एन. रघुरामन का कॉलम:  संघर्ष नहीं, आत्मविश्वास के साथ सकारात्मक चीजें करें
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एन. रघुरामन का कॉलम: संघर्ष नहीं, आत्मविश्वास के साथ सकारात्मक चीजें करें

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2 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

इस अनौपचारिक रोजगार बाजार में कर्मचारी 15 वर्ष से अधिक आयु के भी हो सकते हैं। उन्हें 15,000 रुपए वेतन दिया जाता है। उनसे कहा जाता है कि “तुम काम करो या न करो, तुम्हें 15000 रुपए मिलेंगे।’ इस आंकड़े को दो या अधिक बार दोहराने का कारण यह है कि इससे युवा मन में यह विश्वास पैदा हो जाता है कि यह पैसा उनका है।

इसके अलावा, उन्हें बताया जाता है कि यदि वे काम के लिए कहीं जाते हैं तो उन्हें यात्रा भत्ता दिया जाएगा और कंपनी बिना किसी पूछताछ के उनके भोजन और आवास का खर्च वहन करेगी। कंपनी में कोई भी उनके प्रदर्शन के बारे में नहीं पूछेगा।

उन्हें छोटे-छोटे काम दिए जाते रहेंगे और यदि वे अपने काम पूरे कर लेते हैं तो उन्हें स्थायी कर दिया जाएगा। अन्यथा उन्हें हटा दिया जाएगा, अलबत्ता यह अब तक कभी नहीं हुआ। झारखंड का रहने वाला मनोज मंडल (35) इसी तरह काम करता है।

वह बिहार के साहेबगंज जैसे ग्रामीण इलाकों में जाकर कम पढ़े-लिखे युवाओं की पहचान करता है, जिन्हें पैसों की जरूरत होती है, ताकि वे मोबाइल फोन, अच्छे कपड़े, जूते खरीद सकें और कुछ मनोरंजन का भी मजा ले सकें। इस तरह करण कुमार (19) और उसके 15 वर्षीय नाबालिग भाई को इस काम के लिए चुना गया।

अच्छे कपड़ों के अलावा उन्हें कुछ हिंदी बोलने की ट्रेनिंग भी दी गई। कर्मचारी रोमांचित थे जबकि मालिक मनोज जानता था कि कर्मचारियों को इतना तैयार तो होना ही चाहिए कि यात्रा के दौरान सहयात्रियों को किसी तरह का शक न हो। फिर उन्हें आत्मरक्षा के बहाने अलग से हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है और किसी के विरोध करने पर उनका इस्तेमाल करना सिखाया जाता है।

इस उम्र में ये सारी गतिविधियां उन्हें आकर्षित करती हैं। सभी स्तरों की ट्रेनिंग के बाद उन्हें गोरखपुर और आस-पास के जिलों- जैसे संत कबीर नगर, महाराजगंज, कुशीनगर के रेलवे स्टेशनों पर ऑन-जॉब ट्रेनिंग के लिए ले जाया जाता है।

वहां उन्हें व्यस्त बाजारों और रेलवे स्टेशनों से लोगों के मोबाइल फोन चुराने के लिए कहा जाता है। चुराए गए फोन को एक गिरोह को सौंप दिया जाता है, जो उन्हें सीमा पार बांग्लादेश और नेपाल भेज देता है। इससे चोरी गए फोन को ट्रैक करने और गिरोह के पकड़े जाने की संभावना कम हो जाती है।

इस आत्मविश्वासी गिरोह को पिछले शुक्रवार को गोरखपुर जीआरपी के एसपी संदीप कुमार मीना ने 200 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने के बाद धर पकड़ा। जीआरपी ने उनसे 10 लाख रुपए के 44 एंड्रॉइड फोन, एक तमंचा और एक चाकू बरामद किया।

अगर कोई युवाओं के इतनी छोटी उम्र में अपराध करने की वजह देखे तो वो पाएगा कि मुखिया (इस मामले में सरगना मनोज) हर बात को पूरे भरोसे के साथ बता रहा था। उसने शुरुआती महीनों में बिना किसी सवाल-जवाब के उन्हें पूरा वेतन दिया और नई जीवनशैली अपनाने का लालच दिया। और जब वे इसके आदी हो गए, तो वे वही करने लगे जो मनोज ने उन्हें करने को कहा!

अब औपचारिक रोजगार बाजार को देखें, जिसमें हम-आप हैं। हमारे वेतन को सीटीसी (कॉस्ट टु द कम्पनी) कहा जाता है और उसमें भी एक वैरिएबल वेतन है, जो कहता है कि ‘यदि’ आप 5X प्रतिशत प्रदर्शन करते हैं तो आपको पूरा वैरिएबल वेतन मिलेगा; यदि आप 4X प्रदर्शन करते हैं तो आनुपातिक रूप से इसे कम किया जाएगा, ‘लेकिन’ न्यूनतम 2X वैरिएबल वेतन की गारंटी है।

जबकि औपचारिक रोजगार के पहले वर्ष को पूरा करने के बाद ही इन ‘यदि’ और ‘लेकिन’ को प्रस्तुत करना चाहिए। युवा मन को अपने कामकाजी जीवन को संघर्ष के साथ शुरू नहीं करना चाहिए और औपचारिक रोजगार से मिलने वाले सामाजिक सम्मान की आदत डालनी चाहिए।

फंडा यह है कि 2024 कैसा रहा, इस पर चिंता न करें। अभी यह सुनिश्चित करने का समय है कि 2025 में हम जो कुछ करेंगे, उसमें 100% आत्मविश्वास हो और 1 प्रतिशत भी ‘यदि’ और ‘लेकिन’ न हो यानी संघर्ष न हो। यही यह तय करने का एकमात्र तरीका है कि अगली पीढ़ी आत्मविश्वास के साथ सकारात्मकता को अपनाए।

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