uttarakhand students struggles for schools with trolley cross river daily
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uttarakhand students struggles for schools with trolley cross river daily

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Uttarakhand News: उत्तराखंड के एक गांव घरुरी बच्चों के लिए स्कूल जाकर पढ़ना किसी संघर्ष से कम नहीं है। यहां उन्हें अपने गांव से स्कूल तक जाने के लिए न केवल पैदल चलना पड़ता है, बल्कि ट्रॉली में बैठकर नदी भी पार करनी पड़ती है। स्कूल जाने वाले बच्चों के अलावा इस गांव के लोग अन्य सभी कामों के लिए इसी एक मात्र ट्रॉली मार्ग का सहारा लेते हैं।

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित घरुरी गांव के ये बच्चे इस ट्रॉली के जरिए ही स्कूल में एग्जाम देने के लिए भी गए। इस ट्रॉली को चलाने के लिए थोड़ी दूरी पर खड़े लोगों को रस्सी खींचनी पड़ती है। गांव में ज्यादातर मिडिल और सीनियर लेवल के छात्र ट्रॉली की सवारी के बाद हर दिन दो किलोमीटर का सफर भी करते हैं, जब बोर्ड के एग्जाम हुए तो छात्रों को राजकीय इंटर कॉलेज तक लगभग 2.5 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा था।

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गांव के लिए क्यों अहम है ट्रॉली?

घरुरी गांव में पुल पार करने के लिए इस्तेमाल होने वाली ये ट्रॉली घूमने का अहम और आसान तरीका है, जहां से नजदीकी पुल कम से कम 8 किलोमीटर तक है। खाली ट्रॉली को अपनी तरफ लाने के लिए रस्सी को खींचते हुए 15 वर्षीय छात्रा प्रियंका सामंत ने कहा, “मैं 10 साल की थी जब मैं पहली बार घरारी (ट्रॉली) पर चढ़ी थी। पहले तो यह डरावना था।”

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टीचर्स खींचते हैं ट्रॉली

इसको लेकर स्थानीय निवासी पुष्कर सिंह ने बताया कि अब जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो उन्हें सिर्फ़ एक तरफ़ से रस्सी खींचनी होती है। दूसरी तरफ़ एक शिक्षक ड्यूटी पर रहता है। PWD ने रस्सी खींचने को लेकर निर्देश दिए थे। इसको लेकर 15 वर्षीय कक्षा 10वीं की छात्रा भावना सामंत ने कहा कि उनके लिए पीडब्ल्यूडी का निर्देश राहत की बात है। उसने कहा, “शिक्षकों की तैनाती से पहले, ट्रॉली की रस्सी खींचने से मेरे हाथ और हथेलियाँ दुख जाती थीं।”

भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील है इलाका

स्कूल में लैब असिस्टेंट दीपक चंद हफ़्ते में एक बार ट्रॉली ड्यूटी पर होते हैं। उन्होंने बताया कि जब बारिश होती है तो वे बच्चों को स्कूल जाने से मना करते हैं। पांच छात्रों को नदी पार करने में मदद करने के लिए रस्सी खींचते हुए उन्होंने कहा, “मानसून के दौरान ट्रॉली ले जाना असुरक्षित है क्योंकि यह इलाका भूस्खलन के लिहाज से अहम है।”

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2023 की इसरो रिपोर्ट पुष्टि करती है कि पिथौरागढ़-खेला-मालपा मार्ग राज्य में भूस्खलन के लिए सबसे अधिक संवेदनशील है। यह जिला बादल फटने, अचानक बाढ़ और भारी बारिश से भी प्रभावित हुआ है। 2013 की बाढ़ के दौरान यह जिला राज्य में सबसे ज़्यादा प्रभावित जिलों में से एक था। स्थानीय लोगों का कहना है कि नदी ने घरों के साथ-साथ पैदल चलने वालों के लिए बने पुल को भी बहा दिया, जिससे घरुरी गांव पूरे क्षेत्र से कट गया है।

बह सकता है ये ट्रॉली पुल

इस मामले में PWD के प्रमुख राजेश शर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया है कि 2024 में इस क्षेत्र के लिए एक नया पैदल यात्री पुल स्वीकृत हुआ है। उन्होंने कहा कि हम यह पता लगा रहे हैं कि आखिर पुल बनाया कहा जाए।

सरपंच ने कहा कि उनके द्वारा भेजे गए पत्र के जवाब का अभी भी इंतजार है और उनके पत्र में कहा गया है कि जब तक एक स्थायी पुल का निर्माण नहीं हो जाता, तब तक पीएसी के जवानों को साइट पर तैनात किया जाना चाहिए। बीमार व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं को ट्रॉली का उपयोग करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे वे जवान लोगों की मदद कर सकें।





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