नीरज कौशल का कॉलम:  अमेरिका के टैरिफ दुनिया को मंदी में धकेल सकते हैं
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नीरज कौशल का कॉलम: अमेरिका के टैरिफ दुनिया को मंदी में धकेल सकते हैं

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5 घंटे पहले

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नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर

अमेरिका ने अपने तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों- मेक्सिको, कनाडा और चीन के साथ ट्रेड-वॉर छेड़ दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मेक्सिको और कनाडा से आयात पर 25 प्रतिशत और चीन से आयात पर 10 प्रतिशत की दो किस्तों में 20 प्रतिशत टैरिफ लगाकर पहला दांव चल दिया।

चीन और कनाडा ने चुनिंदा अमेरिकी निर्यातों पर टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई की। साथ ही टैरिफ का सामना करने वाले और आइटम्स को जोड़ने की धौंस दी। मेक्सिको भी यही कर रहा है। इस लड़ाई में कौन जीतेगा? ट्रम्प ऐसे दिखा रहे हैं जैसे वे पहले ही जीत रहे हैं। लेकिन ट्रेड-वॉर के विजेता उसे लड़ने वाले नहीं होते।

उनका लाभ उन मूकदर्शकों को मिलता है, जो लड़ाई का हिस्सा नहीं हैं। ट्रम्प के पहले कार्यकाल में चीनी उत्पादों पर टैरिफ के परिणामस्वरूप व्यवसायों ने अपनी उत्पादन-सुविधाएं मलेशिया, वियतनाम और थाईलैंड में स्थानांतरित कर दी थीं।

ट्रम्प कहते हैं कि वे तो अभी शुरुआत ही कर रहे हैं। अमेरिकी टैरिफ के प्रकोप का सामना करने वाले देशों की सूची लंबी है। यदि ट्रम्प ने अपने कहे अनुसार 2 अप्रैल को बड़ी संख्या में देशों पर जैसे-को-तैसा टैरिफ लगाया तो वैश्विक व्यापार में कमी से दुनिया भर में मंदी आने का अंदेशा है।

ट्रम्प ने भी इससे इनकार नहीं किया है। एक समय था जब अमेरिकी राष्ट्रपतियों को मंदी का डर सताता था, लेकिन ट्रम्प का मानना ​​है वे मंदी से सुरक्षित हैं। जब उनसे पूछा गया कि वे व्यवसायों को क्या स्पष्टता प्रदान कर सकते हैं, तो उन्होंने कहा : समय के साथ टैरिफ बढ़ सकते हैं।

कनाडा और मेक्सिको पर टैरिफ अगर लंबे समय तक जारी रहे तो ये अर्थव्यवस्थाएं तबाह हो जाएंगी। दोनों ही देश अमेरिका पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। अमेरिका कनाडा के 75 प्रतिशत और मैक्सिको के 77 प्रतिशत निर्यात का खरीदार है।

मैक्सिकन जीडीपी में निर्यात का हिस्सा 36 प्रतिशत और कनाडा में 33 प्रतिशत है। तो ट्रम्प के टैरिफ अमेरिका के दो पड़ोसियों के जीडीपी के कम से कम एक चौथाई हिस्से को प्रभावित करेंगे और उन्हें एक गहरी मंदी में धकेल देंगे। अगर मैक्सिकन अर्थव्यवस्था मंदी में जाती है तो मेक्सिको से इमिग्रेशन अब की तरह कम नहीं रहेगा।

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि व्यापार-युद्धों को रोकने के लिए ट्रम्प इन देशों से बदले में क्या चाहते हैं। मेक्सिको पर टैरिफ लगाने का पिछला तर्क अवैध प्रवासियों और फेंटेनाइल ड्रग के निर्यात को रोकने के लिए मजबूर करना था। अवैध इमिग्रेंट्स का आना तो लगभग बंद हो गया है।

मेक्सिको ने 29 ड्रग गिरोह के सरगनाओं को भी अमेरिका को प्रत्यर्पित किया है। मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने दक्षिणी सीमा पर 10,000 अतिरिक्त सैनिक तैनात किए हैं। लेकिन इन सबके बाद भी आखिर मेक्सिको को क्या मिला? निर्यात पर 25% टैरिफ!

कनाडा पर टैरिफ लगाने का औचित्य तो और भी अस्पष्ट है। उत्तरी सीमा से प्रवासियों का प्रवेश भी मामूली है और फेंटेनाइल ड्रग की तस्करी भी। लेकिन अब अपनी अर्थव्यवस्था को गहरी मंदी में गिरने से बचाने के लिए कनाडा क्या करेगा? और चीन को अमेरिका के टैरिफ के प्रकोप से बचने के लिए क्या करना चाहिए? याद रहे कि मेक्सिको, कनाडा और चीन पर टैरिफ रेसिप्रोकल यानी जैसे-को-तैसा वाले नहीं हैं।

ट्रम्प यह दांव लगा रहे हैं कि हाई टैरिफ लगाकर वे मैन्युफैक्चरर्स को अमेरिका आने के लिए मजबूर करेंगे। उन्होंने अपने स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन के दौरान कहा भी था कि वे आएंगे, क्योंकि अगर वे अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग करते हैं तो उन्हें टैरिफ नहीं देना पड़ेगा।

ट्रम्प के लिए टैरिफ-नीति अमेरिका को फिर से महान बनाने के बारे में है। लेकिन जैसे-जैसे अमेरिकी ट्रम्प की दोमुंही बातों को आत्मसात कर रहे हैं, वैसे-वैसे ही यह डर बढ़ता जा रहा है कि विश्व अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी।

ट्रेड-वॉर के विजेता उसे लड़ने वाले नहीं होते। उनका लाभ उन मूकदर्शकों को मिलता है, जो लड़ाई का हिस्सा नहीं हैं। ट्रम्प के पहले कार्यकाल में चीनी उत्पादों पर टैरिफ के परिणामस्वरूप मलेशिया, वियतनाम, थाईलैंड को फायदा हुआ था। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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