- Hindi News
- Opinion
- Shashi Tharoor’s Column Why Are So Many Indians Leaving The Country And Going Abroad?
7 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
शशि थरूर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद
जब डोनाल्ड ट्रम्प लाखों अवैध अप्रवासियों को अपने देश से खदेड़ देने की कसमें खाते हैं तो भारत का नाम शायद ही आपके दिमाग में आता हो। लेकिन अब हम धीरे-धीरे एक असहज कर देने वाली सच्चाई का सामना कर रहे हैं। हमारे हमवतन भी उन लोगों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो एक बेहतर जीवन की तलाश में भारत से अमेरिका चले गए हैं।
जनवरी 2022 में चार लोगों का एक भारतीय परिवार अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था। कनाडा में अमेरिकी सीमा से 40 फीट से भी कम दूरी पर उनकी कड़ाके की ठंड से मौत हो गई।
यह सुनने में अजीब लग सकता है कि भारत के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक गुजरात का एक परिवार ऐसी खतरनाक यात्रा के लिए अपनी जान जोखिम में डालेगा। लेकिन उनकी कहानी असामान्य नहीं है। गुजरात के सात अन्य लोग भी उनके साथ अवैध रूप से सीमा पार कर रहे थे। गुजरात जैसे राज्य से उभरकर आने वाली ऐसी कहानियां सम्पन्नता और समृद्धि के हमारे मौजूदा नैरेटिव में खलल डालती हैं।
लेकिन बात केवल गुजरात की ही नहीं है। भारत के ‘अन्नदाता’ कहलाने वाले पंजाब राज्य से भी बड़ी संख्या में लोग भारत से बाहर बेहतर जीवन की तलाश में दूसरे देशों की ओर जाते रहे हैं। हालांकि पंजाब एक उपजाऊ कृषि प्रधान राज्य है, लेकिन वहां पर बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है और नशे का सेवन वहां बहुत बढ़ गया है। उसके खेत देश की भूख तो मिटाते हैं, लेकिन अपने सभी युवाओं को आजीविका देने में असमर्थ हैं।
घर पर कम अवसरों के कारण कई युवा ‘डंकी-रूट’ को अपनाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यह एक लंबी, कष्टदायक यात्रा है, जिसे अवैध भारतीय प्रवासी ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूके और अमेरिका जैसे देशों में प्रवेश पाने के लिए करते हैं।
फिल्म ‘डंकी’ को उसका यह शीर्षक इसी के चलते मिला है। अप्रवासी बनने के इच्छुक भारतीय एजेंटों को 100,000 डॉलर तक का भुगतान करते हैं, ताकि वे उन्हें अमेरिका में उन जगहों से ‘स्मगल’ कर सकें, जहां सीमा-चौकियों पर सुरक्षा-व्यवस्था तुलनात्मक रूप से कम है।
कुछ लोग कानूनी तरीके से मध्य या दक्षिण अमेरिकी देशों के जरिए अपनी यात्रा शुरू करते हैं; कुछ अन्य को बताया जाता है कि कनाडा एक सुरक्षित विकल्प है, क्योंकि अमेरिका की उत्तरी सीमा मैक्सिको के साथ उसकी दक्षिणी सीमा की तुलना में ज्यादा लंबी और कम कठोर है। लेकिन- जैसा कि हमने उपरोक्त गुजराती परिवार के मामले में देखा है- ऐसी यात्राओं में अंधेरा, कड़ाके की सर्दी, बर्फ और फिसलन के अपने बड़े जोखिम हैं, खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें ऐसे ठंडे तापमान का अनुभव नहीं है।
अक्टूबर 2020 के बाद से अब तक अमेरिका के कस्टम एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन अधिकारी कनाडा या मैक्सिको से अवैध रूप से सीमा पार करने का प्रयास करने वाले लगभग 170,000 भारतीयों को हिरासत में ले चुके हैं। वे ज्यादातर युवा थे। लेकिन हाल के दिनों में अमेरिकी सीमा पर भारतीय जनसांख्यिकी बदल रही है। अब हिरासत में लिए गए लोगों में परिवारों की हिस्सेदारी 16 से 18% तक पहुंच गई है। यानी अब केवल नौजवानों ही नहीं, मध्यम वर्ग के परिवारों को भी आज के भारत में अपना भविष्य नहीं दिखता।
बेशक, अनेक भारतीय इस तरह की खतरनाक यात्रा को पूरी करने में कामयाब हो जाते हैं। प्यू रिसर्च सेंटर का अनुमान है कि 2022 तक अमेरिका में 725,000 अनडॉक्यूमेंटेड भारतीय अप्रवासी थे, जो कि इस तरह के लोगों का तीसरा सबसे बड़ा समूह है।
केवल मैक्सिको और एल साल्वाडोर के नागरिक ही उनसे ज्यादा हैं। लेकिन अमेरिका में भी उनका भविष्य निश्चित नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका से भारतीय नागरिकों के निष्कासन में वृद्धि हुई है, और पिछले वित्त-वर्ष (जो सितंबर के अंत में समाप्त हुआ) में ही ऐसे 1,100 लोगों को निर्वासित किया गया था।
यह ट्रेंड धीमा नहीं पड़ रहा है। अक्टूबर में अमेरिका के गृह सुरक्षा विभाग की एक प्रेस विज्ञप्ति में ऐसे भारतीय नागरिकों के लिए ‘बड़ी संख्या में चार्टर रिमूवल फ्लाइट’ के बारे में बताया गया था, जो अमेरिका में ‘रहने के लिए किसी कानूनी आधार को सत्यापित नहीं कर पाए थे।’
यह पहली ऐसी डिपोर्टेशन-फ्लाइट नहीं थी, और संकेत बताते हैं कि ऐसी और भी उड़ानें प्रक्रिया में हैं। जबकि ट्रम्प ने तो अभी तक शपथ भी ग्रहण नहीं की है। भारत के नेताओं को खुद से पूछना चाहिए कि देश के इतने सारे नागरिक आखिर किस मजबूरी के चलते विदेश में जाना चाहते हैं?
अक्टूबर 2020 के बाद से अब तक अमेरिका के अधिकारी अवैध रूप से सीमा पार करने का प्रयास करने वाले लगभग 170,000 भारतीयों को हिरासत में ले चुके हैं। इनमें युवाओं के साथ ही परिवारों के सदस्य भी शामिल थे। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)