7 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
जो लोग नि:स्वार्थ भाव से अपने कर्तव्य पूरे करते हैं, उनके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है, ऐसे लोगों को भगवान की कृपा भी मिलती है। ये बात भगवान श्रीकृष्ण और देवराज इंद्र की एक पौराणिक कथा से समझ सकते हैं।
द्वापर युग में भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण अवतरित हो गए थे और वे बाल स्वरूप में गोकुल-वृंदावन में अपनी लीलाएं कर रहे थे। एक दिन बाल कृष्ण ने देखा कि ब्रज के लोग देवराज इंद्र की पूजा करने जा रहे है। तब कान्हा ने लोगों से पूछा कि इंद्र की पूजा क्यों की जा रही है?
ब्रज के लोग बोले कि इंद्र वर्षा के देवता हैं और हम किसान हैं। अच्छी वर्षा की कामना से हम किसान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजा कर रहे हैं।
ये बातें सुनकर कृष्ण बोले कि इंद्र तो वर्षा का देवता नहीं है। वर्षा तो प्रकृति कराती है। इंद्र तो सिर्फ उसकी व्यवस्था करने वाले देवता हैं। इसीलिए इंद्र की पूजा नहीं करनी चाहिए।
ब्रज के लोगों ने कहा कि अगर हम इंद्र की पूजा नहीं करेंगे तो वे नाराज हो जाएंगे।
श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं इंद्र से सभी की रक्षा करूंगा। इंद्र से डरने की जरूरत नहीं है।
बाल कृष्ण की बातें मानकर ब्रज के लोगों ने इंद्र की पूजा बंद कर दी। जब ये बात देवराज इंद्र को मालूम हुई तो इंद्र गुस्सा हो गए और उन्होंने बहुत तेज बारिश करनी शुरू कर दी।
बारिश की वजह से ब्रज के लोग बहुत डर गए। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर लोगों की बारिश से रक्षा की थी।
देवराज इंद्र ने देखा कि इतनी वर्षा के बाद भी ब्रजवासियों का कोई नुकसान नहीं हुआ है। इंद्र धरती पर आए और उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण ने छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा रखा है और उस पर्वत के नीचे ब्रज के सभी लोग सुरक्षित हैं।
इंद्र बाल गोपाल की असली स्वरूप को पहचान गए और बोले कि भगवान आपने ऐसा क्यों किया? मेरी पूजा क्यों बंद करवा दी।
श्रीकृष्ण बोले कि इंद्र आपका काम है वर्षा की व्यवस्था करना, लेकिन अपने इस कर्तव्य को पूरा करने के बदले आप खुद की पूजा करवाने की अपेक्षा रखते हैं, इसमें अपना स्वार्थ देख रहे हैं। मेरी नजर में ये सही नहीं है। हमें अपने कर्तव्य नि:स्वार्थ भाव से पूरे करने चाहिए और कभी भी अपनी शक्तियों का, अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ये बातें सुनकर इंद्र को अपनी गलती का एहसास हो गया और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी और लौट गए।
श्रीकृष्ण की सीख
श्रीकृष्ण ने इस कथा में संदेश दिया है कि हमें अपने कर्तव्य ईमानदारी से पूरे करने चाहिए और कर्तव्य के बदले कुछ अतिरिक्त लाभ लेने से बचना चाहिए। इसके साथ ही हमें अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।