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3 घंटे पहले
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नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री
महाकुम्भ संपन्न हुआ… एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। जब एक राष्ट्र की चेतना जागृत होती है, जब वो सैकड़ों साल की गुलामी की मानसिकता के बंधनों को तोड़कर नव-चैतन्य के साथ हवा में सांस लेने लगता है, तो ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है, जैसा हमने 13 जनवरी के बाद से प्रयागराज में देखा।
22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में मैंने देवभक्ति से देशभक्ति की बात कही थी। प्रयागराज में महाकुम्भ के दौरान सभी देवी-देवता जुटे, संत-महात्मा जुटे, बाल-वृद्ध जुटे, महिलाएं-युवा जुटे और हमने देश की जागृत चेतना का साक्षात्कार किया। 140 करोड़ देशवासियों की आस्था एक साथ एक समय में इस पर्व से आकर जुड़ गई थी।
तीर्थराज प्रयाग के इसी क्षेत्र में एकता, समरसता और प्रेम का पवित्र क्षेत्र शृंगवेरपुर भी है, जहां प्रभु श्रीराम और निषादराज का मिलन हुआ था। उनके मिलन का वो प्रसंग भी हमारे इतिहास में भक्ति और सद्भाव के संगम की तरह है। प्रयागराज का तीर्थ आज भी हमें एकता और समरसता की वो प्रेरणा देता है।
बीते 45 दिन, प्रतिदिन, मैंने देखा, कैसे देश के कोने-कोने से लाखों-लाख लोग संगम तट की ओर बढ़े जा रहे हैं। संगम पर स्नान की भावनाओं का ज्वार, लगातार बढ़ता ही रहा। हर श्रद्धालु बस एक ही धुन में था- संगम में स्नान। मां गंगा, यमुना, सरस्वती की त्रिवेणी हर श्रद्धालु को उमंग, ऊर्जा और विश्वास के भाव से भर रही थी।
प्रयागराज में हुआ महाकुम्भ का ये आयोजन, आधुनिक युग के मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए, प्लानिंग और पॉलिसी एक्सपर्ट्स के लिए, नए सिरे से अध्ययन का विषय बना है। पूरे विश्व में इस तरह के विराट आयोजन की कोई दूसरी तुलना नहीं है।
दुनिया हैरान है कि कैसे एक नदी तट पर, त्रिवेणी संगम पर करोड़ों की संख्या में लोग जुटे। इन लोगों को ना औपचारिक निमंत्रण था, ना ही किस समय पहुंचना है, उसकी पूर्व सूचना थी। बस, लोग महाकुम्भ चल पड़े… और संगम में डुबकी लगाकर धन्य हो गए।
मैं वो तस्वीरें भूल नहीं सकता… स्नान के बाद असीम आनंद और संतोष से भरे चेहरे नहीं भूल सकता। महिलाएं हों, बुजुर्ग हों, हमारे दिव्यांगजन हों, जिससे जो बन पड़ा, वो साधन करके संगम तक पहुंचा। और मेरे लिए ये देखना बहुत ही सुखद रहा कि बहुत बड़ी संख्या में भारत की आज की युवा पीढ़ी प्रयागराज पहुंची।
भारत के युवाओं का इस तरह महाकुम्भ में हिस्सा लेने के लिए आगे आना, एक बहुत बड़ा संदेश है। इससे ये विश्वास दृढ़ होता है कि भारत की युवा पीढ़ी हमारे संस्कार और संस्कृति की वाहक है और इसे आगे ले जाने का दायित्व समझती है।
इस महाकुम्भ में प्रयागराज पहुंचने वालों की संख्या ने निश्चित तौर पर नया रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन जो प्रयाग नहीं पहुंच पाए, वो भी इस आयोजन से भाव-विभोर होकर जुड़े। कुम्भ से लौटते हुए जो लोग त्रिवेणी तीर्थ अपने साथ लेकर गए, उस जल की कुछ बूंदों ने भी करोड़ों भक्तों को कुम्भ स्नान जैसा ही पुण्य दिया। कितने ही लोगों का कुम्भ से वापसी के बाद गांव-गांव में जो सत्कार हुआ, वो अविस्मरणीय है।
ये कुछ ऐसा हुआ है, जो बीते कुछ दशकों में पहले कभी नहीं हुआ। ये कुछ ऐसा हुआ है, जो आने वाली कई-कई शताब्दियों की एक नींव रख गया है। प्रयागराज में जितनी कल्पना की गई थी, उससे कहीं अधिक संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचे। इसकी एक वजह ये भी थी कि प्रशासन ने भी पुराने कुम्भ के अनुभवों को देखते हुए ही अंदाजा लगाया था। लेकिन अमेरिका की आबादी के करीब दोगुने लोगों ने एकता के महाकुम्भ में हिस्सा लिया, डुबकी लगाई।
आध्यात्मिक क्षेत्र में रिसर्च करने वाले लोग करोड़ों भारतवासियों के इस उत्साह पर अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि अपनी विरासत पर गौरव करने वाला भारत अब एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। मैं मानता हूं, ये युग परिवर्तन की वो आहट है, जो भारत का नया भविष्य लिखने जा रही है।
साथियो, महाकुम्भ की परम्परा से हजारों वर्षों से भारत की राष्ट्रीय चेतना को बल मिलता रहा है। हर पूर्णकुम्भ में समाज की उस समय की परिस्थितियों पर ऋषियों-मुनियों, विद्वत् जनों द्वारा 45 दिनों तक मंथन होता था। हर 6 वर्ष में अर्धकुम्भ में परिस्थितियों और दिशा-निर्देशों की समीक्षा होती थी।
12 पूर्णकुम्भ होते-होते यानी 144 साल के अंतराल पर युगानुकूल परिवर्तन करके नए सिरे से नई परम्पराओं को गढ़ा जाता था। इस बार 144 वर्षों के बाद पड़े इस तरह के पूर्ण महाकुम्भ ने भी हमें भारत की विकासयात्रा के नए अध्याय का संदेश दिया है। ये संदेश है- विकसित भारत का।