एन. रघुरामन का कॉलम:  किसी भी कला का अस्तित्व अगली पीढ़ी की तैयारी पर निर्भर है!
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एन. रघुरामन का कॉलम: किसी भी कला का अस्तित्व अगली पीढ़ी की तैयारी पर निर्भर है!

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7 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

साल 2012 में फिल्म ‘जब तक है जान’ के एक गाने की शूटिंग के दौरान एक पेशेवर गिटार टीचर शाहरुख खान के साथ मौजूद था। वो इसलिए क्योंकि गाने के उस सीन में वह लंदन की सड़कों पर गिटार बजाते हुए अपने हुनर से कैटरीना को अपने ‘बस्किंग स्किल’ से रिझाने की कोशिश कर रहे थे।

बस्किंग का मतलब सार्वजनिक जगहों पर लोगों का मनोरंजन करना है। इसमें नृत्य, गान या कई अन्य कला रूप शामिल हो सकते हैं। इन लोगों को “बस्कर्स” कहा जाता है। सैकड़ों सालों से बस्कर्स ने इस उम्मीद में लोगों का मनोरंजन किया है कि राह चलते लोगों से पैसे, खाना-पीना या अन्य तोहफे मिलें। और ये एक्टिविटी ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में बहुत सामान्य है।

लेकिन ये कला अब वहां दम तोड़ रही है और ये इसलिए नहीं है क्योंकि लोग इसे ऊपर नहीं लाना चाहते बल्कि इसलिए क्योंकि वहां की सरकार विश्वविद्यालयों में संगीत विभाग बंद करने पर विचार कर रही है। 2200 टीचर्स के साथ हुए सर्वे में 20% म्यूजिक टीचर्स का कहना है कि म्यूजिक की अब कोई रेगुलर क्लास नहीं रह गई है और यदि है भी, तो उसमें स्पेशलिस्ट नहीं पढ़ाते।

40% माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा नवमीं से अनिवार्य संगीत पाठ्यक्रम नहीं हैं। इससे चिंतित होकर- जिसके निश्चित तौर पर भविष्य में कई प्रभाव पड़ेंगे- एड शिरीन ने हाल ही में ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया कि दशकों से खत्म हो रही संगीत शिक्षा में सुधार के लिए सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में 250 मिलियन पाउंड निवेश किया जाए।

एड शिरीन के एल्बम लाखों डॉलर्स में बिकते हैं और वह दुनिया के बेस्ट सेलिंग म्यूजिक आर्टिस्ट में से एक हैं। हाल ही में उन्होंने भारत में भी कई शो किए हैं। एल्टन जॉन, कोल्डप्ले जैसे अन्य प्रसिद्ध संगीतकार भी अन्य कलाकारों के साथ एड शिरीन का सपोर्ट कर रहे हैं। शिरीन ने सरकार से अनुरोध किया है कि म्यूजिक एजुकेशन को अपने एजेंडे में सबसे प्राथमिक रखने के लिए इन मुद्दों पर एक साथ काम करते हुए एक इंटर-डिपार्टमेंटल टास्क फोर्स बनाई जाए।

पिछले हफ्ते हैदराबाद की यात्रा के दौरान मुझे ये घटनाक्रम तब याद आए, जब सुना कि ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ने शहर भर में स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स स्थापित करने का निर्णय लिया है। इन कॉम्प्लेक्स में ऐसी अत्याधुनिक सुविधाएं होंगी, जो खिलाड़ियों की वर्तमान जरूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।

दिलचस्प बात ये है कि कुछ खेल परिसरों की योजना कई फ्लाईओवर के नीचे बनाई गई है, जिसमें जॉगिंग-साइकिलिंग ट्रैक शामिल हैं। इन आगामी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में बैडमिंटन, टेबल टेनिस, मुक्केबाजी, स्केटिंग, जिम्नास्टिक्स, मेडिटेशन, योग स्पेस, यहां तक कि पेडल कोर्ट और पिकलबॉल कोर्ट भी होंगे।

देश के मुख्य शहरों में बढ़ते निर्माण के कारण हरियाली खत्म हो रही है और अप्रत्यक्ष रूप से खेल धीरे-धीरे इन बढ़ते शहरों की रूपरेखा में भी पीछे हो रहा है। यही कारण है कि मैं हैदराबाद की नगरीय निकाय द्वारा क्रिकेट, बास्केटबॉल, हॉकी और फुटबॉल के लिए आउटडोर स्पेस को शामिल करते हुए 12 खेल परिसरों का निर्माण करने के लिए पैसे खर्च करते हुए देखकर मुझे खुश हुई।

कई लोगों ने सुना होगा कि आईपीएल (जो वर्तमान में चल रहे हैं) की तर्ज पर होने वाली अपार्टमेंट क्रिकेट लीग (एपीएल) बेंगलुरु व मुंबई जैसे शहरों में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। यहां एक ही लोकेलिटी के अपार्टमेंट्स आईपीएल की तरह आपस में क्रिकेट प्रतिस्पर्धा करते हैं। और जब ये प्रारूप लोकप्रियता हासिल कर लेगा, तो वो दिन दूर नहीं जब अच्छे खिलाड़ियों की नीलामी भी होगी।

अगर शहर ऐसे अच्छी आदतें विकसित करने के लिए उत्सुक हैं, ताकि ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके जिससे शहर स्वस्थ रहे, तो उसे अपने लिए जगहें खोजनी होंगी, फिर चाहे यह फ्लाईओवर के नीचे हों।

फंडा यह है कि डिग्री की तरह ही म्यूजिक जैसे हुनर को भी अर्थव्यवस्था के लिए असेट के रूप में माना जाना चाहिए और इसमें निवेश जारी रहना चाहिए ताकि अगली पीढ़ी को जिम्मेदारियां संभालने में मदद मिल सके। नहीं तो सिर्फ संगीत ही नहीं, हर कला धीरे-धीरे गायब हो जाएगी।

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