भगवान शिव ने किया था कामदेव को भस्म, यहां जानें 1 नहीं बल्कि होली से जुड़ी 3 रोचक कथाएं
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भगवान शिव ने किया था कामदेव को भस्म, यहां जानें 1 नहीं बल्कि होली से जुड़ी 3 रोचक कथाएं

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Holi 2025 Vrat Katha in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। पंचांग के अनुसार, इस बार रंगों का त्योहार 14 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। मथुरा, वृंदावन और काशी समेत पूरे देश में इस दिन खास उल्लास देखने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि इससे कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हैं? जी हां, होली मनाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। ऐसे में आज हम आपको इनमें से कुछ प्रमुख कहानियों के बारे में बताएंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

भगवान शिव और माता पार्वती की कथा

धार्मिक ग्रंथों में होली को लेकर भगवान शिव और माता पार्वती की एक कहानी काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। लेकिन शिवजी ध्यान में लीन थे। देवताओं को लगा कि शिवजी की समाधि भंग किए बिना विवाह संभव नहीं होगा। ऐसे में देवताओं ने तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजा। कामदेव ने प्रेम बाण चलाया, जिससे शिवजी की तपस्या भंग हो गई। इससे गुस्साए शिवजी ने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। उसके बाद कामदेव की पत्नी विलाप करते हुए भोलेनाथ के पास पहुंची और उसने भगवान शिव को इसका कारण बताया। क्षमा याचना के बाद शिवजी ने उन्हें पुनर्जन्म का वरदान दिया। मान्यता है कि कामदेव का पुनर्जन्म होली के दिन हुआ था, इसलिए इस दिन को प्रेम और उल्लास का प्रतीक माना जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण और पूतना वध

भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी होली की एक अन्य कथा काफी प्रसिद्ध है। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण और राक्षसी पूतना से संबंधित है। कथा के अनुसार, जब कृष्ण जन्मे थे, तब उनके मामा कंस ने उन्हें मारने के लिए राक्षसी पूतना को गोकुल भेजा। पूतना ने सुंदर स्त्री का रूप धारण कर नवजात शिशुओं को विषपान कराने का प्रयास किया। जब वह कृष्णजी को विषपान कराने लगी, तो बालगोपाल ने खेल-खेल में ही उसका वध कर दिया। इसके बाद गोकुलवासियों ने पूतना का पुतला बनाकर जलाया। यही परंपरा आगे चलकर होलिका दहन के रूप में प्रचलित हुई।

भक्त प्रहलाद और होलिका दहन

तीसरी कथा श्रीहरि भगवान विष्णु और भक्त प्रहलाद से जुड़ी है। कथा के अनुसार, राक्षस राज हिरण्याकश्यप ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लिया था कि, संसार का कोई भी जीव या देवी-देवता उसका वध ना कर सकें। इसके बाद हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानने लगा था और वह चाहता था कि उसका पुत्र प्रहलाद सिर्फ उसी की पूजा करे। लेकिन प्रहलाद भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। गुस्से में आकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को मारने का आदेश दिया। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था, इसलिए वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन विष्णुजी की कृपा से प्रहलाद सुरक्षित बच गए और होलिका जलकर राख हो गई। तभी से हर साल होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है।

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डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।





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