विराग गुप्ता का कॉलम:  पारिवारिक विवादों में फर्जी मुकदमे पर छिड़ गई है बहस
टिपण्णी

विराग गुप्ता का कॉलम: पारिवारिक विवादों में फर्जी मुकदमे पर छिड़ गई है बहस

Spread the love


  • Hindi News
  • Opinion
  • Virag Gupta’s Column Debate Has Started On Fake Cases In Family Disputes

5 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट के वकील, 'अनमास्किंग वीआईपी' पुस्तक के लेखक - Dainik Bhaskar

विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट के वकील, ‘अनमास्किंग वीआईपी’ पुस्तक के लेखक

मृत्यु-पूर्व बयान को सबसे ठोस सबूत माना जाता है। 8 साल पहले अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री कलिखो पुल ने 60 पेज के सुसाइड नोट में सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के अनेक जजों और नेताओं के ऊपर घूसखोरी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। मुख्यमंत्री की पत्नी की याचिका और प्रतिवेदन के बावजूद सुप्रीम कोर्ट और सरकार ने सही तरीके से जांच नहीं करवाई।

एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के चर्चित सुसाइड नोट के माध्यम से व्यवस्था की सड़ांध को उजागर करने वाले सभी मुद्दों की सुनवाई के लाइव टेलीकास्ट से अगर न्यायिक सुधारों पर ठोस एक्शन हो तो ही उनकी ‘अस्थियों को गटर में बहाने’ की जरूरत नहीं पड़ेगी। अतुल ने सुसाइड नोट वाले वीडियो में न्याय न मिलने पर ऐसा करने की बात तंज में कही थी। इस मामले में चार मुद्दों पर बहस और सुधार की जरूरत है।

1. तारीख पे तारीख : अतुल के अनुसार अधिकांश तारीखों में जज की छुट्टी, वकीलों की हड़ताल, शोक की वजह से या तो न्यायालय में अवकाश था या फिर दूसरे पक्ष के स्थगन की वजह से मुकदमे आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। बहुतेरे ट्रायल कोर्ट में जब सुनवाई का मौका आता है तो जजों का अधिकांश समय किसी अभियुक्त की गैर-हाजिरी पर वारंट जारी करने और फिर उसे रद्द करने में ही निकल जाता है।

सुझाव है कि जिन लोगों को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया, उन्हें ट्रायल के दौरान हर पेशी में अनिवार्य तौर पर उपस्थित रहने का नियम बदलना चाहिए। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार अकेले साल 2021 में 81 हजार से ज्यादा विवाहित पुरुषों ने आत्महत्या की है, जिनमें से 35 फीसदी पारिवारिक विवाद और फर्जी मुकदमों से पीड़ित थे।

2. फर्जी मुकदमे और झूठे हलफनामे : अतुल सुभाष के ससुर का लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ था। लेकिन इसके लिए अतुल के खिलाफ हत्या का मुकदमा पुलिस ने दर्ज कर लिया। उनके ससुराल वालों ने अनेक झूठे हलफनामे भी दिए, जो कि क्रॉस एग्जामिनेशन में पकड़े गए।

देश में बड़ी कंपनियों व विदेशी निवेशकों को तो ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ के नाम पर हर तरह की कानूनी सुरक्षा मिलती है, लेकिन आम जनता के खिलाफ सिविल मामलों में भी आपराधिक मामले दर्ज करने का औपनिवेशिक सिस्टम अभी भी जारी है। देश में 3.52 करोड़ से ज्यादा आपराधिक मुकदमे लंबित हैं।

पिछले महीने ही 14.18 लाख नए आपराधिक मुकदमे दायर हुए। दहेज-प्रताड़ना के अलावा एससी-एसटी एक्ट, पॉक्सो, रेप, शराब, जुआ, डकैती की योजना बनाने जैसे मामलों में पुलिस कई बार फर्जी एफआईआर भी दर्ज करती है। लेकिन फर्जी मामलों में जुर्माना और सजा की कार्रवाई नहीं होने से आपराधिक मुकदमों की बाढ़ से युवाओं में गुस्सा और हताशा बढ़ रही है।

3. नए कानून : नए आपराधिक कानूनों के साथ न्याय-सेतु, ई-समन, ई-साक्ष्य जैसे टूल्स के आधार पर सरकार जल्द न्याय के सिस्टम का दावा कर रही है। लेकिन न्यायिक व्यवस्था की खामियों को दूर किए बगैर लोगों को जल्द न्याय मिलना मुश्किल है।

अतुल होनहार एआई इंजीनियर थे। एआई के माध्यम से जजों की परफॉर्मेंस के ऑडिट से न्यायिक प्रक्रिया तेज हो तो जजों की संख्या बढ़ाए बगैर ही जल्द न्याय मिल सकता है। हजारों-लाखों पेज की चार्जशीट के जिन मुकदमों में ट्रायल कोर्ट में कई दशक लग जाते हैं, उनका सुप्रीम कोर्ट में मिनटों में निपटारा हो जाता है।

फिल्मों में गवाह गीता की शपथ लेते हैं। उसी तरीके से मुकदमे की शुरुआत में ही शिकायतकर्ता, जांच अधिकारी और गवाहों का पॉलीग्राफ जैसा कोई टेस्ट होना चाहिए। मामला झूठा निकले तो आरोपियों को जमानत मिलने के साथ मुकदमे का समरी-ट्रायल से निपटारा होना चाहिए।

4. शिकायत निवारण : इलाहाबाद हाईकोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग की बात चल रही है, लेकिन जजों की अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत और पारदर्शी जांच के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। अतुल मामले में भी ससुरालजनों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज हुआ है, लेकिन फैमिली कोर्ट के जज, पेशकार और फर्जी एफआईआर दर्ज करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

धारा 377 कानून के दुरुपयोग से साफ है कि अगर मैरिटल रेप जैसे मामलों में आपराधिक कानून बन गए तो मुकदमेबाजी बढ़ने के साथ पारिवारिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। आजादी के पहले आजाद हिंद फौज के कैदियों के ट्रायल से अंग्रेजों का सिंहासन डोल गया था। उसी तरीके से अतुल के उठाए मुद्दों पर संसद और सुप्रीम कोर्ट से सार्थक एक्शन हो तो दधीचि की तरह उनकी अस्थियां न्यायिक व्यवस्था को वज्र की तरह मजबूत कर सकती हैं।

एनसीआरबी के अनुसार साल 2021 में ही 81 हजार से ज्यादा विवाहित पुरुषों ने आत्महत्या की है, जिनमें से 35% पारिवारिक विवाद और फर्जी मुकदमों से पीड़ित थे। अतुल के खिलाफ भी ससुराल वालों ने झूठे हलफनामे दिए थे।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *