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- N. Raghuraman’s Column Your Decisions Today Make Your Future Life ‘guilt Free’
35 मिनट पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
पिछले शनिवार सुबह 11 बजे जब नांदेड़ जाने वाली तपोवन एक्सप्रेस महाराष्ट्र के मनमाड जंक्शन के पास पहुंची, तो आपातकालीन चेन खींची गई, जिससे ट्रेन अचानक रुक गई।
गार्ड एसएस कदम को पता चला कि यूपी का 30 वर्षीय यात्री सरवर शेख ट्रेन से गिर गया है। कदम और लोको पायलट एमएस आलम ने कंट्रोलर से संपर्क किया और ट्रेन को पीछे ले जाने की अनुमति मांगी।
मुझे नहीं पता कि उनके और कंट्रोलर के बीच क्या बातचीत हुई या वे कंट्रोलर को कैसे मनाने में कामयाब रहे। याद रखें, भारतीय रेलवे की पटरियां सबसे व्यस्त होती हैं, और इन पर ट्रेन को रिवर्स में चलाना आसान नहीं होता। लेकिन गिरे हुए यात्री को उठाने के लिए ट्रेन को 700 मीटर पीछे करने का निर्णय लिया गया।
तपोवन एक्सप्रेस के पीछे चल रही एक मालगाड़ी को इससे पहले के स्टेशन पर ही रोक दिया गया, ताकि ट्रेन को पीछे लौटने के लिए जगह मिल सके। साथी यात्रियों ने घायल व्यक्ति को ढूंढ़ा और उसे उठाया, जिसके बाद ट्रेन मनमाड जंक्शन के लिए रवाना हुई।
रेलवे अधिकारियों ने एक एम्बुलेंस की व्यवस्था की, जिसमें शेख को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया और तपोवन एक्सप्रेस आखिरकार नांदेड़ की ओर आगे बढ़ी। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। कदम और आलम की साझा कोशिशें कामयाब नहीं हुईं, क्योंकि घायल यात्री की उसी रात अस्पताल में मौत हो गई।
लेकिन मेरा विश्वास करें कि यात्री की मौत से उन्हें या हम पाठकों को भले अच्छा एहसास नहीं हो, लेकिन कम से कम वो दोनों बिना किसी अपराध-बोध के अपना शेष जीवन बिता पाएंगे और खुद से कहेंगे कि हमने अपनी पूरी कोशिश की, हमने एक अनमोल जीवन को बचाने के लिए कंट्रोलर से शिद्दत से चर्चा की, लेकिन दुर्भाग्य से नियति को कुछ और ही मंजूर था।
कल्पना कीजिए कि अगर उन्होंने ट्रेन रोक दी होती, लेकिन नियम उन्हें ट्रेन को पीछे ले जाने की अनुमति नहीं देते, क्योंकि पीछे वाली ट्रेन बहुत करीब थी तो क्या होता? कंट्रोलर दोनों को यह कहकर मना लेते कि वे पीछे वाली मालगाड़ी के ड्राइवर को उस गिरे हुए यात्री को उठाने का निर्देश दे देंगे।
फिर अगर उनका निधन हो जाता, तब कदम और आलम अपना पूरा जीवन इस अपराध-बोध के साथ बिताते कि काश हमें उस यात्री को उठाने का अवसर मिला होता तो शायद हम उसे बचा पाते। यह कई लोगों को एक महत्वहीन निर्णय लग सकता है, लेकिन मेरे लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है।
इसने मुझे एक अपराध-बोध की याद दिला दी, जो आज भी मुझे खटकता है। मेरी 13 वर्षीय पालतू पिक्सी कैंसर के अंतिम चरण में जीवन-रक्षक प्रणाली पर थी। वह बहुत दर्द में थी और हर गुजरते दिन अपनी आंखों से मुझसे बात करती कि पापा मैं बहुत तकलीफ में हूं, मुझे जाने दो।
डॉक्टरों ने मुझे एक विकल्प दिया- या तो पिक्सी को जीवन-रक्षक प्रणाली से हटा दें, जिस स्थिति में कुछ ही घंटों में उसकी सांसें थम जाएंगी, या जीवन-रक्षक प्रणाली को जारी रखें, जिससे उसकी मृत्यु कुछ दिनों के लिए टल सकती है। मुझे क्या करना चाहिए? मेरी पत्नी और मैंने पिक्सी को बिना दर्द के जाने देने का निर्णय लिया।
लेकिन उस निर्णय का दर्द आज भी हमारे दिल पर हावी है और हमें सोचने पर मजबूर करता है कि अगर हमने उस दिन यह निर्णय नहीं लिया होता तो क्या होता? क्या पिक्सी 13 साल की उम्र के बाद भी लंबे समय तक जीवित रह पाती? हमारे पास इसका कोई जवाब नहीं है।
लेकिन मुझे पता था कि मेरा अपराध-बोध पिक्सी के प्रति प्रेम के कारण है, मेरे इरादे के कारण नहीं। मेरे पास कई पालतू जानवर थे और उनकी भी प्राकृतिक तरीके से मृत्यु हुई है। लेकिन पिक्सी की मृत्यु ने मुझे प्रभावित किया, क्योंकि इसमें मेरा निर्णय शामिल था।
फंडा यह है कि अगर कोई चुनाव आपके लिए मायने रखता है, तो आपको ही उसमें निर्णय लेना चाहिए। कभी-कभी यह गलत हो सकता है, लेकिन अगर आपका इरादा सही है, तो यह आपको भविष्य में गिल्ट से मुक्त जीवन जीने में मदद करेगा।