Vinod Kachave Sexual Harassment Case: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी महिला के बालों को लेकर टिप्पणी करना सेक्सुअल हैरेसमेंट नहीं है। हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणी की। जस्टिस संदीप मारने की सिंगल जज वाली बेंच ने इस मामले में सुनवाई की।
आइए, आपको विस्तार से बताते हैं कि यह पूरा मामला क्या है?
याचिकाकर्ता विनोद कछवे ने अदालत में दायर याचिका में कहा था कि प्राइवेट सेक्टर के एक बैंक में एक ट्रेनिंग सेशन के दौरान उन्होंने महसूस किया कि एक महिला कर्मचारी अपने लंबे बालों को लेकर परेशानी महसूस कर रही थी। कछुवे ने महिला कर्मचारी से हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि उन्हें अपने बालों को संभालने के लिए जेसीबी का इस्तेमाल करना चाहिए। इस दौरान कछवे ने एक पुराना हिंदी गाना ‘ये रेशमी जुल्फें’ भी गाया। लेकिन महिला कर्मचारी को उसका गाना और टिप्पणी अच्छी नहीं लगी। यह घटना 11 जून, 2022 को हुई थी।
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महिला ने दिया पद से इस्तीफा, की शिकायत
जुलाई, 2022 में महिला कर्मचारी ने बैंक में अपने पद से इस्तीफा दे दिया और बैंक के एचआर डिपार्टमेंट में यौन उत्पीड़न की शिकायत की। बैंक ने कार्रवाई करते हुए विनोद कछवे को उसके एसोसिएट रीजनल मैनेजर के पद से हटाकर डिप्टी रीजनल मैनेजर बना दिया।
इस मामले में बैंक की Internal Complaints Committee (ICC) ने भी जांच की और 30 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट दी। जांच में विनोद कछवे को यौन उत्पीड़न का दोषी पाया गया। विनोद कछवे ने इस मामले में पुणे की एक इंडस्ट्रियल कोर्ट में अपील की लेकिन कोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया।
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हाईकोर्ट में दायर की याचिका
इसके बाद कछवे ने मुंबई हाईकोर्ट में अपनी याचिका लगाई। विनोद का पक्ष रखते हुए एडवोकेट सना रईस खान ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल का महिला कर्मचारी को परेशान करने का कोई इरादा नहीं था और उस दौरान महिला कर्मचारी ने किसी तरह की नाराजगी जाहिर नहीं की थी और इस घटना के बाद भी इन दोनों के बीच रिश्ते सामान्य थे।
वकील ने अदालत के सामने तर्क दिया कि अगर इस तरह के आरोपों को स्वीकार भी कर लिया जाता है तो भी यह कानून के मुताबिक यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता।
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अदालत ने क्या कहा?
अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता (महिला कर्मचारी) के प्रति की गई इस टिप्पणी को लेकर यह विश्वास करना मुश्किल है कि ऐसा उसका यौन उत्पीड़न करने के इरादे से किया गया था।’ अदालत ने कहा कि ICC ने केवल एक सामान्य निष्कर्ष देते हुए कुछ अस्पष्ट सिफारिशें की हैं। जस्टिस मार्ने ने जोर देकर कहा कि ICC की रिपोर्ट ने यह नहीं बताया है कि क्या आरोप वास्तव में यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आते हैं।
कोर्ट ने शिकायत दर्ज कराने के समय पर भी सवाल उठाया और कहा कि महिला कर्मचारी द्वारा त्यागपत्र देने के बाद ही शिकायत दर्ज की गई।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘यदि आरोपों को सच भी मान लिया जाए, तब भी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए यौन उत्पीड़न का कोई मामला नहीं बनता।’ कोर्ट ने इंडस्ट्रियल कोर्ट के फैसले और ICC की रिपोर्ट को खारिज कर दिया और यह माना कि याचिकाकर्ता विनोद कछवे द्वारा शिकायतकर्ता के बालों पर की गई टिप्पणी यौन उत्पीड़न के दायरे में नहीं आती।
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