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- Ruchir Sharma’s Column Voters In Developing Countries Including India Are Not Angry
6 घंटे पहले
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रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर
अमेरिका में ट्रम्प की ताजपोशी को एक ऐसे ग्लोबल-ट्रेंड के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें मतदाता सत्ताधीश नेताओं के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं। लेकिन सच यह है कि यह विकसित दुनिया तक ही सीमित है। पिछले साल विकसित देशों में सत्तारूढ़ पार्टियों ने 85% चुनाव हारे, जबकि 2000 के दशक की शुरुआत में उन्होंने औसतन 25% चुनाव हारे थे।
वहीं विकासशील देशों में हवा दूसरी दिशा में बह रही है। 2024 में सत्तारूढ़ पार्टियों ने लगभग 25% चुनाव हारे, जबकि 2000 के दशक की शुरुआत में 50% हारे थे। जनमत सर्वेक्षण भी यही कहानी बताते हैं। विकसित देशों में अपने नेताओं को स्वीकार करने वालों का प्रतिशत 30 रह गया है, जबकि विकासशील देशों में यह 50% से ऊपर स्थिर बना हुआ है।
यूरोप, जापान और अमेरिका में सत्तारूढ़ तंत्र के प्रति वोटरों की नाराजगी मुख्यतया खानपान की चीजों की कीमतों को लेकर थी और लोगों को लगने लगा था कि सिस्टम आम आदमी के विरुद्ध है। लेकिन ऐसा कई विकासशील लोकतंत्रों में नजर नहीं आता।
भारत, इंडोनेशिया और मैक्सिको में सत्तारूढ़ दलों की सरकार में वापसी हुई है। अमेरिका और यूरोप के मतदाताओं की सबसे बड़ी शिकायतों में से एक महामारी की विरासत के रूप में आई महंगाई थी, जिसने बुनियादी जरूरतों की कीमतों को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया।
चूंकि विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में महंगाई बहुत तेजी से बढ़ी, इसलिए वहां के मतदाताओं को ज्यादा झटका लगा था। अमेरिका में 2024 तक अंडों की कीमत महामारी से पहले की तुलना में 200% अधिक थी, जबकि भारत-इंडोनेशिया में यह 50% ही अधिक थी।
मुद्रास्फीति में आए व्यापक उछाल के कारण विकासशील देशों में घरों की कीमतें औसतन 3% बढ़ीं, जबकि विकसित देशों में यह 17% थी। इससे हमें यह पता चलता है कि क्यों कम लागत वाले मकानों का मुद्दा अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और कनाडा तक सत्ता-विरोधी भावनाओं को मजबूत कर रहा है।
इमिग्रेशन में उछाल भी पश्चिमी देशों में एक ज्वलंत चुनावी मुद्दा बन गया है, लेकिन विकासशील देशों में यह मुद्दा नहीं है। कारण, वहां से बड़े पैमाने पर इमिग्रेशन होता है, वहां पर इमिग्रैंट्स बड़े पैमाने पर आते नहीं हैं।
महंगाई, इमिग्रेशन और असमानता के मिले-जुले असर से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि क्यों केवल 20% अमेरिकियों ने ही सरकार पर भरोसा जताया, जबकि 60 के दशक की शुरुआत में यह 70% से ज्यादा था। इसके उलट, विकासशील देशों में सरकारों पर भरोसा बढ़ रहा है। 50% मैक्सिकन अब अपनी सरकार पर भरोसा जताते हैं, जैसा कि 70% से अधिक भारतीय और इंडोनेशियाई भी करते हैं।
विकासशील देशों में सरकार के प्रति भरोसा बढ़ने का एक कारण है : सरकार का तेजी से डिजिटलीकरण। इसने लोगों को सीधे लाभ पहुंचाया और भ्रष्ट बिचौलियों को बीच से हटा दिया। सार्वजनिक सेवाओं में सुधार हुआ है।
सिर्फ एक दशक पहले शुरू हुई भारत सरकार की डिजिटल प्रणाली अब लगभग 70 करोड़ लोगों को सालाना 45 अरब डॉलर से ज्यादा नगद लाभ पहुंचाती है। 2022 तक- भारत में हुए इस बदलाव के कारण- विकासशील देशों की सरकारें विश्व बैंक के सरकारी तकनीकी परिपक्वता सूचकांक पर अपने विकसित साथियों से आगे निकल गई थीं।
हालांकि विकासशील देशों में चुनाव अभी भी स्थानीय स्वभाव के बने हुए हैं। पिछले साल मैक्सिको में सत्तारूढ़ पार्टी को गरीबी कम करने के प्रयासों और इंडोनेशिया में निवर्तमान राष्ट्रपति जोको विडोडो की लोकप्रियता के कारण जीत मिली।
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुमत गंवाना पड़ा, लेकिन फिर भी वे कल्याणकारी लाभों के कुशल वितरण से लाभ उठाकर अपना तीसरा कार्यकाल जीतने में सफल रहे। ऐतिहासिक रूप से, भारत के मतदाता सत्तारूढ़ सरकारों को बेदखल करने के लिए जाने जाते रहे हैं।
1970 के दशक के उत्तरार्ध- जब भारत पहली बार प्रतिस्पर्धी बहुदलीय लोकतंत्र के रूप में उभरा- से 2010 के दशक के उत्तरार्ध तक एक-तिहाई सत्तारूढ़ दल-गठबंधन ही चुनाव जीत सके थे। लेकिन 2021 के बाद से हुए 30 चुनावों में यह आंकड़ा दो-तिहाई पर आ गया है।
इस साल, विकसित दुनिया के तीन देशों में चुनाव होंगे- जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा। और इन तीनों में ही सरकार बदलने के आसार हैं। पोलैंड और रोमानिया का भी यही हाल है। लेकिन इक्वेडोर, अर्जेंटीना और फिलीपींस में तस्वीर अलग है। हाल-फिलहाल में तो विकासशील देश सरकार बदलने को आतुर नजर नहीं आ रहे हैं।
विकसित देशों में सत्तारूढ़ तंत्र के प्रति वोटरों की नाराजगी खानपान की चीजों की कीमतों को लेकर थी। इमिग्रेशन भी बड़ा कारण रहा। लेकिन विकासशील लोकतंत्रों में वोटर इन मुद्दों को लेकर अपनी सरकारों से नाराज नहीं हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)