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- Column By Masatsugu Asakawa Glaciers In The Hindu Kush And Himalayas Are Melting Rapidly
9 घंटे पहले
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मसत्सुगु असाकावा एशियन डेवलपमेंट बैंक के प्रेसिडेंट
संयुक्त राष्ट्र ने 2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है, जो इस कठोर हकीकत का सामना करने का उपयुक्त समय है कि दुनिया की बर्फ की चादरें पिघल रही हैं। जलवायु परिवर्तन इस परिघटना को गति दे रहा है। यह विशेष रूप से हिंदू कुश-हिमालय में अधिक तेजी से हो रहा है। इस क्षेत्र को पृथ्वी का तीसरा ध्रुव कहा जाता है, क्योंकि इसमें आर्कटिक और अंटार्कटिका के बाहर सबसे अधिक मात्रा में बर्फ है।
ये पर्वत शृंखलाएं- जो 3,500 किलोमीटर और आठ देशों में फैली हुई हैं- वैश्विक औसत से लगभग तीन गुना तेजी से गर्म हो रही हैं। यदि इस सदी के अंत तक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ जाता है तो क्षेत्र के 75% ग्लेशियर पिघल जाएंगे। इससे पानी की उपलब्धता घटेगी, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा कम हो जाएगी और जैव-विविधता को भारी नुकसान होगा।
ग्लेशियरों के पिघलने से आस-पास के समुदायों और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को अपूरणीय क्षति का भी खतरा है। यह माइग्रेशन को बढ़ाकर, व्यापार को बाधित करके और खाद्य कीमतों में वृद्धि करके दुनिया भर में अस्थिरता को भी बढ़ावा देगा।
नेपाल की मेलमची नदी में 2021 की बाढ़ से आई आपदा आने वाले समय की झलक दिखाती है। असामान्य रूप से भारी मानसूनी बारिश और अत्यधिक बर्फ पिघलने से मलबा बहकर आ गया था, जिससे हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा नष्ट हो गया था।
इससे लाखों लोग प्रभावित हुए। जैसे-जैसे ग्लेशियर समाप्त होने लगेंगे, पेयजल का संकट गहराता जाएगा। यह ऐसी समस्या है, जो 2050 तक हिंदू कुश-हिमालय क्षेत्र को प्रभावित कर सकती है। नदियों के घटते प्रवाह से उस क्षेत्र में फसलों की सिंचाई करना और मुश्किल हो जाएगा, जो दुनिया के लगभग एक-तिहाई चावल और गेहूं का उत्पादन करता है।
जल-आपूर्ति और स्वच्छता प्रणालियों को बनाए रखना दूभर हो जाएगा, जिससे इस क्षेत्र में पहले से ही बुनियादी स्वच्छता तक पहुंच से वंचित करोड़ों लोगों की संख्या और बढ़ जाएगी। खाद्य संकट गहरा जाएगा। समुदायों और उद्योगों को ताजे पानी की तलाश में पलायन करना पड़ सकता है। इससे गरीब और कमजोर आबादी सबसे ज्यादा प्रभावित होगी।
दुनिया को इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने के विनाशकारी प्रभावों को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। इसका मतलब है खतरे के आकलन में निवेश करके नॉलेज बढ़ाना, क्योंकि नुकसान की सीमा काफी हद तक इस पर निर्भर करेगी कि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री, 1.8 डिग्री, 2 डिग्री या 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है या नहीं। डेटा-संग्रह बढ़ाकर, नॉलेज-शेयरिंग करके, जल-प्रबंधन के अनुकूलन और एकीकृत नदी-बेसिन प्रबंधन को भी मजबूत करना चाहिए।
यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि नया और मौजूदा बुनियादी ढांचा जलवायु के अनुरूप हो। यह सुरक्षित पेयजल और ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ स्वच्छता, सिंचाई और परिवहन प्रणालियों तक पहुंच बनाए रखने के लिए आवश्यक है। पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
इस सबके लिए अधिक फंडिंग की जरूरत है। हिंदू कुश-हिमालय क्षेत्र और उसकी नदी घाटियों की देखभाल वैश्विक सार्वजनिक महत्व की वस्तु के रूप में करनी चाहिए। एशियन डेवलपमेंट बैंक ने कुछ कदम उठाए हैं।
ग्रीन क्लाइमेट फंड और विभिन्न देशों के साथ मिलकर, एडीबी ने हाल ही में ग्लेशियर्स टु फार्म्स कार्यक्रम शुरू किया है, जो मध्य और पश्चिम एशिया में कृषि में जलवायु-अनुकूलता को मजबूत करने के लिए 3.5 अरब डॉलर जुटाएगा।
जब यूनेस्को और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने ग्लेशियरों के संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय वर्ष की घोषणा की थी तो डब्ल्यूएमओ महासचिव सेलेस्टे साउलो ने इसे दुनिया के लिए एक वेक-अप कॉल बताया था।
वैश्विक समुदाय को अपनी शक्ति के अनुसार हरसम्भव प्रयास करने चाहिए, ताकि ग्लेशियरों और उनसे संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर अरबों लोगों के लिए एक सुरक्षित और स्थायी भविष्य को सुनिश्चित किया जा सके। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)