एन. रघुरामन का कॉलम:  आस्था से अकल्पनीय भी प्राप्त कर सकते हैं
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एन. रघुरामन का कॉलम: आस्था से अकल्पनीय भी प्राप्त कर सकते हैं

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12 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

“बाथरूम जाओ और अपने हाथ-पैर अच्छी तरह धो, फिर यह सिक्का लो और जाकर नदी में डाल दो। सबसे पहले नदी को प्रणाम करो, स्नान करो और इसके बाद नदी किनारे बने विनायक मंदिर पहुंचकर पहले विभूति और कुमकुम माथे पर लगाओ और फिर भगवान गणेश की प्रार्थना करके उनसे अपनी जिंदगी में अच्छा करने के लिए आशीर्वाद लो… ‘ अपने बचपन के दिनों में कानों में सुनाई पड़ने वाली कई सलाह में ये महज चंद हैं।

प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 के दूसरे दिन और आज पहले अमृत स्नान के मौके पर मुझे बचपन के ये कुछ निर्देश याद आ गए, ये सलाहें मुझे तब मिलती थीं जब मैं अपने पैतृक घर के ठीक बाहर बहने वाली शाश्वत कावेरी नदी में कूदने जाता था, जो कुंभकोणम, तमिलनाडु में 1960 के दशक के आसपास की बात थी।

भले ही हम हफ्ते में तीन दिन कावेरी नदी में नहाते थे- बाकी दिन घर के पीछे बने कुएं से पानी निकालकर स्नान करते थे- लेकिन दोनों तरह के स्नान में निर्देश लगभग वही हुआ करते थे। यह एक ड्रिल सरीखी थी, जिसे सुनना पड़ता था।

यहां तक कि मैं अपनी नानी की नकल करता और उनके कहने से पहले खुद ही उन वाक्यों को बुदबुदाने लगता, इस पर वह मुंह खोलकर हंसती, जिससे उनके टूटे दांत दिखते, लेकिन तब भी वह पूरे निर्देश देने से नहीं चूकतीं।

रोज दोहराए जाने वाले इन निर्देशों का कारण मुझे बहुत बाद में समझ आया ताकि ये निर्देश रूल बुक बनकर न रह जाएं बल्कि वयस्क जिंदगी में जीवनशैली बनें। मालूम हो कि बच्चे अगर बहती नदी में ज्यादा देर रुकते हैं, तो वे अनजाने में पेशाब कर सकते हैं। यही कारण है कि उन्हें पहले वॉशरूम यूज करने के लिए कहा जाता है, फिर पवित्र नदी जैसे कावेरी में स्नान से पहले हाथ-पैर धोने का निर्देश दिया जाता है।

उन्हें बहती नदी में तांबे के सिक्के डालने के लिए कहा जाता था, लेकिन इसका कारण वह सामान्य धारणा नहीं है कि इससे सौभाग्य आता है। दरअसल प्राचीन समय में अधिकांश मुद्रा तांबे की बनी होती थी, आज के जैसे स्टील के सिक्के नहीं होते थे। तांबा शरीर के लिए उपयोगी धातु है।

नदी में सिक्के फेंकना एक तरीका था जिससे हमारे पूर्वजों ने यह सुनिश्चित किया कि हम पानी के रूप में पर्याप्त तांबे का सेवन करें क्योंकि नदियां पीने के पानी का एकमात्र स्रोत थीं। इसे प्रथा बनाने से हम सबने इसे नियम की तरह माना। यहां तक कि साल 1865 में सिक्कों में 95% तांबा और 5% जिंक होता था।

आखिरकार साल 1982 में सिक्के बदल गए, जैसे कि आधुनिक दौर में हैं और इमसें 5% तांबा और 95% जिंक होने लगा। यही कारण है कि पिछले हफ्ते त्रिवेणी संगम में स्नान से पहले मैंने वॉशरूम खोजी और निवृत्त हुआ लेकिन नदी में सिक्के नहीं डाले क्योंकि आधुनिक सिक्के स्टेनलेस स्टील के बने हुए हैं।

स्नान के बाद मेरे नाना सूर्य भगवान की उपासना करने और श्लोक दोहराने के लिए कहते और यह सुनिश्चित करते कि बच्चों को पर्याप्त विटामिन डी मिल सके। कावेरी नदी से ठीक 25 फीट दूर तट पर विनायक मंदिर था, जहां वह पूरे ललाट पर विभूति लगाते क्योंकि इसमें वह ताकत होती है कि स्नान के बाद गीले बालों के पानी को अवशोषित कर सके और सर्दी को अंदर न आने दे।

(अब आप कल्पना कर सकते हैं कि क्यों कुंभ में संत पूरे शरीर पर भभूति या विभूति लपेटे रहते हैं) चूंकि हमारे ललाट पर, दोनों भृकुटियों के बीच वह स्थान है, जो कि प्राचीन काल से ही पूरे शरीर का बड़ा नर्व पॉइंट माना जाता है, इसलिए इस मान्यता के साथ लाल तिलक (कुमकुम) लगाते हैं कि ऊर्जा का हृास रोका जा सके और शरीर में ऊर्जा बनी रहे और एकाग्रता के विभिन्न तल काबू में रहें। कुमकुम लगाते हुए भृकुटियों के मध्य के क्षेत्र, जिसे ‘आज्ञा चक्र’ भी कहते हैं, वह स्वतः दबता है। इससे चेहरे की मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह भी अच्छा रहता है। यह सूची अंतहीन है।

फंडा यह है कि अगर आप आस्था पर यकीन करते हैं, तो यह भी आपको कुछ ऐसा दर्शन करा देती है, जिसमें विज्ञान की भी मौजूदगी होती है।

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