RSS Akhil Bharathiya Prathinidhi Sabha: देश की राजनीति में एक बड़ी बहस परिसीमन को लेकर भी चल रही है। दक्षिण के राज्यों ने बार-बार इस बात की चिंता जताई है कि अगले परिसीमन के बाद दक्षिण के राज्यों की सीटें कम हो सकती हैं। लेकिन इस बीच बीजेपी की मातृ संस्था कहे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इस मामले में बड़ा बयान सामने आया है।
आरएसएस के संयुक्त महासचिव सीआर मुकुंद ने शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि लोकसभा सीटों की संख्या को बढ़ाने या इस बारे में कोई भी फैसला केंद्र सरकार को लेना है और आरएसएस का इस मामले में कोई दखल नहीं है। उन्होंने उत्तर-दक्षिण की बहस को राजनीति से प्रेरित करार दिया।
बेंगलुरु में हो रही ABPS की बैठक
बताना होगा कि आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS) की बैठक 21 से 23 मार्च तक बेंगलुरु के चन्ननहल्ली में आयोजित हो रही है। ABPS को आरएसएस में फैसले लेने वाली सबसे शीर्ष संस्था माना जाता है। सीआर मुकुंद बेंगलुरु में ABPS की बैठक से पहले पत्रकारों से बात कर रहे थे।
परिसीमन को लेकर तमिलनाडु से पंजाब तक क्यों बढ़ रही चिंता
सीआर मुकुंद ने कहा कि केंद्रीय मंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि परिसीमन के बाद दक्षिण के राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या बरकरार रहेगी। मुकुंद ने कहा कि कुछ मुद्दों को राजनीतिक रूप से सुलझाया जा चुका है और कुछ मुद्दों को सामाजिक नेताओं के द्वारा सुलझाए जाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि हम लोग आपस में लड़ें, यह अच्छी बात नहीं है।
याद दिलाना होगा कि तमिलनाडु और दक्षिण के अन्य राज्यों की इसी चिंता को देखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा में स्पष्ट कर चुके हैं कि परिसीमन के बाद दक्षिण के किसी भी राज्य की सीट कम नहीं होगी।
थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का भी विरोध
बताना होगा कि पिछले दिनों दक्षिण के राज्यों की ओर से न सिर्फ परिसीमन बल्कि थ्री लैंग्वेज पॉलिसी के खिलाफ भी सख्त रुख अपनाया गया था। विशेषकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने इन दोनों ही मुद्दों पर केंद्र सरकार का तीखा विरोध किया था। स्टालिन ने थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को लेकर कहा था कि दक्षिण पर हिंदी थोपने की कोशिश की जा रही है।
सिसोदिया बने पंजाब प्रभारी, सौरभ को दिल्ली की जिम्मेदारी… केजरीवाल के बड़े फैसले
इस बारे में आरएसएस का क्या रूख है, इसे लेकर मुकुंद ने कहा कि संघ ऐसा मानता है कि सिर्फ शिक्षा में ही नहीं बल्कि हर दिन के कामों में भी हमारी मातृभाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। मुकुंद ने कहा कि आरएसएस ने दो भाषा या तीन भाषा नीति के संबंध में किसी भी तरह का कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया है।
मणिपुर के हालात को लेकर चिंतित है संघ
मणिपुर के मुद्दे पर भी मुकुंद ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि आरएसएस पूर्वोत्तर के इस राज्य में पिछले 20 महीनों से चल रहे हालात को लेकर चिंतित है। संघ के नेता ने कहा कि मणिपुर में हालात सामान्य होने में अभी वक्त लगेगा और आरएसएस एक सामाजिक संगठन होने के नाते अलग-अलग आदिवासी नेताओं से बातचीत करने की कोशिश कर रहा है।
संघ के नेता ने कहा कि आरएसएस के 100 साल पूरे हो रहे हैं और हम इसका जश्न नहीं मना रहे हैं बल्कि हम अपने काम के विस्तार पर फोकस कर रहे हैं। मुकंद ने कहा कि वर्तमान संघ की 83,129 सक्रिय शाखाएं हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 10,000 से ज्यादा हैं।
बताना होगा कि 1973 में हुए परिसीमन के बाद से संसद और राज्यों में लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या स्थिर है। 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर अगला परिसीमन किया जाना है।
क्यों चिंतित हैं दक्षिण के राज्य?
दक्षिण भारत के राज्यों को इस बात का डर है कि परिसीमन के बाद उत्तर भारत में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ सकती है जबकि दक्षिण की हिस्सेदारी कम हो सकती है। बताना होगा कि भारत में लोकसभा सीटों का परिसीमन जनसंख्या के हिसाब से होता है। जनसंख्या के हिसाब से परिसीमन होने पर न सिर्फ तमिलनाडु बल्कि दक्षिण के अन्य राज्यों- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना में भी लोकसभा सीटों की संख्या कम हो सकती है।
दूसरी ओर उत्तर भारत के राज्यों में सीटें बढ़ेंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर भारत में आबादी ज्यादा है इसलिए दक्षिण के राज्यों को ऐसी आशंका है कि नॉर्थ इंडिया में लोकसभा की सीटें बढ़ेंगी और उनकी सीटें कम हो जाएंगी क्योंकि उन्होंने जनसंख्या पर भी नियंत्रण किया है।
क्लिक कर जानिए औरंगजेब क्यों चाहता था उसकी कब्र बेहद साधारण हो?