Golu of Mirzapur wears clothes borrowed from others | दूसरों से कपड़े उधार लेकर पहनती हैं मिर्जापुर की गोलू: श्वेता त्रिपाठी बोलीं- इलेक्ट्रिसिटी बचाने के लिए बिना धोए और प्रेस किए कपड़े पहनती हूं
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Golu of Mirzapur wears clothes borrowed from others | दूसरों से कपड़े उधार लेकर पहनती हैं मिर्जापुर की गोलू: श्वेता त्रिपाठी बोलीं- इलेक्ट्रिसिटी बचाने के लिए बिना धोए और प्रेस किए कपड़े पहनती हूं

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53 मिनट पहलेलेखक: वीरेंद्र मिश्र

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एक्ट्रेस श्वेता त्रिपाठी को वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ से बड़ी पहचान मिली है। इस सीरीज के तीसरे सीजन के बाद श्वेता की ‘ये काली काली आंखें’ का दूसरा सीजन भी नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो चुका है। हाल ही में एक्ट्रेस ने इस सीरीज को लेकर दैनिक भास्कर से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने एक्टिंग के अलावा सामाजिक और पर्यावरण में हो रहे बदलाव के बारे में भी बात की।

एक्ट्रेस ने बताया कि हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि धरती को बचाने में अपना योगदान दें। एक्ट्रेस ने इंटरव्यू के दौरान इस बात का भी खुलासा किया कि वो दूसरों से कपड़े उधार लेकर पहनती हैं। ऐसा उन्होंने क्यों कहा, इस इंटरव्यू में आगे जानेंगे। बहरहाल, पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ खास अंश…

किसी सीरीज का जब कोई किरदार लोकप्रिय होता है, तो उसके अगले सीजन में किरदार को और इंटरेस्टिंग बनाने में किस तरह की चुनौतियां आती हैं?

पहले सीजन में दिल और दिमाग में जो आता है, वही करते हैं। जब शो लोकप्रिय हो जाता है, तब लोग थोड़ा क्रिटिकल हो जाते हैं। हालांकि, मुझे नहीं लगता कि इसके बारे में एक्टर को सोचने की जरूरत है। मिर्जापुर में गोलू की अब तक की जर्नी दर्शक देख ही चुके हैं। ‘ये काली काली आंखें’ का सीजन 2 भी स्ट्रीम हो रहा है। मेरा मानना है कि सच्चे मन और प्यार से कोई भी शो बनाया जाए और एक्टर उसी समर्पण भाव से काम करे, तो दर्शक उस शो को पसंद करते ही हैं।

अब तब आपने जितने किरदार निभाएं हैं, उनमें से किसी रियल किरदार से मिलना हुआ है?

मैंने वेब सीरीज ‘कालकूट’ में एसिड अटैक सर्वाइवर का किरदार निभाया था। उस दौरान मैं कुछ लोगों से मिली थी और उन्हें एसिड अटैक विक्टिम बुलाती थी। हालांकि, वे अपने आपको सर्वाइवर बुलाती हैं। उनकी यह बात सही भी है, क्योंकि वे सर्वाइव कर रही हैं। हमनें उन्हें विक्टिम बनाया है।

उनके भी अपने सपने होते हैं, लेकिन जब उनका सपना टूटता है, तो वह सपना सिर्फ उनका नहीं, बल्कि पूरे परिवार का होता है। ‘मिर्जापुर’ और ‘ये काली काली आंखे’ के अलावा ‘कालकूट’ को भी लोगों ने बहुत पसंद किया है।

अब तक आप कई यादगार किरदार निभा चुकी हैं, इंडस्ट्री में आने से पहले बॉलीवुड की अभिनेत्रियों के बारे में आपकी क्या सोच थी?

हीरो-हीरोइन या किसी भी परफॉर्मिंग एक्टर को काम अच्छा करना चाहिए। राइटर-डायरेक्टर ने जिस किरदार को लिखा है, उस किरदार में जान और सांस डाल देनी चाहिए। यही मेरी सोच है। मेरे लिए यह कोई मायने नहीं रखता है कि आप कैसे दिखते हैं और हाइट कितनी है।

यह समाज हमें बताता है कि हीरो-हीरोइन को किस तरह से दिखना चाहिए। रूप रंग और हाइट आप पर थोपे जाते हैं। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि इस चैलेंज को कैसे लें। मुझे चैलेंज लेने में बहुत मजा आता है।

समाज की जब इस सोच के साथ आप इंडस्ट्री में आईं, तो किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

मुझे इस बात का कभी फर्क नहीं पड़ा कि मेरी हाइट कम है। एक जगह प्रॉब्लम होती है, जब पार्टी में होते हैं। म्यूजिक बजता है और दोस्त लंबे होते हैं। तब सुनाई नहीं देता कि वे क्या कह रहे हैं। मैंने जीवन को हमेशा से ही सहज बनाकर रखा है।

अपनी जिंदगी को जितना कठिन बनाएंगे, जिंदगी उतनी ही कठिन रहेगी। मैंने कम हाइट को कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दी।

इंडस्ट्री में कभी किसी के साथ प्रतिस्पर्धा महसूस हुई?

