रुचिर शर्मा का कॉलम:  दुनिया अब अमेरिका के बिना भी ट्रेड करना सीख रही है
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रुचिर शर्मा का कॉलम: दुनिया अब अमेरिका के बिना भी ट्रेड करना सीख रही है

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5 घंटे पहले

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रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर - Dainik Bhaskar

रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर

टैरिफ पर डोनाल्ड ट्रम्प के आक्रामक रुख से दुनिया में अव्यवस्था फैलने, ग्रोथ में गिरावट आने और बाजार में उथल-पुथल मचने का डर है। खासतौर पर अगर निशाना बनाए जा रहे देशों ने इसका प्रतिकार करने का फैसला कर लिया तो, जैसे कि कनाडा और मैक्सिको ने किया है। लेकिन ट्रम्प को जवाब देने का यही इकलौता तरीका नहीं है।

अमेरिका गत 8 सालों से टैरिफ को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में जो टैरिफ लगाए थे, उनमें से अधिकतर को बाइडेन ने जारी रखा। चीन के मामले में तो प्रतिबंधों को और बढ़ाया गया।

इस पर कुछ देशों ने जवाबी कार्रवाई की, कुछ अन्य ने रियायतों की पेशकश की या दुनिया के व्यापार-मध्यस्थों के समक्ष अमेरिका को चुनौती दी। लेकिन ज्यादातर चुपचाप आगे बढ़ गए और अमेरिका के अलावा दूसरे देशों के साथ व्यापार करने लगे।

ट्रम्प के कार्यकाल के पहले वर्ष यानी 2017 से ही ट्रेड, ग्लोबल जीडीपी के 60 प्रतिशत के आसपास स्थिर बना हुआ है। लेकिन ट्रेड फ्लो में अमेरिका की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। हालांकि, इसकी भरपाई अन्य क्षेत्रों विशेषकर एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के देशों में हुई वृद्धि से हो गई है। ट्रम्प 2.0 में भी ऐसा ही होने की संभावना है। दुनिया अमेरिका के बिना भी व्यापार करना सीख रही है।

पिछले आठ वर्षों में हर 5 में से 4 देशों ने अपनी राष्ट्रीय जीडीपी के हिस्से के रूप में व्यापार में वृद्धि देखी है। जापान, इटली और स्वीडन से लेकर वियतनाम, यूनान और तुर्किये तक एक दर्जन से ज्यादा प्रमुख देशों के व्यापार में 10 प्रतिशत से ज्यादा अंकों की वृद्धि दर्ज की गई है। लेकिन अमेरिका इसका अपवाद है, जहां व्यापार जीडीपी के लगभग 25 प्रतिशत तक गिर गया है।

वित्तीय और आर्थिक सुपरपावर के रूप में अमेरिका का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन व्यापारिक शक्ति के रूप में नहीं। ग्लोबल इक्विटी सूचकांकों में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ग्लोबल जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से अधिक हो गई है। फिर भी ग्लोबल ट्रेड में इसकी हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से कम है और पिछले 8 वर्षों में इसमें काफी गिरावट आई है।

ट्रम्प के प्रभाव के बारे में कई चेतावनियां इस बात पर केंद्रित हैं कि कैसे नए टैरिफ उन निर्यातक देशों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जो अपने मुख्य ग्राहक के रूप में अमेरिका पर निर्भर हैं। लेकिन महामारी से पहले अमेरिका की और आक्रामक टैरिफ-नीति के बावजूद ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान विकसित देशों ने स्थिर विकास का अनुभव किया और विकासशील देशों ने वस्तुओं (टेक प्रॉडक्ट्स और कमोडिटीज) और सेवाओं (परिवहन और डिजिटल सेवाओं)- दोनों के निर्यात में मजबूत तेजी देखी।

वर्ष 2008 के बाद वैश्विक व्यापार वार्ताएं टूट गई थीं, लेकिन कई देशों ने छोटी-छोटी डील करना जारी रखा। ट्रम्प के पहली बार राष्ट्रपति बनने के बाद द्विपक्षीय और क्षेत्रीय समझौतों में नई गति आई और इनकी संख्या में लगातार वृद्धि होती चली गई। उधर ट्रम्प ने जल्द ही खुद को ‘टैरिफ मैन’ घोषित कर दिया।

2017 के बाद से अमेरिका ने यूरोपीय संघ और एशिया के साथ साझेदारी पर बातचीत रद्द कर दी और एक भी नया व्यापारिक समझौता नहीं किया। पिछले वर्ष के अंत में जब ट्रम्प के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने की संभावना बढ़ने लगी तो दुनिया के देशों के बीच सौदेबाजी में नए सिरे से तेजी आ गई।

25 साल की लंबी बातचीत के बाद यूरोपीय संघ और दक्षिण अमेरिका में मर्कोसुर गठबंधन के सदस्यों ने बहुप्रतीक्षित व्यापार-समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद मैक्सिको के साथ भी करार हुआ। नतीजा?

पिछले 8 वर्षों में जब वैश्विक-व्यापार का केंद्र अमेरिका से हटकर मध्य पूर्व, यूरोप और एशिया की ओर शिफ्ट हुआ, तो बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने वाले देशों में संयुक्त अरब अमीरात, पोलैंड और सबसे बढ़कर चीन शामिल थे। दुनिया के 10 सबसे तेजी से बढ़ते ट्रेड-कॉरिडोर्स में से पांच का चीन में एक टर्मिनस है, जबकि केवल दो का अमेरिका में एक टर्मिनस है।

भारत एशिया में 15 देशों की नई व्यापारिक साझेदारी में तो शामिल नहीं हुआ, लेकिन 2017 से उसके ट्रेड में लगभग 6 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है और यह भारत की जीडीपी का 46 प्रतिशत हो गया है। लेकिन यह लाभ ज्यादातर एशियाई देशों की तुलना में कम है। बहरहाल, अपनी अपेक्षाकृत मामूली ट्रेड प्रोफाइल के बावजूद भारत ट्रम्प के निशाने से बच नहीं पाया है।

ट्रेड फ्लो में अमेरिका की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। पर इसकी भरपाई एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के देशों में हुई वृद्धि से हो गई है। ट्रम्प 2.0 में भी ऐसा ही होने की संभावना है। दुनिया अमेरिका बिना ट्रेड करना सीख रही है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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