का वादा नहीं किया, न ही आलीशान होने का दावा किया।
सिंगापुर जैसे छोटे सिटी-स्टेट में सिंगापुर एयरलाइंस है, जो दुनिया की शीर्ष पांच एयरलाइंस में निरंतर शुमार होती है। छोटे खाड़ी देशों ने भी एमिरेट्स, कतर एयरवेज और एतिहाद जैसी एयरलाइंस बनाई हैं- जो विलासिता, विश्वसनीयता और वैश्विक-प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं। जबकि भारतीय एयरलाइंस अक्सर ‘टॉप 5 एयरलाइंस टु अवॉइड’ सूची में शामिल होती हैं। क्यों?
हम कारणों पर विचार कर सकते हैं कि टैक्स बहुत अधिक हैं, रेगुलेशंस बोझिल हैं, विमान पुराने हैं, कोई भी एयरलाइंस में निवेश नहीं करना चाहता, हमारे हवाई अड्डे वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं हैं आदि। शायद हम इनमें और कारण जोड़ सकते हैं। जैसे कि बहुत-से भारतीयों में आज भी नागरिक-बोध या सामान्य ज्ञान नहीं है, चाहे वे कितने भी अमीर क्यों न हों।
एक एयरलाइन टॉयलेट में अंडरगारमेंट को फ्लश करने की कोशिश करने के लिए एक विशेष प्रकार की बुद्धिमत्ता की जरूरत होती है और ऐसे लोग अक्सर हमारे देश में पाए जाते हैं। हम केवल अपने बारे में सोचना पसंद करते हैं, फिर दूसरों के साथ चाहे जो होता रहे।
लेकिन एयरलाइन का संचालन अब कोई उच्च-तकनीक वाला कौशल नहीं रह गया है। विश्वस्तरीय विलासिता और सेवाएं प्रदान करना भी हमारे लिए नई बात नहीं है, हम इसे अपने शीर्ष होटलों में करते हैं। इसमें सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। कई देशों में एटीएफ पर कोई कर नहीं है।
रेगुलेशंस को भी लग्जरी और गुणवत्ता के अनुकूल होना चाहिए। किसी ऑपरेटर को जोखिम उठाकर बेहतरीन एयरलाइन बनानी चाहिए। हम भारतीयों को भी अपनी संपत्तियों की परवाह करनी चाहिए, भले ही वे व्यक्तिगत रूप से हमारी अपनी न हों। क्योंकि हमारे ‘चलता है’ एटिट्यूड ने भी हमारे यहां मीडियोक्रिटी की स्वीकार्यता को जन्म दिया है।
एयरलाइन का संचालन अब कोई उच्च-तकनीक वाला कौशल नहीं रह गया है। विश्वस्तरीय विलासिता और सेवाएं प्रदान करना भी हमारे लिए नई बात नहीं है, हम इसे अपने शीर्ष होटलों में करते हैं। इसे एयरलाइन में क्यों नहीं कर सकते? (ये लेखक के अपने विचार हैं।)