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- Palki Sharma’s Column Trump Said That He Is In No Mood To Waste Time
5 घंटे पहले
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पलकी शर्मा मैनेजिंग एडिटर FirstPost
डोनाल्ड ट्रम्प लौट आए हैं। उनका शपथ-ग्रहण समारोह पूरी दुनिया ने देखा। शपथ-ग्रहण के तुरंत बाद कार्यकारी आदेशों की बाढ़-सी आ गई। ट्रम्प बिलकुल भी वक्त जाया नहीं करना चाहते। और भले ही एक दिन का समय किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए नाकाफी है, लेकिन ट्रम्प ने पहले ही दिन जो कहा और किया, वो बताता है कि आने वाला समय कैसा होगा।
ट्रम्प ने आते ही तीन बड़े संदेश दे दिए हैं। एक, वे अपने देश में ‘वोक’ विचारों की नकेल कस देंगे। दो, वे अमेरिका की वैश्विक सहभागिताओं को खत्म कर देंगे, चाहे वह युद्धों में हो, जलवायु-कार्रवाई में हो या सार्वजनिक स्वास्थ्य में। और तीन, वे अमेरिकी वर्चस्व की रक्षा के लिए ताकत का जोर दिखाने से नहीं चूकेंगे।
ट्रम्प ने कहा है कि अमेरिका में अब केवल दो जेंडर होंगे- पुरुष और महिला। उन्होंने अमेरिकी सरकार में डायवर्सिटी-हायरिंग को भी समाप्त कर दिया है। इन दोनों को ही ‘वोक’ एजेंडे के रूप में देखा जाता था। इनकी जगह, ट्रम्प ने अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाया है- सीमा पर कार्रवाई, सार्वजनिक खर्च में कटौती और जन्मसिद्ध नागरिकता को खत्म करना।
ट्रम्प का दूसरा संदेश दुनिया में अमेरिकी-सहभागिताओं को लेकर था। ट्रम्प ने यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने का वादा किया। उन्होंने खुद को गाजा से दूर कर लिया। और उन्होंने प्रमुख समझौतों और एजेंसियों से हाथ खींच लिए। अमेरिका एक बार फिर पेरिस जलवायु समझौते से अलग हो रहा है। उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी अलगाव कर लिया है।
ट्रम्प का तर्क बहुत सरल है- इनमें से कोई भी अमेरिका के लिए मददगार नहीं है। उनका कहना है कि पेरिस समझौते अनुचित हैं, डब्ल्यूएचओ अमेरिका को लूट रहा है और यूक्रेन पुतिन का सिरदर्द है, उनका नहीं।
लेकिन वे अमेरिका को सबसे अलग-थलग नहीं कर रहे हैं, वे केवल अमेरिका की भागीदारी को लेकर सिलेक्टिव हो रहे हैं। क्योंकि ट्रम्प जहां उचित समझते हैं, वहां ताकत आजमाने को तैयार हैं। मसलन, वे पनामा से नहर वापस लेना चाहते हैं।
वे मैक्सिको से अवैध प्रवासियों को अपने देश में नहीं आने देना चाहते। जरूरत पड़ने पर वे बलप्रयोग से नहीं चूकेंगे। यह पारम्परिक अमेरिकी नीति से अलग है। पहले, कुछ चीजें लगभग तय मानी जाती थीं। जैसे अमेरिका का अपने सहयोगियों का समर्थन करना और चीन और रूस जैसे अपने प्रतिद्वंद्वियों पर निशाना साधना। लेकिन ट्रम्प अलग हैं। अमेरिका को किस मामले में उलझना है और किसमें नहीं, ये वो खुद तय करना चाहते हैं।
ट्रम्प ने पहले ही इजराइल को युद्ध विराम समझौते के लिए मजबूर कर दिया है। इसके लिए उन्होंने अपने मित्र नेतन्याहू पर दबाव बनाया था। इसके बाद उन्होंने इजराइली बसाहटों पर से अमेरिकी प्रतिबंध हटा दिए। उन्होंने सऊदी अरब को इजराइल को मान्यता देने के लिए मनाने का भी वादा किया। यह अमेरिकी-अलगाव नहीं है। यह ट्रम्प द्वारा उन मुद्दों को चुनना है, जिनमें वे शामिल होना चाहते हैं।
यह ट्रम्प द्वारा अपने सहयोगियों को यह बताना भी है कि कुछ भी पत्थर की लकीर नहीं है। चीन के मामले में भी ऐसा ही है। ट्रम्प उन्हें टैरिफ की धमकी देते रहे हैं, लेकिन पदभार संभालने के बाद उन्होंने चीन का जिक्र नहीं किया। उन्होंने केवल कनाडा और मैक्सिको पर टैरिफ के बारे में बात की। लेकिन उन्होंने अमेरिका में चीनी एप टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने की समय-सीमा भी बढ़ा दी। तो बात चाहे सहयोगियों की हो प्रतिद्वंद्वियों की, ट्रम्प अपने नियम खुद बनाएंगे।
ट्रम्प की वापसी के बाद दुनिया की कूटनीति में भी बहुत अनिश्चितताएं आएंगी। पुतिन और जिनपिंग ने ट्रम्प के शपथ ग्रहण के बाद एक वीडियो कॉल किया और अपनी साझेदारी को और गहरा करने का वादा किया।
यह इस बात का सबूत है कि आगे क्या होने वाला है- रूस और चीन मिलकर ट्रम्प के फैसलों को ताक पर रखना चाहते हैं। वे उनके किसी भी गलत कदम का फायदा भी उठाना चाहेंगे। उदाहरण के लिए, डब्ल्यूएचओ वाले फैसले ने चीन और रूस के सामने इस एजेंसी पर अपना नजरिया थोपने का रास्ता खुला छोड़ दिया है।
दुनिया के नेता ट्रम्प को बधाई देने के लिए कतारबद्ध नजर आए और सबके अपने-अपने एजेंडे थे। नेतन्याहू को उम्मीद है कि ट्रम्प अब्राहम समझौते का विस्तार कर सकते हैं। यूक्रेन के जेलेंस्की ने ट्रम्प को एक मजबूत व्यक्ति कहा। यूके ने अमेरिका से ऐतिहासिक संबंधों के बारे में बात की।
भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प को एक पत्र भेजा, उन्हें एक्स पर बधाई दी, और अगले महीने पेरिस में एक शिखर सम्मेलन में वे उनसे मिल भी सकते हैं। सभी को पता चल गया है कि अगर आपको अमेरिका का समर्थन चाहिए, तो यह बैठे-बिठाए नहीं मिलने वाला है। ट्रम्प की ठकुरसुहाती इसमें कारगर होगी! (ये लेखिका के अपने विचार हैं)