एन. रघुरामन का कॉलम:  सुझाई गई प्रशिक्षण अवधि से कभी समझौता न करें
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एन. रघुरामन का कॉलम: सुझाई गई प्रशिक्षण अवधि से कभी समझौता न करें

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7 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

साल 1991 में उसके पास भारी वाहन चलाने का वैध लाइसेंस था। उसने दशकों तक कई नामी परिवहन कंपनियों के साथ काम किया और वह मुंबई-दिल्ली मार्गों पर नियमित आया जाया करता था, जब तक कि कोविड ने उसकी नौकरी नहीं ले ली। उसके पास मैनुअल गियर वाली डीजल बसें, जो कि 6 मीटर लंबी होती हैं, जिनकी इंजन पावर 390 से 450 एनएम (न्यूटन मीटर) के बीच होती थी, उन्हें चलाने का बिना किसी दुर्घटना के क्लीन रिकॉर्ड था।

1 दिसंबर 2024 को उसे 12 मीटर लंबी ओलेक्ट्रा निर्मित सी9 इलेक्ट्रिक बस चलाने दी गई। मुंबई की सार्वजनिक परिवहन इकाई बेस्ट के स्वामित्व में ये सबसे लंबी बस है, जो 3000 एनएम के पावर पर चलती है। इसमें दोनों तरफ दो मोटर लगे हैं, जो एक्स्ट्रा थ्रस्ट व पावर देते हैं।

जो लोग इंजन पावर नहीं समझते, वह ऐसे ले सकते हैं जैसे एक छोटी हैचबैक कार व आधुनिक सुविधाओं के साथ बेहतर व तेज इंजन वाली लक्जरी कार में अंतर जैसा कुछ। लेकिन सबसे बड़ा फर्क वो प्रेशर है जो ड्राइवर एक्सीलरेटर पर डालता है।

उच्च एनएम वाली गाड़ियों के एक्सीलरेटर पर जरा-सा भी प्रेशर इंजिन को जोर देता है और चंद सेकंड्स में गति बढ़ा सकता है। यही कारण है कि जब ड्राइवर एक से दूसरे तरह के वाहनों में शिफ्ट होते हैं जहां इंजन की शक्ति भिन्न होती है, तो वाहन निर्माता कंपनियां निर्धारित अवधि के लिए उनकी फिर से ट्रेनिंग पर जोर देती हैं।

इस मामले में ये छह हफ्ते था। लेकिन बेस्ट ने उसे सिर्फ तीन दिन की ट्रेनिंग देकर बस थमा दी, हालांकि खुशकिस्मती से शुरुआती छह दिन कुछ नहीं हुआ। 9 दिसंबर की रात को 54 वर्षीय संजय मोरे मुंबई के उपनगर कुर्ला में एक तंग सड़क पर बस चला रहा था, जो उसकी ट्रेनिंग के बाद सातवां दिन था और उसने कई गाड़ियां रौंदते हुए पैदल यात्रियों पर बस चढ़ा दी, जिसमें सात लोगों की मौत हो गई और 42 घायल हो गए।

ये दिल दहला देने वाला है, जब एक 19 वर्षीय लड़की अपने पहले ही दिन घर से बाहर काम पर निकली और कभी वापस नहीं लौटी, एक 70 वर्षीय बुजुर्ग जो फोटोकॉपी के लिए बाहर निकले और फिर नहीं लौट सके, एक टैक्सी चालक जो पुलिस स्टेशन से अपनी गाड़ी के कागजात लेने गए और 15 मिनट में घर लौटने का वादा किया, लेकिन उनका वादा, वादा ही रह गया।

याद रखें, एक आधुनिक वाहन को चलाने में केवल तीन दिनों में पारंगत नहीं हो सकते जबकि दिशा-निर्देश स्पष्ट रूप से छह हफ्ते का समय बताते हैं। दुर्भाग्य से, भारत में प्रोजेक्ट को समय पर पूरा करने की जल्दबाजी के चलते एचआर विभाग ट्रेनिंग को कोने में कहीं पटक देता है।

आखिरी घड़ी में कामकाजी लोगों की भर्ती की योजना बनाने से हमेशा कामकाज में संकट खड़ा हो जाता है, जिससे एचआर विभाग को प्रशिक्षण की एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) से समझौता करना पड़ता है। यही कारण है कि विमान निर्माण कंपनियां जोर देकर कहती हैं कि जब एक पायलट एयरबस या बोइंग के एक ही फैमिली के भीतर भी एक प्रकार के विमान से दूसरे प्रकार के विमान को चलाने जा रहा होता है, तो वे सिम्युलेटर और मशीन (विमान पढ़ें) दोनों पर पूर्ण प्रशिक्षण पर जोर देते हैं।

एक पायलट के लिए इस तरह के छोटे-से प्रशिक्षण कार्यक्रम की कल्पना करें जिसके हाथों में सैकड़ों जीवन होते हैं और जो जमीन से कई हजार फीट ऊपर उड़ता है। समय आ गया है कि हर मशीन- दो पहिया से कार तक, सामान्य बस से लेकर उच्च शक्ति वाली एसी इलेक्ट्रिक बसों तक, छोटी बसों से लेकर लंबी बसों तक, एक सामान्य परिवहन सुविधा को एक पेशेवर हाथों में सौंपने से पहले अनुकूल माहौल दिया जाए। अब समय आ गया है कि इंसानों के हुनर को आधुनिक और त्वरित हालात के लिए तैयार किया जाए। नहीं तो मूल्यवान मानव जीवन लालची निगमों के लिए सिर्फ व्यापार बनकर रह जाएगा।

फंडा यह है कि यदि कोई कंपनी (न केवल वाहन निर्माण कंपनी) प्रशिक्षण अवधि का सुझाव देती है या एसओपी जारी करती है, तो खरीदने वाली कंपनी या व्यक्ति को भी उन सुझावों का 100% प्रतिशत का पालन करना चाहिए। अन्यथा मानव जीवन हमेशा जोखिम में रहेगा।

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