delhi high court well educated women should not remain idle just to seek alimony husband
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delhi high court well educated women should not remain idle just to seek alimony husband

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Delhi High Court News: दिल्ली हाईकोर्ट ने एलीमनी और तलाक से जुड़े एक मामले में बड़ा बयान दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर को महिला जो सुशिक्षित हैं और उसे काम करने का अच्छा एक्सपीरियंस है, तो उसे केवल अपने पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए घर पर नहीं बैठ जाना चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए की है।

महिला ने नवंबर 2022 के एक पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने पति से उसके अंतरिम मेटेनेंस यानी गुजारे भत्ते के दावे को खारिज कर दिया था। इस मामले में 19 मार्च को दिए गए आदेश में दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा कि अदालत का मानना ​​है कि योग्य पत्नियां या महिलाएं, जो कमाने की क्षमता रखती हैं, लेकिन बेकार रहना चाहती हैं, उन्हें अंतरिम भरण-पोषण के लिए दावा नहीं करना चाहिए।

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‘गुजारे भत्ते के लिए बेकार न बैठें महिलाएं’

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 में पति-पत्नी के बीच समानता बनाए रखने, पत्नियों, बच्चों और माता-पिता को सुरक्षा प्रदान करने और बेकार रहने को बढ़ावा न देने का विधायी इरादा है। उसी के मद्देनजर अदालत का मानना ​​है कि एक अच्छी तरह से शिक्षित पत्नी को अपने पति से भरण-पोषण पाने के लिए केवल बेकार नहीं रहना चाहिए।

हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि अदालत याचिकाकर्ता महिला को आत्मनिर्भर बनने के लिए सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित करती है क्योंकि उसके पास पहले से ही व्यापक अनुभव है। यह अदालत इस तथ्य को समझने में असमर्थ है कि सक्षम और अच्छी तरह से योग्य होने के बावजूद, याचिकाकर्ता ने भारत लौटने के बाद से बेकार रहना क्यों चुना है?

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2019 में हुई थी महिला की शादी

महिला की शादी दिसंबर 2019 में हुई थी और कुछ ही हफ्तों में वह अपने पति के साथ सिंगापुर चली गई। महिला का आरोप है कि उसने 2005 से 2007 तक दुबई में काम किया और उसके बाद उसे कभी भी कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली, यहां तक ​​कि शादी के समय भी नहीं।

जस्टिस चंद्रधारी सिंह के आदेश में कहा गया है कि अदालत इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती कि याचिकाकर्ता निस्संदेह एक अच्छी तरह से योग्य और सक्षम व्यक्ति हैं। इसके अलावा याचिकाकर्ता अपने माता-पिता के साथ रह रही थीं और अब अपने मामा के साथ रह रही हैं, यह दर्शाता है कि वह अदालत को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि वह कमाने में असमर्थ है।

कोर्ट ने किया WhatsApp Chat का जिक्र

कोर्ट ने कहा था कि तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता के पास ऑस्ट्रेलिया के वोलोंगोंग विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मास्टर्स की डिग्री है, जिसे याचिकाकर्ता ने न तो निचली अदालत के समक्ष और न ही इस अदालत के समक्ष अस्वीकार किया है, यह एक प्रमुख भूमिका निभाता है क्योंकि यह उसकी कमाने और खुद का भरण-पोषण करने की क्षमता के बारे में बताता है।

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कोर्ट ने व्हाट्सएप चैट का भी उल्लेख किया, जिसका जिक्र पारिवारिक न्यायालय द्वारा किया गया था। वॉट्सएप चैट में महिला की मां ने सलाह दी थी कि रोजगार से महिला के गुजारा भत्ते के दावे खतरे में पड़ जाएंगे। हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई भरण-पोषण के दावों की मांग करने के लिए बेरोजगार रहने के जानबूझकर किए गए प्रयास का दृढ़ता से सुझाव देती है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य पर भी गौर किया, जिसमें बताया गया कि महिला केपीएमजी दुबई में ऑडिट एसोसिएट थी, और बाद में अपने पिता के व्यवसाय में HR Manager के तौर पर भी काम करती थीं। अदालत ने कहा कि जज ने सही कहा है कि याचिकाकर्ता का दावा है कि वह बेकार नहीं बैठ सकती और नौकरी की तलाश कर रही है, लेकिन उसने रोजगार पाने या अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के अपने प्रयासों के बारे में न तो निचली अदालत के समक्ष और न ही इस अदालत के समक्ष कोई सबूत पेश किया है। यह अदालत इस बात पर विचार कर रही है कि बिना किसी पुष्ट सबूत के केवल नौकरी की तलाश का दावा करना, आत्मनिर्भरता के वास्तविक प्रयासों को स्थापित करने के लिए अपर्याप्त है।





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