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- Manoj Joshi’s Column We Cannot Turn A Blind Eye To The Events Happening In Our Neighbourhood
9 घंटे पहले
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मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार
हाल ही में बांग्लादेश के छात्र नेताओं ने एक नए बांग्लादेश के निर्माण के वादे के साथ जतोयो नागोरिक पार्टी (राष्ट्रीय नागरिक पार्टी) नामक एक दल का गठन किया है। एक ओर शेख मुजीबुर्रहमान द्वारा स्थापित राष्ट्र की जगह सेकंड-रिपब्लिक की स्थापना की बात जोरों पर है, वहीं दूसरी ओर हमने देखा है कि प्रतिबंधित इस्लामी संगठन हिज्ब-उत-तहरीर फिर से उभर आया है, जिसने 7 मार्च को ढाका में एक विशाल प्रदर्शन का आयोजन किया।
नई पार्टी के आधिकारिक शुभारंभ पर इसके नेताओं ने नए संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए संविधान सभा के चुनाव का भी आह्वान किया, लेकिन अभी तक मुख्यधारा की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और अवामी लीग ने इस प्रस्ताव में बहुत कम रुचि दिखाई है।
इस दौरान बांग्लादेश में अराजकता का दौर जारी है। अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस के हाथों में स्थिति को नियंत्रित करने की बहुत कम क्षमता है। मुल्क अभी भी भीड़ की हिंसा की उन घटनाओं से उबर रहा है, जो पिछले अगस्त में शेख हसीना को सत्ता से हटाने वाले आंदोलन के बाद शुरू हुई थी।
स्थिति यह है कि पिछले महीने के अंत में सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां को एक बयान जारी कर चेतावनी देनी पड़ी कि अंतरिम सरकार कानून और व्यवस्था को कमजोर करना बंद करे। वे समय से पहले चुनाव कराने का समर्थन कर रहे हैं, जो अंतरिम सरकार का समर्थन करने वालों के हितों के खिलाफ है। अवामी लीग तो धराशायी हो चुकी है, जबकि बीएनपी शीघ्र चुनाव चाहती है। दूसरी ओर, जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे इस्लामी तत्व चाहते हैं कि स्थानीय स्तर के चुनावों के बाद मुख्य चुनाव हों।
हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही थी और वह जीडीपी वृद्धि और अन्य आर्थिक संकेतकों में भारत के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा था। लेकिन उनके पलायन के बाद से विकास में तेजी से गिरावट आई है और देश मंदी की ओर बढ़ रहा है।
विश्व बैंक और आईएमएफ का कहना है कि हसीना के सत्ता से हटने के बाद से बांग्लादेश की विकास-दर आधी हो गई है और उसका कपड़ा उद्योग- जो उसके विकास का आधार था- बेरोजगारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। लेकिन अंतरिम सरकार मौजूदा स्थिति के लिए हसीना सरकार को दोषी ठहराती है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश की बढ़ती नजदीकियां भी भारत के लिए चिंता का विषय है। पहला, पाकिस्तान भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए बांग्लादेश का उपयोग करता है। दूसरा, वह आतंकवादियों की घुसपैठ के लिए भी बांग्लादेश का उपयोग करता है।
उच्च स्तरीय पाक-बांग्लादेश सैन्य आदान-प्रदान में बंगाल की खाड़ी में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास तथा बांग्लादेश को बैलिस्टिक मिसाइलों की पाकिस्तान द्वारा आपूर्ति भी शामिल हो सकती है। ढाका नई दिल्ली पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है, जबकि इस्लामाबाद इस क्षेत्र में भारत को काउंटर-बैलेंस करना चाहता है।
भारत के लिए आर्थिक चिंताएं भी हैं। बांग्लादेश के भारत से अच्छे व्यापारिक संबंध रहे हैं और दोनों देशों के बीच लगभग 15 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार है, जो पाकिस्तान के साथ व्यापार से कहीं अधिक है। लेकिन अब बांग्लादेश की भारत पर आर्थिक निर्भरता कम हो सकती है।
भारत और बांग्लादेश के खराब संबंधों का नई दिल्ली की क्षेत्रीय नीति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। वर्तमान में बांग्लादेश बिम्सटेक नामक एक क्षेत्रीय संगठन का प्रमुख सदस्य है, जिसे भारत ने पाकिस्तानी प्रभाव को दूर रखने के लिए सार्क के स्थान पर प्रोत्साहित किया है। नई दिल्ली-ढाका संबंधों में गिरावट से वहां भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है।
दूसरी तरफ, चीन का भी बांग्लादेश पर खासा प्रभाव है और वह उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। उसने वहां महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है और वह बांग्लादेशी सेना को हथियारों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
चीन ने ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में भारतीय प्रभाव का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में इस्तेमाल किया है और वह इस्लामाबाद की मदद से बांग्लादेश में भी अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर नहीं छोड़ेगा।
पाकिस्तान भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए बांग्लादेश का उपयोग करता है। वह आतंकवादियों की घुसपैठ के लिए भी बांग्लादेश का उपयोग करता है। ढाका हम पर अपनी निर्भरता घटाना चाहता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)