जयती घोष का कॉलम:  हमें आंकड़ों के दुरुपयोग के प्रयासों को पहचानना होगा
टिपण्णी

जयती घोष का कॉलम: हमें आंकड़ों के दुरुपयोग के प्रयासों को पहचानना होगा

Spread the love


4 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
जयती घोष मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

जयती घोष मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर

अपने नैरेटिव को आगे बढ़ाने और असहमतियों को दबाने के लिए जनसंचार-माध्यमों का प्रयोग अब आम हो चुका है। डेटा पर नियंत्रण भी इसी कड़ी में किया जाता है, जिससे सार्वजनिक सूचनाओं तक पहुंच और उनके उपयोग में बुनियादी बदलाव आ जाता है।

आज दुनिया भर में नागरिकों को अपने व्यक्तिगत डेटा को नेताओं और उनके सहयोगियों को सौंपने के लिए मजबूर किया जा रहा है। साथ ही उन्हें उन नेताओं को जवाबदेह ठहराने के लिए आवश्यक जानकारी तक पहुंच से भी वंचित किया जा रहा है।

भारत का उदाहरण लें, जहां राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग का राजनीतिकरण किया गया है। यह मूलतः एक स्वतंत्र विशेषज्ञ संस्थान था, जो आधिकारिक आंकड़ों के सत्यापन और संग्रह की देखरेख के लिए जिम्मेदार था। इसके बाद केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) को निशाना बनाया गया, जो आर्थिक आंकड़े एकत्र करता है। इससे सीएसओ की विश्वसनीयता भी प्रश्नांकित हुई है। विकास के अनुमानों के लिए आधार-वर्ष में नियमित संशोधन को बहाने के रूप में इस्तेमाल करते हुए सीएसओ की कार्यप्रणाली में ऐसे बदलाव किए गए, जिससे विकास-दर बढ़ गई।

इसी प्रकार, 2017-18 के उपभोग व्यय सर्वेक्षण को अचानक वापस ले लिया गया- जो जनता की खुशहाली का आकलन करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। ऐसा कथित तौर पर इसलिए किया गया था, क्योंकि इसमें ग्रामीण भारत में घटती खपत और बढ़ती गरीबी का खुलासा किया गया था।

जब 2022-23 के घरेलू व्यय सर्वेक्षण का समय आया, तो सरकार ने एक बार फिर अपनी कार्यप्रणाली में संशोधन किया। 2024 के आम चुनावों से ठीक पहले एक ‘फैक्टशीट’ जारी की गई, जिसमें दावा किया गया कि गरीबी दर 5% तक गिर गई है।

विश्वसनीय आंकड़ों के प्रति अरुचि इस हद तक पहुंच गई है कि जनगणना भी नहीं कराई जा रही है, जो कि वर्ष 2021 में ही हो जानी चाहिए थी। अभी तक यह तय नहीं है कि यह कब होगी। परिणामस्वरूप हमारे पास भारत की जनसंख्या, जनसांख्यिकी, रोजगार और जीवन-स्थितियों पर सबसे नवीनतम आधिकारिक आंकड़े जो हैं, वो 2011 के ही हैं।

जब नीतियों और कार्यक्रमों के ऑडिट से प्रतिकूल परिणाम सामने आते हैं तो उन्हें दबा दिया जाता है। उदाहरण के लिए, गंगा नदी सफाई परियोजना की आधिकारिक समीक्षा जारी नहीं की गई। कोविड-19 के दौरान होने वाली मृत्युओं के अधिकृत आंकड़ों को व्यापक रूप से चुनौती दी गई थी। लेकिन हताहतों की संख्या को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वतंत्र अनुमान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया गया।

स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण भी इस सबसे अछूते नहीं रह गए हैं। एक रिपोर्ट में खराब पोषण-स्तर और अपर्याप्त स्वच्छता-सेवाओं पर प्रकाश डाले जाने के बाद, आईआईपीएस निदेशक को इस्तीफा देना पड़ा।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005- जो कि यूपीए सरकार द्वारा पारित एक ऐतिहासिक पारदर्शिता कानून था- को भी दुर्बल बनाया गया है। प्रमुख पदों को रिक्त छोड़ दिया है। अधिकांश याचिकाएं अनुत्तरित रह जाती हैं। लेकिन इस सबका खामियाजा यह रहता है कि सटीक नीतिगत निर्णय लेने की सरकार की क्षमता बाधित होती है।

दूसरी तरफ लोगों को पहले से कहीं अधिक व्यक्तिगत डेटा सौंपने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसका श्रेय ‘आधार’ के विस्तार को जाता है, जो कि एक बायोमेट्रिक पहचान-प्रणाली है। अब यह लोगों के बैंक खातों, कर-रिटर्न, मोबाइल सिम, यात्राओं के रिकॉर्ड और प्रमुख लेनदेन से जुड़ चुकी है।

इस प्रणाली के पहले से ही अनेक दुष्परिणाम सामने आ चुके हैं, क्योंकि कई बार फिंगरप्रिंट के बेमेल होने के कारण लोगों को वेतन-भुगतान, खाद्य-भत्ते और अन्य आवश्यक सेवाओं से वंचित होना पड़ता है। अभी तक डेटा संरक्षण के लिए कोई रूपरेखा लागू नहीं की गई है। निगरानी न होने के कारण डेटा का दुरुपयोग भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। बड़ी टेक कम्पनियों के पास पहले से ही विशाल मात्रा में व्यक्तिगत डेटा संग्रहीत हो चुका है।

न्यायपालिका जैसी संस्थाएं इससे नागरिकों को सुरक्षा प्रदान कर सकती हैं, बशर्ते वे दृढ़ बनी रहें और बिखर न जाएं। लेकिन हमें लोकतंत्र के खिलाफ आंकड़ों को हथियार बनाने के प्रयासों को पहचानकर उनका विरोध करना होगा।

अभी तक डेटा संरक्षण के लिए कोई रूपरेखा लागू नहीं की गई है। निगरानी न होने के कारण डेटा का दुरुपयोग भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। बड़ी टेक कम्पनियों के पास पहले से ही विशाल मात्रा में व्यक्तिगत डेटा संग्रहीत हो चुका है। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

खबरें और भी हैं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *