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- Virag Gupta’s Column ‘Gig Workers’ Should Also Get The Legal Right To Minimum Wages
3 घंटे पहले
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![विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील - Dainik Bhaskar](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/02/07/_1738872237.jpg)
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील
ओला, उबर, जोमेटो, अमेजन, स्विगी, बिग बॉस्केट जैसी एग्रीगेटर कम्पनियों से जुड़े ड्राइवरों, डिलीवरी बॉय और अस्थायी कामगारों को गिग वर्कर कहा जाता है। इस साल के बजट में गिग वर्कर्स के लिए ई-श्रम पोर्टल में रजिस्ट्रेशन, आईडी कार्ड और आयुष्मान भारत के तहत स्वास्थ्य बीमा का प्रावधान किया गया है।
उसके बाद दिल्ली चुनाव प्रचार के दौरान मोदी की गारंटी में यह भी कहा गया कि ऑटो, टैक्सी, ई-रिक्शा ड्राइवर और गिग वर्कर्स को 10 लाख रुपए का जीवन बीमा और 5 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा देने के लिए कल्याण बोर्ड बनाया जाएगा। इससे जुड़े 5 कानूनी पहलुओं को समझना जरूरी है।
1. ई-श्रम पोर्टल : चार साल पहले शुरू हुए ई-श्रम पोर्टल में यूएएन नम्बर को आधार से जोड़ने की योजना है। पिछले साल बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि ई-श्रम पोर्टल को मनरेगा, नेशनल कॅरियर सर्विस, स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना, श्रमयोगी मानधन जैसे दूसरे पोर्टल्स से जोड़कर वन स्टॉप सेंटर बनाया जाएगा। इससे गिग वर्कर्स को सभी राज्यों में सभी योजनाओं का लाभ मिल सकता है।
ई-श्रम पोर्टल में 30.48 करोड़ कामगारों का रजिस्ट्रेशन है, जिनमें लगभग 53% कृषि क्षेत्र में हैं। देश के लगभग 1 करोड़ से ज्यादा गिग वर्कर्स के रजिस्ट्रेशन के लिए श्रम मंत्रालय ने टेक कम्पनियों को पिछले साल तीन महीने का समय दिया था। इसलिए बजट के वायदे नई बोतल में पुरानी शराब की तरह हैं।
2 शोषण : डिजिटल टूल्स और नेविगेशन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से लगातार मॉनिटरिंग के कारण गिग वर्कर्स का शोषण भी बढ़ा है। कुछ महीने पहले अमेजन के वेयरहाउस कामगारों ने ब्लैक फ्रायडे हड़ताल करके ‘मेक अमेजन पे’ के बैनर तले सही भुगतान और काम के अच्छे वातावरण की मांग की थी।
एनएचआरसी सर्वे के अनुसार शोषण और अनियमित काम के चलते असंगठित क्षेत्र के दो-तिहाई कामगार बीमारी और अपमान झेलने को मजबूर हैं। काम के अनियमित घंटों और शोषण की वजह से गिग वर्कर्स में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। ड्राइवर और डिलीवरी बॉय का जमकर शोषण करने के बावजूद कम्पनियां उन्हें न्यूनतम वेतन भी नही देना चाहती हैं।
3. श्रम कानून : केंद्र सरकार ने 2019-20 में 44 श्रम कानूनों को मिलाकर सामाजिक सुरक्षा कोड के चार खंड जारी किए थे। प्रधानमंत्री ने अगस्त 2022 में श्रम मंत्रियों के सम्मेलन में गिग वर्कर्स को भी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने की बात कही थी। लेकिन गत 5 सालों से श्रम कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा।
गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में 2020 में दायर याचिका पर 4 साल तक जवाब नहीं मिलने पर जजों ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। जजों के अनुसार भारत अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का संस्थापक देश है। इसलिए गिग वर्कर्स को एग्रीगेटर कम्पनी से न्यूनतम वेतन, दुर्घटना बीमा, ईएसआई, स्वास्थ्य और पीएफ जैसी कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए।
4. दुनिया से सीखें : इंग्लैंड के रोजगार ट्रिब्यूनल ने 2016 में उबर के ड्राइवरों को पूर्णकालिक कामगार का दर्जा दिया था। यूरोपियन यूनियन की कोर्ट ऑफ जस्टिस ने 2017 में कहा था कि उबर को एग्रीग्रेटर के बजाय ट्रांसपोर्ट सेवा के तौर पर कानून का पालन करना चाहिए। सिंगापुर में गिग वर्कर्स को रिटायरमेंट बेनेफिट और इंडानेशिया में दुर्घटना, स्वास्थ्य और जीवन बीमा की सुविधा मिलती है।
जी-20 के भारत मंडपम में आयोजित सम्मेलन में गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए बयान जारी हुआ था। उत्तराखंड के यूसीसी कानून में लिव-इन के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान है तो फिर टेक कम्पनियों को गिग वर्कर के साथ अनुबंध का ब्योरा सार्वजनिक क्यों नहीं करना चाहिए?
5. राज्यों के कानून : राजस्थान में 1 से 2 फीसदी के सेस की वसूली से कल्याण फंड बनाने और नियम का पालन नही करने पर कम्पनियों पर भारी जुर्माने का कानून बना है। कर्नाटक के प्रस्तावित कानून में न्यूनतम वेतन, 12 घंटे की शिफ्ट और छंटनी के लिए 14 दिन का नोटिस जरूरी है।
तेलंगाना में भी ऐसी पहल हो रही है। लेकिन इंटरमीडियरी के कानूनी लोच और कमजोर माली हालात के चलते राज्यों में गिग वर्कर्स को ठोस राहत नहीं मिल पा रही। राज्यों के नए कानूनों को आईएएमएआई और नेस्काम जैसे संगठन ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ के खिलाफ बता रहे हैं। एग्रीगेटर कंपनियां पूरे देश में निर्बाध व्यापार कर रही हैं। गिग वर्कर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर श्रम कानूनों को सख्ती से लागू करने की जरूरत है।
आठवें वेतन आयोग के गठन के बाद सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में बड़ा इजाफा होगा। लेकिन शोषण का शिकार हो रहे डिलीवरी बॉय और अस्थायी कामगारों को भी न्यूनतम वेतन का कानूनी हक मिलना चाहिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)