महाकुंभ का सबसे बड़ा दिन, मौनी अमावस्या आज:  प्रयागराज न जा पाएं तो घर पर तीर्थ स्नान करने की विधि
जीवन शैली/फैशन लाइफस्टाइल

महाकुंभ का सबसे बड़ा दिन, मौनी अमावस्या आज: प्रयागराज न जा पाएं तो घर पर तीर्थ स्नान करने की विधि

Spread the love


  • Hindi News
  • Jeevan mantra
  • Dharm
  • Maha Kumbh 2025, Mauni Amavasya On 29th January, Prayagraj Mahakumbh 2025, Significance Of Mauni Amawasya, Benefits Of Silence Fasting

8 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

आज (29 जनवरी) माघ मास की अमावस्या है, इसका नाम है मौनी अमावस्या। ये महाकुंभ का सबसे बड़ा दिन है। प्रयागराज के कुंभ में आज दूसरा अमृत (शाही) स्नान है। नदी स्नान और धर्म-कर्म के नजरिए से मौनी अमावस्या का महत्व काफी अधिक है। इस पर्व पर मौन रहकर धर्म-कर्म करने की और पूरे दिन मौन रहने की परंपरा है।

मौनी अमावस्या क्यों है महाकुंभ का सबसे बड़ा दिन, इस बारे में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है-

QuoteImage

तीर्थ राज प्रयाग में तब कुंभ नाम का योग होता है जब माघ महीने में सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में हो और वृष राशि में गुरु चले गए हों। उसी दिन अमावस्या तिथि हो तो मुख्य रूप से वही कुंभ है।

QuoteImage

मौन व्रत रखना तपस्या है

इस अमावस्या पर ब्रह्म, पद्म और वायु पुराण में मौन व्रत करने की बात कही गई है। इनके अनुसार माघ महीने की अमावस्या पर भगवान विष्णु और पितरों की पूजा के साथ इस दिन मौन व्रत रखने से महापुण्य मिलता है।

श्रीमद् भगवद गीता में मौन को तप कहा गया है। माना जाता है कि इस तिथि पर मौन व्रत रखने से तप के समान पुण्य फल मिलता है।

अपनी इच्छाओं पर काबू पाने के लिए युगों से मौन व्रत किया जा रहा है। इस व्रत से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। इससे डिप्रेशन, चिंता और तनाव में कमी आती है। इससे सेल्फ कंट्रोल और सहनशक्ति भी बढ़ती है।

मौन व्रत यानी साइलेंस फास्टिंग पर रिसर्च

  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिसर्च के मुताबिक सकारात्मक मौन का अभ्यास करने से तनाव, चिंता, और अवसाद 40% तक कम हो सकता है।
  • हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की स्टडी के अनुसार साइलेंट मेडिटेशन करने वाले लोगों का मस्तिष्क ग्रे मैटर को सुरक्षित रखता है। जिससे बुढ़ापे तक दिमागी सेहत अच्छी रहती है।
  • जर्मनी के प्रसिद्ध रिसर्च इंस्टीट्यूट मेक्स प्लैंक की एक स्टडी का कहना है कि जब हम मौन वातावरण में समय बिताते हैं तो हिप्पोकैम्पस ज्यादा एक्टिव होता है। ये दिमाग का वो हिस्सा है जो याददाश्त और सीखने के लिए जिम्मेदार होता है।

मौन व्रत को रेगुलर प्रैक्टिस नहीं करना चाहिए, वर्ना डिप्रेशन बढ़ सकता है। मौन व्रत महीने में एक बार या दो महीने में एक बार कर सकते हैं।

– डॉ. प्रीतेश गौतम, (एमडी) साइकेट्रिस्ट, जेके हॉस्पिटल, भोपाल

मौन व्रत पर संतों के विचार

QuoteImage

सबसे ज्यादा अपराध वाणी की वजह से ही होते हैं। किसी की निंदा करना, किसी के लिए कठोर वचन बोलना, व्यर्थ की बातें करना, आदतें हमारी आध्यात्मिक और शारीरिक ऊर्जा को खत्म करती हैं। मौन रहेंगे तो इन बुराइयों से बच जाएंगे। जब बहुत ज्यादा बोलने की इच्छा हो तो नाम जप करें। व्यर्थ बात करने वाला अंर्तमुखी नहीं हो सकता है और अंर्तमुख के बिना परमात्मा की कृपा नहीं मिलती है।

QuoteImage

– प्रेमानंद महाराज, वृंदावन

QuoteImage

हम जितने भी शब्द बोलते हैं, वही बातें 50 प्रतिशत कम शब्दों में कहने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करने से आप हर बात के लिए सचेत हो जाएंगे। मौन का अभ्यास करना चाहिए। हमें कम से कम थोड़ी देर मौन रहने का अभ्यास करना चाहिए।

QuoteImage

– सद्गुरु

QuoteImage

भारतीय संस्कृति में मौन को तप कहा गया है। मौन के समय आपकी संपूर्ण शक्तियां, दिव्याताओं का जागरण होता है। आपकी ऊर्जा भी चैतन्य होकर आपके आसपास एक दिव्यता को प्रकट करती है, लेकिन जहां मौन बड़ा साधन है, वहीं आपका बोलना भी एक कला है। आप अच्छा बोलना सीखें। उसमें माधुर्य, सत्यता, प्रियता और दृढ़ विश्वास रहे। इसलिए बोलने में अथवा अभिव्यक्ति में दिव्यता रहे।

QuoteImage

– स्वामी अवधेशानंद जी गिरि

तीर्थ स्नान का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

  • मौनी अमावस्या पर तीर्थ स्थानों पर नदी स्नान करने की परंपरा है। तीर्थ स्नान करने से धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।
  • तीर्थ स्थानों की नदियों के जल में हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद तत्व होते हैं। कई स्टडीज हो चुकी है, जिनमें ये मालूम हुआ है कि गंगा नदी का पानी हमारी सेहत के लिए बहुत लाभदायक है।
  • तीर्थ यात्रा करने से हम अन्य जगहों की संस्कृति और परंपराओं को जान पाते हैं।
  • आदिगुरु शंकराचार्य ने चार धाम, ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठों की स्थापना इसीलिए की थी ताकि लोग अपने धर्म से जुड़े रहें।
  • लोग तीर्थ यात्रा करते तो विचारों की नकारात्मकता दूर होती है, जीवन में नयापन आता है।
  • तीर्थ यात्रा से ज्ञान बढ़ता है, समस्याओं से लड़ने का साहस बढ़ता है और मन शांत होता है।
  • मान्यता है कि तीर्थ स्थानों के जल के स्पर्श से हमारी सभी बुराइयां दूर होती हैं, आत्मा पवित्र होती है। आत्मा को आध्यात्मिक शांति मिलती है।
  • तीर्थ स्थानों की यात्रा करने से व्यक्ति प्रकृति के करीब जाता है। प्रकृति के करीब रहते हैं तो मन शांत रहता है और जीवन की बोरियत दूर होती है।
  • मान्यताओं के अनुसार तीर्थों में नदी स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है।

खबरें और भी हैं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *