विराग गुप्ता का कॉलम:  डेटा सुरक्षा कानून लागू होने में बेवजह ही विलम्ब हो रहा है
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विराग गुप्ता का कॉलम: डेटा सुरक्षा कानून लागू होने में बेवजह ही विलम्ब हो रहा है

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2 घंटे पहले

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विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील - Dainik Bhaskar

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि कथनी और करनी में बढ़ते फर्क की वजह से नेताओं पर भरोसा कम हो रहा है। संविधान की दुहाई देने वाले नेताओं के दौर में बीरबल की खिचड़ी बन रहा डेटा सुरक्षा कानून इसकी बड़ी नजीर है। यूपीए के समय (2010) इस बारे में शुरुआत हुई। एनडीए के पहले कार्यकाल में निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों का ऐतिहासिक फैसला आया।

उसके 6 साल बाद एनडीए के दूसरे कार्यकाल में संसद से डेटा सुरक्षा कानून पारित हुआ। अब एनडीए के तीसरे दौर में डेटा सुरक्षा के ड्राफ्ट नियम जारी हुए हैं। संसद से जब नियम पारित होंगे, उसके बाद कानून को लागू करने के लिए टेक कंपनियों को दो साल का समय और मिलेगा। दूसरी तरफ तीन आपराधिक कानूनों को आपाधापी में पिछले साल एक जुलाई से पूरे देश में लागू कर दिया गया।

गृह मंत्री ने यूपी के मुख्यमंत्री को राज्य में नए कानूनों को लागू करने के लिए कहा है। क्या देश के सबसे बड़े सूबे में रद्द हो चुके पुराने आपराधिक कानूनों के भरोसे पुलिस एफआईआर और जांच हो रही है?

डिजिटल उपनिवेशवाद के खतरों के खिलाफ 12 साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश पारित किए थे। उनमें डेटा के स्थानीयकरण जैसे मुद्दों पर स्वदेशी अर्थव्यवस्था के दबाव से काम हो रहा है। लेकिन साइबर जगत में बच्चों की सुरक्षा और टेक कम्पनियों से जुर्माने और टैक्स की वसूली जैसे मुद्दों पर अमल नहीं हुआ।

डेटा सुरक्षा कानून लागू नहीं होने के तीन बड़े भयावह परिणाम दिख रहे हैं। पहला- डेटा की नीलामी से साइबर अपराधों की बाढ़। दूसरा- बच्चों और युवाओं में बढ़ती मानसिक सड़ांध (‘ब्रेन रॉट’) और अवसाद। तीसरा- डिजिटल कम्पनियों से टैक्स की सही वसूली नहीं होने से अमीर-गरीब की खाई का बढ़ना। डिजिटल कानूनों की कमी से बढ़ रही अराजकता के तीन और बड़े पहलू हैं।

1. बच्चे : कानून के अनुसार 18 साल की बालिग उम्र के बाद ही ड्राइविंग लाइसेंस, मतदान और सिम कार्ड का अधिकार मिलता है। नाबालिग बच्चे ड्रग्स, सिगरेट और शराब का सेवन नहीं कर सकते और उनसे यौन सम्बन्ध बनाने पर पॉक्सो के तहत सख्त सजा हो सकती है। टेक कम्पनियां अमेरिका में रजिस्टर्ड हैं, जहां के कानून के अनुसार 13 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया जॉइन नहीं कर सकते।

टेक और गेमिंग कम्पनियां भारत में 15 करोड़ बच्चों के निजी संवेदनशील डेटा का गैर-कानूनी तरीके से व्यावसायिक इस्तेमाल कर रही हैं। लेकिन सरकार ड्रॉफ्ट नियमों में अभिभावकों की सहमति के बहाने टेक कम्पनियों की जवाबदेही के मुख्य मुद्दे को भटका रही है।

2. जुर्माना : हे-सिरी, ओके गूगल, एलेक्सा और कोरटाना बोलकर वॉइस सेवा का इस्तेमाल करने वाले के निजी डेटा का एप्पल, गूगल, अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां व्यावसायिक इस्तेमाल कर रही हैं। इसके खिलाफ अमेरिका में क्लास-एक्शन सूट दायर हुआ।

अदालत का फैसला आने के पहले ही एप्पल ने पीड़ित लोगों को 800 करोड़ का हर्जाना देकर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की है। 9 घंटे में इतना मुनाफा कमाने वाली एप्पल के लिए जुर्माने की रकम मामूली है। भारत में टेक कम्पनियों की आमदनी के चार फीसदी तक जुर्माना लगाने का ड्राफ्ट कानून था। बाद में इसे कम करके 250 करोड़ कर दिया गया, जिसका अब नए ड्रॉफ्ट नियमों में जिक्र भी नहीं है।

3. एआई : डेटा की अधाधुंध लूट से एआई का कारोबार बढ़ रहा है। एआई पर कानून बनाने के लिए प्रधानमंत्री ने पिछले साल आश्वासन दिया था, लेकिन उस पर अब कोई चर्चा नहीं है। तीन नए आपराधिक कानूनों की तरह आईटी, टेलीकॉम और डेटा सुरक्षा के तीन कानूनों की संहिता को देश की जरूरत है।

आईटी सचिव के नवीनतम बयान के अनुसार आईटी कानून की जगह डिजिटल इंडिया कानून बनाने में अभी विलम्ब है। दूसरी तरफ संसद से पारित होने के बावजूद टेलीकॉम कानून पूरी तरह से लागू नहीं हुआ। डेटा सुरक्षा कानून संसद से पारित हो गया, जिसे नियमों को नोटिफाई करने के दो साल बाद लागू किया जाएगा।

सभी दलों के नेता चुनावों में डेटा और एआई का बेखौफ इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि सोशल मीडिया के नाम पर जनता को फ्री की अफीम मिल रही है। ऐसे में सोशल मीडिया, ओटीटी और गेमिंग के प्रकोप और मानसिक सड़ांध से देशवासियों को बचाने के लिए सरकार को स्पष्ट और प्रभावी डेटा सुरक्षा नियमों को जल्द और सख्ती से लागू करके अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए।

सोशल मीडिया, ओटीटी और गेमिंग के प्रकोप और मानसिक सड़ांध से देशवासियों को बचाने के लिए सरकार को स्पष्ट और प्रभावी डेटा सुरक्षा नियम लागू करने चाहिए। तभी वह अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी कर सकेगी। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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