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- Column By Pt. Vijayshankar Mehta You Can Control Your Mind With Pranayam
2 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
अयोध्या में श्रीराम सबको बड़े संक्षेप में बड़ी गहरी बात समझा रहे थे। सबकुछ सुनने के बाद लोगों ने कहा ‘जननि जनक गुर बंधु हमारे, कृपा निधान प्रान ते प्यारे’। यानी हे कृपानिधान आप हमारे माता, पिता, गुरु, भाई सबकुछ हैं और प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं।
ईश्वर और प्राण का बड़ा संबंध है। वैसे प्राण शब्द के अर्थ कई हैं। हमें यदि ईश्वर को और प्यारा बनाना है, उसकी अनुभूति करना है, तो प्राणों पर काम करना होगा। इसको प्राणायाम कहते हैं। आती-जाती सांस पर होश में रहना ही प्राणायाम है।
सांस तो हम ले ही रहे हैं पर अभी जागरूक नहीं हैं। सांस को देखना ईश्वर को प्राणों से प्यारा बनाना है। क्योंकि जब प्राणायाम करते हैं तो मन नियंत्रण में रहता है। मन को संसार भी कहा गया है। प्राणायाम से मन नियंत्रण में आता है तो हमें समझ आता है कि संसार से भागना नहीं है।
संसार में रहकर ही परमात्मा को प्राप्त करना है। संसार को समझ लेंगे, जो कि मन के नियंत्रण से होगा तो ईश्वर और उसकी अनुभूति बड़ी आसान हो जाएगी। यही बात राम जी से अयोध्यावासियों ने कही थी।