प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह का कॉलम:  पारम्परिक और आधुनिक ज्ञान के बीच तालमेल हो
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प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह का कॉलम: पारम्परिक और आधुनिक ज्ञान के बीच तालमेल हो

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7 घंटे पहले

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प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के चांसलर - Dainik Bhaskar

प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के चांसलर

हमारे लिए विकास की परिभाषा केवल आधुनिक विज्ञान और टेक्नोलॉजी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका उ‌द्देश्य मानव मूल्यों, संस्कृति और परंपराओं को संजोकर रखते हुए आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है। हमारा 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना भी तभी साकार हो सकता है, जब हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें।

विकास की यह अवधारणा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी) से भी मेल खाती है, जो युवा पीढ़ी को रूपांतरकारी परिवर्तन के लिए तैयार कर रही है। यह नीति न केवल शैक्षिक सुधारों की प्रतीक है, बल्कि इसे भारतीय मूल्यों के साथ जोड़ने की दिशा में ऐतिहासिक कदम के रूप में देखा जा सकता है।

रूपांतरकारी परिवर्तन की ऐसी ही परिकल्पना बहुत पहले महान शिक्षाविद् और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. मदनमोहन मालवीय द्वारा की गई थी। उन्होंने शिक्षा को केवल ज्ञानार्जन का माध्यम नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण, सामाजिक उत्थान और राष्ट्र निर्माण का साधन माना। उन्हें महामना की उपाधि से विभूषित किया गया था। यह उनके योगदान, दूरदर्शिता और शिक्षा में सुधार के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण है।

उनकी दृष्टि और प्रयासों का प्रतिबिम्ब हमें आज की शिक्षा व्यवस्था में भी दिखाई देता है, जो आधुनिक विज्ञान और तकनीक के साथ-साथ भारतीय परंपराओं और मूल्यों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। पं. मदन मोहन मालवीय की शैक्षिक दृष्टि और एनईपी दोनों ही वि‌द्यार्थियों को अपनी संस्कृति और मूल्यों से जुड़ा रखकर, वैश्विक स्तर पर संवाद और सहयोग की क्षमता विकसित करने पर जोर देती हैं।

एनईपी वि‌द्यार्थियों को संवेदनशील, समाज के प्रति जिम्मेदार और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए तैयार बनाने का आह्वान करती है, ताकि वे समरसता और सौहार्द को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभा सकें।

पं. मदनमोहन मालवीय जी की शिक्षा को लेकर जो दृष्टि थी, वह बीएचयू के आदर्श वाक्य और उ‌द्देश्यों में झलकती है। उनका मानना था कि भारतीय ज्ञान परंपरा में जो भी श्रेष्ठ तत्व निहित हैं, हमें उन्हें अंगीकार करते हुए आधुनिक ज्ञान के स्रोतों से प्राप्त विज्ञान और तकनीकी को भी अपनाना चाहिए।

वे पुरातन आयामों और नूतन ज्ञान के समागम पर विशेष जोर देते थे। उनके अनुसार शिक्षा का उ‌द्देश्य केवल ज्ञान पाना नहीं, इसे ऐसा साधन बनाना है, जो व्यक्ति के आध्यात्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान में योगदान दे।

बीएचयू का कुलगीत- जिसे वैज्ञानिक डॉ. शांति स्वरूप भटनागर ने लिखा था तथा संगीतकार पं. ओंकारनाथ ठाकुर ने लयब‌द्ध किया था- भारतीय ज्ञान-परम्परा और शिक्षा की व्यापकता को दर्शाने वाली प्रेरणादायक रचना है। इसमें बीएचयू के उन उ‌द्देश्यों और आदर्शों पर प्रकाश डाला गया है, जो छात्र-छात्राओं के समग्र विकास, मल्टी-डिसिप्लिनरी शिक्षा और मूल्य-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।

यह तत्व राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी दिखाई देते हैं। एनईपी-2020 का दृष्टिकोण भारतीय परम्परा और आधुनिकता के सामंजस्य पर आधारित है। शिक्षा को समावेशी, बहुआयामी और नैतिक मूल्यों पर आधारित बनाना, भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति का संरक्षण तथा वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए सशक्त और आत्मनिर्भर वैश्विक नागरिकों का निर्माण एनईपी के प्रमुख उ‌द्देश्यों में शामिल हैं।

एनईपी में बालिका शिक्षा तथा महिला सशक्तीकरण को भी प्राथमिकता दी गई है। यह नीति भी मालवीय जी के उस सपने को साकार करती है, जिसमें महिलाओं को समान अवसर देकर समाज के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास का हिस्सा बनाया गया है। इसी उद्देश्य से 1929 में महिला महावि‌द्यालय की नींव रखी गई थी, जो बीएचयू का अभिन्न अंग है।

पं. मालवीय ‌द्वारा 1919 में बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज की भी स्थापना की गई थी, जिसे बाद में आईआईटी बीएचयू के रूप में पुनर्गठित किया गया। पं. मालवीय के इस दृष्टिकोण कि बौद्धिक विकास से अधिक महत्वपूर्ण है चारित्रिक विकास और एनईपी के उद्देश्यों के बीच स्पष्ट समानता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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