एन. रघुरामन का कॉलम:  अगर बच्चे नाकामी से मायूस हैं तो उन्हें जीतने वाली टास्क दें
टिपण्णी

एन. रघुरामन का कॉलम: अगर बच्चे नाकामी से मायूस हैं तो उन्हें जीतने वाली टास्क दें

Spread the love


  • Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman’s Column If Children Are Disappointed By Failure, Then Give Them A Winning Task

2 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

उन दिनों क्रिकेट में मेरे हीरो सुनील गावस्कर और क्लाइव लॉयड थे। मैं उनकी तरह खेलना चाहता था। लेकिन मैं कभी भी क्रिकेट के किसी भी प्रारूप में रन बनाने के मामले में दहाई के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाया। इनमें दोस्ताना मैच, मोहल्लों के आपसी मुकाबले, गली के छोर पर होने वाले मैच और यहां तक ​​कि स्कूल में होने वाला क्रिकेट भी शामिल है, जिसमें एक ओवर का मैच होता है।

मेरा सबसे बड़ा स्कोर 3 रन का था, लेकिन उसने मुझे 16 घंटे से अधिक समय तक खुश रखा। आपको ताज्जुब हो रहा होगा कैसे? दरअसल, मैं दिन के आखिरी ओवर में नाइट वॉचमैन के रूप में खेलने गया था, 3 रन बनाए और सफलतापूर्वक अपना विकेट बचाकर लौट आया।

अगले दिन को लेकर मेरे मन में बड़ी योजनाएं थीं। लेकिन मैं पहली ही गेंद पर आउट हो गया। वह मेरे क्रिकेट करियर का अंत था, अलबत्ता क्रिकेट में मेरा कोई करियर था ही नहीं! जब भी मैं मैच हारने के बाद उदास घर लौटता, तो मेरी मां मेरे साथ बैठतीं और शतरंज खेलतीं।

वे शतरंज की अच्छी खिलाड़ी थीं और उन्हें कई गेम जीतने के मौके मिलते थे, लेकिन वे जानबूझकर मुझे जीतने देती थीं, ताकि स्कूल क्रिकेट में मिली हार से मेरा ध्यान भटका सकें। धीरे-धीरे मैंने संगम चॉल में आयोजित शतरंज के मैच जीतने शुरू कर दिए, जो उन दिनों नागपुर में एक बड़ी कम्युनिटी थी। आखिरकार मैं लगातार दो साल तक स्कूल में शतरंज चैंपियन बना रहा, जब तक कि मैं वहां से पास होकर अन्यत्र नहीं चला गया।

मुझे बहुत दिनों तक मां की उस रणनीति का अहसास नहीं हुआ। उन्होंने खुद ही मुझे एक बार इसके बारे में बताया। उन्होंने कहा, अगर आपका बच्चा पूरी कोशिशों के बावजूद किसी कारण असफल हो जाता है, तो उसे कोई ऐसा दूसरा काम या खेल दें, जिसमें वह अच्छा हो।

जीत उसके नकारात्मक मूड को सकारात्मक में बदल सकती है और अगर उसे कोई अवसाद है तो उससे बाहर निकाल सकती है। उन्होंने उन दिनों में अवसाद के बारे में बात की, जब बच्चों में इसके बारे में कम ही जाना जाता था।

मुझे उनकी यह सलाह तब याद आई, जब भारतीय क्रिकेट टीम ने भी इसी महीने यही तरीका अपनाया। जब भारत को न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया से लगातार दो टेस्ट शृंखलाओं में हार का सामना करना पड़ा, तो उनके मूड को बेहतर बनाने के लिए शायद एक अधिक हलके-फुलके प्रारूप की आवश्यकता थी।

बुधवार रात को कोलकाता में शुरू हुए और 2 फरवरी को मुम्बई में अपने 5वें मैच के साथ समाप्त होने वाले टी20 से बेहतर प्रारूप और क्या हो सकता है? प्रत्येक मैच के बीच में दो दिन का अंतर है यानी किसी और चीज के बारे में सोचने का समय नहीं है।

यह व्यस्त कार्यक्रम न केवल खिलाड़ियों के मूड को बेहतर करेगा, बल्कि क्रिकेटप्रेमी देश के मूड को भी सुधारेगा, क्योंकि क्रिकेट देखना हममें से अधिकांश के लिए मनोरंजन है। ये मैच इसलिए भी अलग हैं, क्योंकि रोहित शर्मा, विराट कोहली और रवींद्र जडेजा जैसे बड़े नाम इनमें नहीं हैं।

कुलदीप यादव और युजवेंद्र चहल की स्पिनर-जोड़ी- जिन्हें ड्रेसिंग रूम के करीबी लोगों में “कुलचा’ के नाम से जाना जाता है- ने इस सप्ताह की शुरुआत में ईडन गार्डन्स में नेट्स पर भारतीय बल्लेबाजों को गेंदबाजी करते हुए 2017-19 के बीच की कई जीतों की यादें पुनर्जीवित कर दीं।

भारत शृंखला में जीत के दावेदार के रूप में शुरुआत करेगा, क्योंकि हमने टी-20 विश्व कप जीतने के बाद से इस प्रारूप की कोई द्विपक्षीय शृंखला नहीं हारी है। उनका हौसला भी मजबूत होगा, क्योंकि उन्होंने इस प्रारूप में इंग्लैंड के खिलाफ सात में से पांच मैच जीते हैं। हालांकि विश्व-विजेता टीम के केवल पांच खिलाड़ी वर्तमान टीम में मौजूद हैं।

फंडा यह है कि अलग-अलग रणनीतियां अपनाएं और अगर बच्चों को किसी एक क्षेत्र में सफलता नहीं मिलती है तो उन्हें किसी दूसरे क्षेत्र में जीतने का मौका दें। कभी-कभी इससे उन्हें अपनी छिपी प्रतिभा को पहचानने में भी मदद मिलती है!

खबरें और भी हैं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *