रसरंग : मेरे हिस्से के किस्से:  राज कपूर के खास सोफा सेट की दास्तान
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रसरंग : मेरे हिस्से के किस्से: राज कपूर के खास सोफा सेट की दास्तान

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रूमी जाफ़री8 घंटे पहले

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राज कपूर के उसी सोफा सेट पर बैठे हुए उनके पुत्र रणधीर कपूर (दाएं)। - Dainik Bhaskar

राज कपूर के उसी सोफा सेट पर बैठे हुए उनके पुत्र रणधीर कपूर (दाएं)।

तीन दिन पहले यानी बीती गुरुवार को जब नीतू कपूर जी से मेरी बात हुई तो उन्होंने बताया कि 14 दिसंबर को राज कपूर साहब के जन्म को 100 साल हो रहे हैं। इस अवसर पर 13 दिसंबर को पीवीआर में एक रेट कॉर्पेट होगा, जहां दावत के बाद राज साहब की चुनिंदा फिल्में भी दिखाई जाएंगी। उन्होंने मुझे इसमें शामिल होने का निमंत्रण दिया और मैं परिवार सहित इस कार्यक्रम का हिस्सा बना। तो मेरे हिस्से के किस्से में आज बात करते हैं राज कपूर साहब की। यह संयोग ही था कि नीतू जी के फोन के तुरंत बाद मुझे एक पत्रकार का फोन आया। उन्होंने मुझे याद दिलाया कि तुम आरके प्रोडक्शन के आखिरी राइटर रहे हों। इस पर मैंने कहा कि मुझे बचपन से ही फिल्में देखने का बड़ा शौक था। खासकर जब मैं आरके प्रोडक्शन की फिल्में देखता था, तो जब फिल्म शुरू होती थी तो शुरुआत में पापाजी यानी पृथ्वीराज कपूर शिवलिंग के सामने बैठकर पूजा करते हुए दिखाए जाते हैं। उसके बाद ही टाइटल शुरू होते हैं। उसमें फिल्म से जुड़े सारे लोगों, जैसे डायरेक्टर, एक्टर्स, म्यूजिशियन, गीतकार, लेखक आदि के नाम आते हैं। तो जब भी मैं वह सीन देखता था, तो मुझे हमेशा से लगता था कि काश, इनमें मेरा भी नाम होता। और देखिए, ऊपर वाले ने मेरी ख्वाहिश सुन ली और इस तरह मेरा ये सपना सच हो गया। मगर अफसोस केवल इस बात का है कि वो ख्वाहिश पूरी हुई राज कपूर साहब के गुजरने के बाद। मैंने आरके प्रोडक्शन में काम किया उनके जाने के बाद। इसी बात पर मिर्जा गालिब का एक शेर याद आ गया: हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले तीन साल पहले की बात है। एक दिन डब्बू जी यानी रणधीर कपूर ने बताया कि देवनार का जो बंगला है, उसे बेच दिया है। कुछ दिनों बाद वह टूट जाएगा और फिर वहां एक नई बिल्डिंग बनेगी। मैंने डब्बू जी ने कहा कि टूटने से पहले आपको वहां पर एक डिनर जरूर रखना चाहिए। डब्बू जी मेरी बात मान गए और फिर उस घर पर डिनर रखा गया। हम सब लोग वहां गए। इनमें बोनी कपूर, शत्रु जी, पूनम जी, अंजू महेंद्रू, शशि रंजन, अनू रंजन सहित काफी लोग शामिल थे। जावेद अख्तर साहब भी आए थे। हम सबने वहां एक बड़ी यादगार शाम गुजारी। सबके मन में यही था कि वे इस बंगले को आखिरी बार देख रहे हैं। यह फिर देखने को नहीं मिलेगा। मैं फिर घर आ गया और घर आकर सो गया। जब मैं सुबह सोकर उठा तो मेरे मन में बार-बार यही खयाल आ रहा था कि अब इस घर को दोबारा से देखने का मौका नहीं मिलेगा। फिर पता नहीं, मेरे दिमाग में क्या आया कि मैंने डब्बू जी को फोन किया और उनसे कहा, डब्बू जी, टूटने से पहले मुझे इस बंगले से राज कपूर साहब की कोई निशानी चाहिए। जैसा कि पूरी दुनिया जानती है, कपूर परिवार का दिल बहुत बड़ा है। उन्होंने तुरंत मुझसे कहा, चला जा बंगले पर और जो चाहिए, उठाकर ले जा। तो मैं अपने बेटे साहिर को लेकर उस बंगले पर पहुंचा। मैंने उस बंगले को जी भरके निहारा। मैंने अपने बेटे से भी कहा कि बेटा तू बहुत लकी है जो तुझे इस बंगले को देखने का मौका मिल रहा है। फिर मैंने हर जगह के, फिर वह ड्राइंग रूम हो, राज कपूर-कृष्णा आंटी का बेडरूम हो, उनकी मसाज चेयर हो या उनका लॉन हो, फोटो खींचे, वीडियो बनाए। साथ-साथ मैं यह भी सोचता जा रहा था कि आखिर मैं राज कपूर साहब की क्या निशानी लेकर जाऊं। पहले मैंने सोचा कि उनका बेड सेट लेकर जाता हूं, बेड और ड्रेसिंग टेबल, लेकिन उसका आकार बहुत बड़ा था। हमारे फ्लैट छोटे होते हैं तो उसमें वह बड़ा-सा बेड सेट आ नहीं सकता था। फिर सोचा कि पेंटिंग ले जाता हूं। वह तो मेरे फ्लैट में आसानी से आ जाएगी। लेकिन तब दूसरा विचार आया कि पेंटिंग तो लाखों-करोड़ों की होगी। डब्बू जी सोचेंगे कि जबान का फायदा उठाया, करोड़ों की पेंटिंग ले गया। तो मैं बरामदे में गया। वहां पीछे झूले के पास एक सोफा सेट रखा था। डब्बू जी ने मुझे कभी बताया था कि राज साहब ने इसी सोफे पर अपनी जिंदगी के कई महत्वपूर्ण काम किए थे। मेरा नाम जोकर, बॉबी, सत्यम शिवम सुंदरम जैसी फिल्मों की सीटिंग इसी सोफे पर बैठकर की थी। कई फिल्मों की राइटिंग सीटिंग भी उन्होंने इसी सोफा सेट पर बैठकर की थी। तो मैंने सोचा कि मुझे उनका ये सोफा सेट ही लेना चाहिए, क्योंकि इसी सोफे पर जब मैं अपनी राइटिंग सीटिंग के लिए बैठूंगा तो उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रहेगा। तो उनके आशीर्वाद और निशानी स्वरूप मैं वह सोफा सेट वहां से उठाकर अपने फ्लैट पर ले आया। यह सोफा सेट आज भी मेरे घर पर रखा हुआ है। वह मेरे दोस्तों के बीच बड़ा मशहूर भी है। जब मेरे घर की दावतों में लोग आते हैं तो कई लोग कहते हैं कि ये सोफा सेट तो कुछ देखा-देखा सा लग रहा है। तब मैं उन्हें बताता हूं कि यह राज साहब का सोफा सेट है। फिर लोगों को याद आता है कि क्या ये वही है, जो झूले के पीछे रखा रखता था, जहां अक्सर राज कपूर साहब बैठा करते थे। तब मैं कहता हूं कि हां सही पहचाना, यह वही सोफा सेट है। तब मैं अपने आप को बड़ा खुशनसीब मानता हूं कि राज कपूर प्रोडक्शन की फिल्म में मेरा नाम आता है और उनका सोफा मेरे घर में रखा हुआ है। राज कपूर साहब की याद में आज उनकी फिल्म ‘श्री 420’ का यह सुनिए गाना, अपना ख्याल रखिए और खुश रहिए… प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यों डरता है दिल…



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