गौरव पाठक1 घंटे पहले
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जूते दैनिक उपयोग की अनिवार्य वस्तु है और अब ब्रांडेड जूतों की कीमत हजारों रुपए तक पहुंचने के कारण दोषपूर्ण जूतों के लिए कानूनी उपायों को समझना काफी अहम हो गया है। उपभोक्ता आयोगों द्वारा हाल ही में दिए गए फैसलों ने दोषपूर्ण जूतों और ऑनलाइन व ऑफलाइन खरीददारी में उपभोक्ता अधिकारों को लेकर महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित किए हैं।
कानूनी ढांचा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7) के तहत जो कोई भी व्यक्ति मूल्य देकर जूते या कोई भी अन्य चीज खरीदता है (व्यावसायिक उद्देश्य को छोड़कर), उसे उपभोक्ता माना जाएगा। धारा 2(11) में “कमी’ (डेफिशिएंसी) को ऐसी किसी भी खामी या कमी के रूप में परिभाषित किया गया है, जो उपभोक्ता को नुकसान पहुंचाती है। कानून पूर्ण मूल्य या छूट पर की गई खरीददारी के बीच कोई अंतर नहीं करता है, जिससे उपभोक्ताओं को व्यापक संरक्षण प्राप्त होता है। उपभोक्ता शिकायतें विनिर्माण दोष (मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट्स) और बताई गई गुणवत्ता या बताए गए स्पेसिफिकेशन्स के गलत होने की स्थिति में की जा सकती हैं। खरीदी के दो साल के भीतर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट अमरीक सिंह बनाम मेहता शू हट (2015) के मामले में जब एक साल की गारंटी के बावजूद जूतों में खामियां आईं तो आयोग ने विक्रेता की जिम्मेदारियों की व्यापक समीक्षा की। विक्रेता ने तर्क दिया कि इस मामले में पार्टी निर्माता को ही बनाया जाना चाहिए, लेकिन आयोग ने कहा कि विक्रेता इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। आयोग के फैसले में कहा गया कि निर्माता को पक्ष न बनाए जाने से विक्रेता उपभोक्ता को राहत देने से इनकार नहीं कर सकता। आयोग ने कहा कि विक्रेता जूतों की या तो संतोषजनक रिपेयरिंग करवाएं या उसे बदलकर दें। इससे यह स्थापित हुआ कि मैन्युफैक्चिंग दोषों का समाधान विक्रेता को ही करना होगा, बजाय इसके कि उपभोक्ताओं को निर्माताओं से अप्रोच करने के लिए कहें।
डिस्काउंटेड सेल्स को लेकर व्यवस्था राजस्थान राज्य आयोग ने मेट्रो मोची ब्रांड प्राइवेट लिमिटेड बनाम रामप्रकाश कुमावत (2024) मामले में सेल के दौरान दोषपूर्ण उत्पादों के मुद्दे पर एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। इस मामले में रिटेलर ने “डिस्काउंटेड उत्पादों में कोई एक्सचेंज नहीं’ नीति का हवाला देकर उपभोक्ता को राहत देने से इनकार कर दिया। इस पर आयोग ने तीन महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। पहली, सेल में भी किसी उत्पाद की बुनियादी गुणवत्ता की जरूरत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दूसरी, रिटेलर अपनी मनमानी शर्तों (जैसे कि डिस्काउंटेड माल की कोई गारंटी नहीं है या डिस्काउंटेड आइटम रिटर्न नहीं होंगे) पर दोषपूर्ण उत्पाद नहीं बेच सकता। तीसरी, विक्रेताओं की ऐसी शर्तों की सख्ती से व्याख्या होनी चाहिए, खासकर जब शर्तें अस्पष्ट या भ्रामक हों। आयोग ने जोर दिया कि डिस्काउंटेड सेल्स से किसी विक्रेता को दोषपूर्ण उत्पाद बेचने का लाइसेंस नहीं मिल जाता।
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की जवाबदेही केरल राज्य आयोग ने अमेजन सेलर सर्विसेस बनाम अनीस ए.के. (2023) मामले में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की जवाबदेही के जटिल मुद्दे पर निर्णय दिया। जब उपभोक्ता को गलत साइज के जूते डिलीवर किए गए तो प्लेटफॉर्म ने तर्क दिया कि वह केवल विक्रेताओं और खरीदारों के बीच की बिक्री को सुविधाजनक बनाने वाला एक मध्यस्थ है। हालांकि आयोग ने प्लेटफॉर्म को रिटर्न और रिफंड नीतियों के लिए जवाबदेह ठहराते हुए उपभोक्ता को रिफंड के साथ मुआवजे का निर्देश दिया। निर्णय ने स्पष्ट किया कि प्लेटफॉर्म, जो पैमेंट और रिटर्न को हैंडल करते हैं, केवल मध्यस्थ होने का दावा करके जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। आयोग ने जोर दिया कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को उचित शिकायत निवारण तंत्र सुनिश्चित करना होगा।
वित्तीय मुआवजा उपभोक्ता आयोगों ने मुआवजे के संबंध में स्पष्ट सिद्धांत दिए हैं। नेकराम श्याम बनाम नाइकी शोरूम (2023) मामले में, जहां तीन महीनों के भीतर ही 17,595 रुपए के जूते में निर्माण दोष पाया गया, शिमला जिला आयोग ने पूरे रिफंड के साथ मानसिक प्रताड़ना के लिए 5,000 रुपए और मुकदमे के खर्च के लिए 5,000 रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया। निर्णय ने जोर दिया कि प्रीमियम प्राइसिंग से उच्च गुणवत्ता की जवाबदाही और बढ़ जाती है और ब्रांड स्टैंडर्ड वारंटी शर्तों का हवाला देकर जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। आयोग ने स्थापित किया कि मुआवजा न केवल वास्तविक नुकसान के लिए बल्कि उपभोक्ता द्वारा झेली गई मानसिक प्रताड़ना के लिए भी दिया जाना चाहिए।
(लेखक सीएएससी के सचिव भी हैं।)