नहीं, मैंने जिसके भी साथ काम किया है, सबने बहुत ही सपोर्ट किया। ‘मसान’ में ऋचा चड्ढा और ‘हरामखोर’ में नवाजुद्दीन सिद्दीकी से बहुत कुछ सीखने को मिला था। ये मेरे करियर की शुरुआती दौर की फिल्में हैं।

रही बात किसी से प्रतिस्पर्धा की, तो वह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। अगर किसी के प्रति ईर्ष्या हो रही है तो यह समझने की कोशिश करें कि ऐसा क्यों हो रहा है?

जब लोग फिल्म फेस्टिवल में जाते हैं तो मुझे भी ईर्ष्या होती है, क्योंकि मुझे वहां जाना अच्छा लगता है। दुनिया की हर तरह की फिल्में देखने और लोगों से मिलने का मौका मिलता है। ऐसी फिल्में देखने को मिलती हैं, जिसे समाज को जरूरत है। अब मेरी ही फिल्म ‘मसान’ और ‘हरामखोर’ को ही देख लें, इसकी कहानी ऐसी थी, जिसे समाज को बताने की जरूरत थी।

सिनेमा का तो यही मकसद होना चाहिए, जिसके माध्यम से कोई मैसेज दे सकें? सिनेमा में अब काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। इस बदलाव को कैसे देखती हैं?

सिनेमा में जो भी बदलाव आया है, उसके लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म और दर्शकों को धन्यवाद देना चाहती हूं। अच्छे कंटेंट तो बन रहे हैं, लेकिन अगर दर्शक नहीं देखेंगे, तो ओटीटी का प्रयास बेकार हो जाएगा। समाज में जिस तरह का बदलाव दिख रहा है, वैसा ही बदलाव सिनेमा में भी देखने को मिल रहा है।

अब लड़कियों के लिए अच्छे किरदार लिखे जा रहे हैं, क्योंकि अब लड़कियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। हमें ऐसे ही बदलाव की जरूरत थी। जहां पर जेंडर की वजह से ना जज किया जाए। लोगों को बांटने की बजाय, जोड़ने का समय आ गया है। वैसे ही हम सबने जाने और अनजाने में दुनिया की हालत बहुत खराब कर दी है।

वह कैसे?

पूरी दुनिया का पर्यावरण बहुत खराब हो चुका है। इसके जिम्मेदार कहीं ना कहीं हम खुद हैं। पूरी दुनिया का मौसम बहुत बदल रहा है, लेकिन हमें समझ में नहीं आ रहा है कि कब सो कर जागेंगे। आज इस विषय पर बात करने की बहुत जरूरत है। कहीं भी देख लें, लोग प्लास्टिक के बोतल में पानी पीकर इधर-उधर फेंक रहे हैं। कोई भी कोशिश छोटी या बड़ी नहीं होती है।

दुनिया को बचाने के लिए आप जो भी कर सकते हैं, करिए। हम नहीं बचाएंगे तो कौन आएगा? कोई सुपर हीरो तो बचाने नहीं आएगा। हम इस घरती पर रहते हैं, यह हमारा कर्तव्य बनता है।

आप का किस तरह का प्रयास है?

मैं प्लास्टिक के बोतल में पानी नहीं पीती हूं। दुनिया को बचाने की बात तो है ही, पहले खुद को बचाना है। प्लास्टिक बोतल का पानी हमारे सेहत के लिए बहुत ही खराब होता है। मैं कोशिश करती हूं कि मेरे पास जो बचे कपड़े हैं, वहीं पहनूं। मैं उधार लेकर भी कपड़े पहन लेती हूं। अभी तनिष्क के एक इवेंट में अपनी अपनी सासू मां की साड़ी पहनकर गई थी।

जब मैं कहीं छुट्टियों पर जाती हूं तो अपने दोस्तों से कपड़े उधार लेकर जाती हूं। खरीदने से ज्यादा अपनी ननद, दोस्त और सासू मां का कपड़े लेकर जाती हूं। इस तरह से हम लोग एक-दूसरे से कपड़े शेयर करते रहते हैं। इसमें मजा भी बहुत आता है और बहुत सारी वैरायटी मिल जाती है। अगर कपड़े गंदे नहीं हुए हैं तो वापस पहनने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।

मैं खुद के पहनने हुए कपड़े दोबारा पहनती हूं। इससे कपड़े धोने और प्रेस करने में जो इलेक्ट्रिसिटी खर्च होगी, वह बचेगी। अभी पूरी तरह से शाकाहारी बना गई हूं। मैं टिश्यू पेपर भी बहुत कम यूज करती हूं, क्योंकि यह भी पेड़ काटकर बनाए जाते हैं



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