35 मिनट पहले
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साल 2024 पाकिस्तान में मीडिया की आजादी के लिए अब तक का सबसे बुरा साल रहा है। इस साल छह पत्रकारों और एक यूट्यूबर ने अपनी जान गंवाई है। पत्रकारिता में 35 साल से ज्यादा बिताने के बाद अब मैं यह कहने को मजबूर हूं कि पाकिस्तान में सेंसरशिप ने उसके लोकतंत्र को मजाक में बदल दिया है। संविधान में गारंटीकृत प्रेस की आजादी की रक्षा करने में न्यायपालिका और संसद पूरी तरह विफल रही है। हमारे पास कहने को तो निर्वाचित संसद वाली एक नागरिक सरकार है, लेकिन यह शक्तिहीन है। सब फैसले सेना ही ले रही है। मुख्य विपक्षी दल पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) से भी सेना ही भिड़ रही है।
पाकिस्तानी सेना ने बिना किसी लिखित आदेश के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इमरान खान पर प्रतिबंध लगा दिया है। कोई भी अखबार या टीवी चैनल उनके नाम का उल्लेख नहीं कर सकता या उनकी तस्वीर नहीं दिखा सकता। पिछले साल सैन्य अधिकारियों ने अखबारों और टीवी चैनलों के मालिकों को तलब किया था और मौखिक रूप से खान को टीवी स्क्रीन और अखबारों पर प्रतिबंधित करने के लिए कहा था। कई टीवी एंकरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। उनमें से कुछ को फर्जी मामलों में गिरफ्तार किया गया है। पाकिस्तान में एकमात्र सिख पत्रकार हरमीत सिंह पर भी 150 अन्य पत्रकारों और ब्लॉगर्स के साथ मुकदमा चल रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार मतिउल्लाह जान, जिन्हें पिछले माह केवल इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था क्योंकि वे इस्लामाबाद में पीटीआई की रैली पर सुरक्षा बलों की सीधी गोलीबारी में हुई मौतों की खोजबीन कर रहे थे।
इमरान खान अकेले ऐसे नहीं हैं, जिन पर पाकिस्तान में प्रतिबंध है। एक अहिंसावादी अधिकार समूह ‘पश्तून तहफुज मूवमेंट’ (पीटीएम) और उसके मशहूर नेता मंजूर पट्ठीन पर भी पाकिस्तानी मीडिया में प्रतिबंध है। पीटीएम तालिबान विरोधी है, लेकिन पाकिस्तान की सियासत में सेना के दखल के खिलाफ पीटीएम की आलोचना को नापसंद करती है। महरंग बलूच बलूचिस्तान की एक महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। उन्हें भी मीडिया में प्रतिबंधित कर दिया गया है। उर्दू भाषी मुहाजिरों के एक अन्य नेता अल्ताफ हुसैन पर भी प्रतिबंध है।
अखबारों और टीवी चैनलों को नियंत्रित करने के बाद पाकिस्तानी सेना ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को निशाना बनाया है। सबसे पहले उन्होंने पाकिस्तान में एक्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। कई यूट्यूबर गिरफ्तार किए गए। व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और टिकटॉक तक को बाधित किया गया। फिर उन्होंने पाकिस्तान में इंटरनेट को धीमा कर दिया। बदकिस्मती से आज पाकिस्तान दुनिया के उन देशों मंे शुमार है, जहां इंटरनेट की गति काफी कम है। अब सेना का हाईकमान भ्रमित करने वाली सूचना से लड़ने के नाम पर एक और कानून के माध्यम से और ज्यादा प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। शहबाज शरीफ की सरकार ने पहले ही खबर फैलाने के दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों के लिए पांच साल की कैद या दस लाख रुपए के जुर्माने की सजा प्रस्तावित की है। अब इसमें यह छिपी हुई बात नहीं है कि सरकार वास्तव में असहमति की आवाज को दबाने के लिए इस नए कानून का उपयोग करना चाहती है।
वरिष्ठ पत्रकार मतिउल्लाह जान का उदाहरण ले सकते हैं, जिन्हें पिछले महीने गिरफ्तार किया गया था। वे इस्लामाबाद में पीटीआई की रैली पर सुरक्षा बलों की सीधी गोलीबारी में हुई मौतों की खोजबीन कर रहे थे। उन्हें फर्जी मामले में गिरफ्तार करके रिपोर्ट करने से रोका गया। प्रधानमंत्री शरीफ के एक सलाहकार ने मेरे टीवी शो में खुद स्वीकार किया था कि मतिउल्लाह जान को एक फर्जी मामले में फंसाया गया है।
इस एक घटना ने एक नागरिक सरकार के भविष्य के इरादों को उजागर कर दिया जो पिछले सैन्य तानाशाहों की तरह व्यवहार कर रही है। पाकिस्तान में सिर्फ प्रेस की आजादी ही नहीं मर रही है। न्यायपालिका भी सुरक्षा एजेंसियों के दबाव में है। इस्लामाबाद हाईकोर्ट के छह जजों ने खुफिया एजेंसियों पर न्यायिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाया है। संसद भी एक स्वतंत्र संस्था नहीं है। सुरक्षा एजेंसियां कभी भी संसद भवन के अंदर घुस सकती हैं और वे बिना किसी वारंट के कभी भी किसी सांसद को गिरफ्तार कर सकती हैं। अगर न्यायपालिका और संसद अपनी आजादी की रक्षा नहीं कर सकती तो वे प्रेस की आजादी की रक्षा कैसे कर सकती हैं?
मैं सिर्फ अपने पेशे के भविष्य के बारे में चिंतित नहीं हूं। मैं पाकिस्तान में लोकतंत्र के भविष्य को लेकर ज्यादा चिंतित हूं। बोलने की आजादी लोकतंत्र का दिल है। सेंसरशिप लोकतंत्र के लिए जहर है, क्योंकि यह जनता को राज्य से अलग कर देती है और अस्थिरता को बढ़ावा देती है। पाकिस्तानी शासन ने हमेशा स्वतंत्र पत्रकारों के खिलाफ नफरत भरे भाषण और फर्जी खबरों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है। मैंने खुद देशद्रोह से लेकर ईशनिंदा तक के मामलों का सामना किया है, लेकिन मेरे या मेरे टीवी चैनल के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं हुआ। मैं फर्जी खबरों से लड़ने के लिए तैयार हूं, लेकिन मैं अपनी आजादी किसी भी खुफिया एजेंसी को नहीं सौंपूंगा जो सियासत में दखल देकर पहले से ही संविधान का उल्लंघन कर रही है।
लोकतंत्र स्वतंत्र मीडिया के बिना जिंदा नहीं रह सकता। अगर लोकतंत्र मर गया तो पाकिस्तान का जिंदा रहना भी मुश्किल हो जाएगा। एक तानाशाह (जनरल याह्या खान) ने बंगालियों को अलग-थलग कर दिया था। आज एक फर्जी लोकतंत्र पश्तूनों और बलूचों को अलग-थलग कर रहा है।