41 मिनट पहले
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प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और निर्माता श्याम बेनेगल का सोमवार 23 दिसंबर को मुंबई में निधन हो गया है। उन्होंने मुंबई सेंट्रल के वोकहार्ट अस्पताल में आखिरी सांस ली। उनका अंतिम संस्कार आज शिवाजी पार्क इलेक्ट्रिक क्रिमेटोरियम में होगा। अंतिम संस्कार के लिए उनका पार्थिव शरीर एंबुलेंस से श्मशान घाट पहुंच चुका है। एंबुलेस में एक्टर अतुल तिवारी भी मौजूद थे।
श्याम बेनेगल के नाम सबसे ज्यादा नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड है। उन्हें 8 फिल्मों के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
श्याम बेनेगल का पार्थिव शरीर अस्पताल से निकाला जा रहा है।
एंबुलेंस में श्याम बेनेगल का पार्थिव शरीर रखा जा रहा है।
एंबुलेस में श्याम बेनेगल के पार्थिव शरीर के साथ एक्टर अतुल तिवारी भी मौजूद।
श्याम बेनेगल के अंतिम संस्कार में एक्टर नसीरुद्दीन शाह और बोमन ईरानी भी पहुंचे।
पिता के कैमरे से पहली फिल्म बनाई थी श्याम सुंदर बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 में हैदराबाद में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अर्थशास्त्र में पढ़ाई की। बाद में फोटोग्राफी शुरू कर दी। बॉलीवुड में उन्हें आर्ट सिनेमा का जनक भी माना जाता है। जब वे बारह साल के थे, तब उन्होंने अपने फोटोग्राफर पिता श्रीधर बी. बेनेगल के दिए गए कैमरे पर अपनी पहली फिल्म बनाई थी। उनके परिवार में पत्नी नीरा बेनेगल और बेटी पिया बेनेगल हैं।
14 दिसंबर को 90वां जन्मदिन मनाया
श्याम बेनेगल के 90वें जन्मदिन पर शबाना आजमी ने अपने X अकाउंट पर यह तस्वीर शेयर की थी।
हिंदी सिनेमा को दिए नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, स्मिता पाटिल जैसे कलाकार
श्याम बेनेगल की फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को बेहतरीन कलाकार दिए, जिनमें नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, अमरीश पुरी, अनंत नाग, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल और सिनेमेटोग्राफर गोविंद निहलानी प्रमुख हैं।
जवाहरलाल नेहरू और सत्यजीत रे पर डॉक्यूमेंट्री बनाने के अलावा उन्होंने दूरदर्शन के लिए धारावाहिक ‘यात्रा’, ‘कथा सागर’ और ‘भारत एक खोज’ का भी निर्देशन किया।
पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित, 24 फिल्में कीं
श्याम ने 24 फिल्में, 45 डॉक्यूमेंट्री और 15 एड फिल्म्स बनाई हैं। जुबैदा, द मेकिंग ऑफ द महात्मा, नेताजी सुभाष चंद्र बोसः द फॉरगॉटेन हीरो, मंडी, आरोहन, वेलकम टु सज्जनपुर जैसी दर्जनों बेहतरीन फिल्मों को उन्होंने डायरेक्ट किया।
फिल्म जगत को दिए योगदान के लिए उन्हें 1976 में पद्मश्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा इनके खाते में 8 नेशनल अवॉर्ड हैं। सबसे ज्यादा नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड इन्हीं के नाम है।
बेनेगल को 2005 में भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड भी दिया गया।
पहली फिल्म ‘अंकुर’ 1974 और आखिरी फिल्म ‘मुजीब’ 2023 में बनाई
श्याम बेनेगल ने 1974 में पहली फिल्म अंकुर बनाई थी। इस फिल्म में उन्होंने आंध्र प्रदेश के किसानों के मुद्दों को उठाया था। वहीं, ‘मुजीब – द मेकिंग ऑफ अ नेशन’ उनकी आखिरी फिल्म थी। मुजीब की शूटिंग दो साल तक हुई थी। यह फिल्म मुजीबुर रहमान की जिंदगी पर आधारित थी।
श्याम ने 1974 की फिल्म अंकुर से बतौर डायरेक्टर करियर की शुरुआत की थी।
गुरु दत्त के कजिन हैं श्याम बेनेगल
श्याम सुंदर बेनेगल का जन्म 14 दिसम्बर 1934 को हैदराबाद के मिडिल क्लास परिवार में हुआ। ये मशहूर एक्टर और फिल्ममेकर गुरुदत्त के कजिन हैं। श्याम के पिता को स्टिल फोटोग्राफी का शौक था। श्याम भी अक्सर बच्चों की तस्वीरें लिया करते थे। अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के बाद वे फोटोग्राफी करने लगे। पहली फिल्म ‘अंकुर’ बनाने से पहले उन्होंने एड एजेंसियों के लिए कई एड फिल्में बनाई थीं। फिल्म और एड बनाने से पहले श्याम बतौर कॉपी राइटर काम किया करते थे।
कांस फिल्म फेस्टिवल (1976) में फिल्म निशांत का प्रमोशन करते श्यान बेनेगल। इस मौके पर एक्ट्रेस शबाना आजमी भी मौजूद थीं।
श्याम बेनेगल के निधन पर हस्तियों ने दी श्रद्धांजलि…
शेखर कपूर: श्याम बेनेगल ने सिनेमा में नई लहर लाए थे। उन्हें हमेशा ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने अंकुर, मंथन जैसी अनगिनत फिल्मों के साथ भारतीय सिनेमा की दिशा बदली। उन्होंने शबामा आजमी और स्मिता पाटिल जैसे महान कलाकारों को स्टार बनाया। अलविदा मेरे दोस्त और मार्गदर्शक।
सुधीर मिश्रा: अगर श्याम बेनेगल ने किसी एक चीज को सबसे बेहतर तरीके से अभिव्यक्त किया है, तो वह है साधारण चेहरे और साधारण जीवन की कविता!
इला अरुण: ‘अपने गुरु श्याम बेनेगल के निधन से मैं स्तब्ध और टूट गई हूं। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैंने अपने पिता को खो दिया है।’
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8 नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड रखने वाले श्याम बेनेगल को मंथन, मंडी, आरोहन, भूमिका, जुबैदा जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है। वो न केवल पैरेलल सिनेमा के जनक कहलाए, बल्कि उनकी बनाई फिल्म मंथन, ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुई थी। हालांकि, ये बात कम लोग ही जानते हैं कि ये फिल्म 5 लाख किसानों से 2-2 रुपया चंदा लेकर बनाई गई थी, जिसे देखने के लिए लोग गांव-गांव से ट्रकों में भरकर शहर पहुंचते थे। पूरी खबर पढ़िए…