प्रकृति को बचाना भी ईश्वर की पूजा है:  पूजन सामग्री न हो तो प्रकृति से जुड़कर भी हो सकती है भगवान की पूजा
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प्रकृति को बचाना भी ईश्वर की पूजा है: पूजन सामग्री न हो तो प्रकृति से जुड़कर भी हो सकती है भगवान की पूजा

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  • Saving Nature Is Also Worshiping God: If There Are No Worship Materials, Then God Can Be Worshipped By Connecting With Nature

20 घंटे पहले

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किसी भी तरह का पूजन अनुष्ठान समय और परिस्थिति के अनुसार फैसला लेकर ही करना चाहिए। सनातन धर्म में बताया है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है। भगवान आपकी परिस्थितियों के अनुसार आपके द्वारा की गई हर पूजा स्वीकार करते हैं। बस आपके अंतःकरण में आपका मनोभाव शुद्ध, सात्विक और भयमुक्त होना चाहिए।

इसका उदाहरण श्रीराम ने रामेश्वर में रेत से शिवलिंग बनाकर उसे पूजकर दिया…

ईश्वर ने फूल, पत्ती, पंच मेवा, पान, चंदन और नवग्रह के वृक्षों की समिधा स्वीकार कर हमें पेड़, पौधे लगाने का संदेश दिया है। जल से अभिषेक करने का मतलब नदी, तालाब, कुओं और समुद्र को संरक्षित रखने का संदेश दिया है। रेत या मिट्टी का तिलक ललाट पर लगाकर उन्होंने धरती मां को संरक्षित करने का संदेश दिया है। इससे साधारण इंसान भी उनकी पूजा कर सकता है। वहीं अगर आप प्रकृति को बचा रहे हैं तो इस तरह आपकी नित्य पूजा भी भगवान स्वीकार करते हैं।



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