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- Virag Gupta’s Column Those Who Take Votes In The Name Of Free Supply Should Also Take Responsibility
1 घंटे पहले
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विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट के वकील, ‘अनमास्किंग वीआईपी’ पुस्तक के लेखक
केन-बेतवा परियोजना के शिलान्यास पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कई परियोजनाओं का कांग्रेस-काल में भूमिपूजन हुआ, लेकिन 40 साल में उनमें एक ईंट भी नहीं लगी। अटलजी की 100वीं जयंती के मौके पर नदी जोड़ो परियोजना के बहाने इन पांच पहलुओं से देश में सुशासन के ऑडिट की जरूरत है।
1. साल 1970 में तत्कालीन सिंचाई मंत्री केएल राव ने ज्यादा पानी वाली नदियों से कमी वाले इलाकों में पानी को ट्रांसफर की योजना की नींव रखी थी। उसके दस साल बाद सिंचाई मंत्रालय ने पानी के इंटर बेसिन ट्रांसफर के लिए राष्ट्रीय योजना का निर्माण किया। फिर 1995 में राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण ने केन-बेतवा प्रोजेक्ट का अध्ययन किया।
प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनने के बाद 2008 में इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया। अब पर्यावरण मंजूरी मिलने के बाद शिलान्यास हुआ है। लेकिन परियोजना की दो सुरंगों के लिए जारी निविदाओं में कंपनियों ने रुचि नहीं दिखाई है। 45 हजार करोड़ की इस परियोजना से 62 लाख लोगों को पेयजल और 10 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा कब मिलेगी?
2. विकास और पर्यावरण के नाजुक संतुलन से जुड़े मुद्दों पर पीआईएल की वजह से परियोजनाओं में विलम्ब के साथ लागत बढ़ जाती है। दूसरी तरफ हर मर्ज के समाधान की दवा के तौर पर पीआईएल के इस्तेमाल से मुख्य मुद्दा भी भटक जाता है।
नदियों के राष्ट्रीयकरण के लिए दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2002 में नोटिस और निर्देश जारी किए थे। वर्ष 2012 में उन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत फैसले से नदियों को जोड़ने वाली परियोजना पर सरकार को निर्देश दिए थे। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की शुरुआत में आईएलआर कमेटी का गठन हुआ। लेकिन 10 साल बाद भी गाड़ी ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई है।
3. शिक्षा, बिजली और स्वास्थ्य संविधान में समवर्ती सूची में हैं, जहां केंद्र और राज्य दोनों को अधिकार हैं। लेकिन नदी की जमीन, पानी, बालू, जल-जंतु का विषय राज्यों के अधीन है। साल 1986 में भू-जल पर केंद्र सरकार के अधिकार हेतु सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था। उसके बाद नदी जोड़ो योजना फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने नदियों को समवर्ती सूची में लाने की बात कही।
संसद की लोकलेखा समिति ने 2014-2015 की आठवीं रिपोर्ट में पानी को समवर्ती सूची में लाने की अनुशंसा की थी। इस बारे में कई प्राइवेट बिल भी संसद में पेश हो चुके हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार जल संकट की वजह से साल 2050 तक भारत की जीडीपी में 6 फीसदी तक की हानि हो सकती है।
15 लाख करोड़ रुपए के आईएलआर प्रोजेक्ट को मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में गेमचेंजर बताया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार संविधान-संशोधन नहीं होने से परियोजनाओं की लागत कई गुना बढ़ रही है।
4. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के एक आदेश में कहा गया है कि सीवेज के कारण गंगा नदी का पानी पीने और आचमन के योग्य नहीं है। नदियों को निर्मल और अविरल करने के लिए भागीरथी प्रयास करने के बजाय महाकुम्भ में 45 करोड़ श्रद्धालुओं को न्योता दिया गया है।
दिल्ली में झाग वाली यमुना में छठ के पहले स्नान से भाजपा नेता सचदेवा को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। केजरीवाल ने यमुना में नहाने की चुनौती तो स्वीकार नहीं की, लेकिन नल के पानी को पीने का चुनावी साहस जरूर दिखाया है।
दिल्ली में सूखी और मैली यमुना के बावजूद केजरीवाल पूरी दिल्ली को 24 घंटे साफ पानी देने का खोखला वादा कर रहे हैं। फ्री सप्लाई के नाम पर वोट हासिल करने वाले नेताओं को अब नदी और वायु प्रदूषण की जवाबदेही भी लेनी चाहिए।
5. सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और कैग के आदेशों और रिपोर्टों से जाहिर है कि दशकों से चल रहा गंगा सफाई अभियान लालफीताशाही और भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है। हर घर जल और सार्वजनिक शौचालय जैसी योजनाएं पानी की कमी से दम तोड़ रही हैं। छह ऋतुओं वाले विशिष्ट देश में अब ठंड में वायु प्रदूषण, गर्मी में जलसंकट और बारिश में जल-भराव की पहचान से करोड़ों लोगों का जीवन संकट में है।
खाली खजाने से रेवड़ी बांटने और खोखली योजनाओं के वादों से वोट हासिल करने का प्रयास करने वाले सभी दलों के नेताओं के खिलाफ पुलिस के साथ चुनाव आयोग को भी कार्रवाई करनी चाहिए। इससे सरकारों की जवाबदेही बढ़ने के साथ गवर्नेंस में बेहतरी आएगी।
खाली खजाने से रेवड़ी बांटने और खोखली योजनाओं के वादों से वोट हासिल करने का प्रयास करने वाले नेताओं के खिलाफ चुनाव आयोग को कार्रवाई करनी चाहिए। इससे सरकारों की जवाबदेही भी बढ़ेगी। (ये लेखक के अपने विचार हैं)