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- N. Raghuraman’s Column Why Is The Pocket Always On The Left Side Of The Shirt?
26 मिनट पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
यह सवाल मेरे नाना से 1960 के दशक में कहीं पूछा गया था, क्योंकि वे हमेशा सफेद धोती और सफेद कमीज पहनते थे। उन्हें कभी भी वयस्कों द्वारा पैंट पहनना और पैंट की जेब में पैसे रखना पसंद नहीं था। उनका दृढ़ विश्वास था कि पैसे शर्ट की बाईं जेब में रखने चाहिए, कहीं और नहीं। जब मेरे चचेरे भाई और मैं- जो गर्मियों की छुट्टियां उनके घर पर मना रहे थे- ने एक बार उनसे इस बारे में पूछने की हिम्मत की तो उन्होंने तुरंत जवाब नहीं दिया।
दो सप्ताह बाद, वे हमें तमिल भाषा की पौराणिक फिल्म ‘कर्णन’ दिखाने ले गए, जिसमें शिवाजी गणेशन और एनटी रामा राव जैसे सुपरस्टार थे। गणेशन ने कर्ण की भूमिका निभाई थी और एनटीआर ने भगवान कृष्ण की। कई अन्य बड़े अभिनेताओं ने महाभारत के अलग-अलग पात्रों की सशक्त भूमिकाएं निभाई थीं। 1964 में रिलीज हुई इस सफल फिल्म को देखने के बाद उन्होंने हमें अपनी व्याख्या के साथ उसका अर्थ समझाया।
उन्होंने कहा- कर्ण ‘दानवीर’ थे, जो उनसे कुछ भी मांगने आने वालों को कभी खाली हाथ नहीं लौटाते थे। रणभूमि में बुरी तरह घायल होने के बावजूद कर्ण मृत्यु को प्राप्त नहीं हो रहे थे, क्योंकि दान से अर्जित पुण्य उन्हें सुरक्षित रखे हुए था। तब भगवान कृष्ण एक ब्राह्मण के वेश में उनके पास आए और उनसे अपना पुण्य दान में देने के लिए कहा। कर्ण मुस्करा दिए।
कृष्ण को लगा कि वे अपना पुण्य नहीं देंगे, इसलिए उन्होंने पूछा, तुम क्यों मुस्करा रहे हो? कर्ण ने कहा, मैं आपके प्रति अनुग्रहीत हूं जो आपने मुझसे वह मांगा, जो मैं इस रणभूमि में घायल होने के बावजूद दे सकता हूं। अगर आपने भोजन या धन मांगा होता तो मुझे इनकार करना पड़ सकता था।
मैं आपको वह पुण्य देता हूं, जो मैंने अब तक के किए से अर्जित किया और वह भी, जो मैं आपके लिए अपने इस पुण्यदान से अर्जित कर रहा हूं। और ऐसा कहकर कर्ण ने प्रतीकात्मक तरीके से अपने हृदय को उस स्थान पर छुआ, जहां तीर लगा था।
नाना ने आगे कहा कि कर्ण अपने शरीर के किसी भी हिस्से को छू सकते थे, लेकिन उन्होंने हृदय को छुआ, क्योंकि हृदय हमेशा शुद्ध होता है। कृष्ण को भी इससे बुरा लगा और उन्होंने पूछा कि वो बदले में क्या चाहते हैं?
कर्ण जानते थे कि वे भगवान कृष्ण हैं, इसलिए उन्होंने कहा कि अगर मुझे अगला जन्म मिले, तो मैं उसमें भी एक दानवीर बनना चाहूंगा। यह सुनकर कृष्ण भगवान की आंखें नम हो गईं। फिर फिल्म में भगवान कृष्ण अपने आप ही को ही चित्रित करते हैं और कहते हैं कि उन्होंने बेईमानी की है।
फिर नाना ने कहा, कृष्ण जानते थे कि दुनिया कैसे चलनी चाहिए और उन्होंने वैसा ही किया। कर्ण जानते थे कि उन्हें क्या करना चाहिए और उन्होंने वैसा ही किया। अब उनमें से प्रत्येक की महानता को मापने वाले हम कौन होते हैं? कर्ण एक व्यक्ति के रूप में सर्वोच्च शिखर पर थे। उनकी दानशीलता की कोई सीमा नहीं थी, जबकि उन्होंने स्वयं कभी किसी से कुछ नहीं मांगा।
फिर नाना ने हमारे सवाल का जवाब देते हुए कहा, यही कारण है कि शर्ट की जेब बाईं तरफ वहां होती है, जहां हमारा दिल होता है। जब हम अपने शर्ट की जेब में हाथ डालकर कुछ सिक्के (उस जमाने में सिक्के ज्यादा होते थे) निकालते हैं तो प्रतीकात्मक रूप से अपने दिल को छू रहे होते हैं और उन सिक्कों को सच्चे दिल से दे रहे होते हैं। सच कहूं तो यह दार्शनिक व्याख्या उस समय तो मुझे समझ नहीं आई थी, लेकिन मुझे यह जरूर समझ आ गया था कि जब आप कुछ देते हैं, तो उसे सच्चे दिल से दें और इससे आपको बहुत सारा पुण्य मिलेगा!
फंडा यह है कि बच्चों को सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करें और उन्हें दार्शनिक व्याख्या के साथ जवाब दें, भले ही वे उसे तत्काल समझ न पाएं। एक ना एक दिन उन्हें वह जरूर समझ आएगा।