9 घंटे पहले
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एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु
‘इंदौर (प्लेन नंबर भी बोला) जाने वाले यात्रियों के लिए यह गेट में बदलाव की सूचना है, आपसे आग्रह है कि गेट क्रमांक 44 से गेट क्रमांक 45बी की ओर प्रस्थान करें। आपको हुई असुविधा के लिए हमें खेद है।’ दुनियाभर के एयरपोर्ट्स पर कुछ ऑपरेशनल कारणों से इस तरह की एनाउंसमेंट रोज की बात है।
लेकिन अगर यह एनाउंसमेंट मुंबई एयरपोर्ट पर होती है, तो यात्रियों के लिए वाकई बहुत असुविधा हो जाती है। क्योंकि गेट क्रं. 44 ऊपर वाले फ्लोर पर है और गेट क्रं. 45 ग्राउंड फ्लोर पर है और नीचे पहुंचने के लिए सभी यात्रियों को पहले लिफ्ट तक चलकर जाना पड़ता है।
चूंकि मैं आखिरी में फ्लाइट में चढ़ता हूं क्योंकि लैपटॉप बैग के अलावा मेरे हाथ में कुछ नहीं होता, ऐसे में लिफ्ट में सबसे पहले मैं गया। अचानक किसी यात्री ने पीछे से धक्का देते हुए अंदर धकेला जैसा मुंबई की लोकल में होता है। इस पर किसी ने आपत्ति नहीं ली क्योंकि ज्यादातर मुंबईकर लोकल ट्रेन के इस व्यवहार के आदी हैं। उस लिफ्ट में थोड़ी-सी जगह थी।
एक दुबला-पतला व्यक्ति आया और तपाक से 360 डिग्री घूमकर लिफ्ट के डोर की ओर मुंह करके खड़ा हो गया। तभी एक अवांछित घटना घटी- उसका 18 इंच का बैकपैक (लंबाई में नहीं बल्कि मोटाई में) एक बच्चे के माथे पर जोर से लगा और उसे बुरी तरह चोट लग गई। इससे बच्चा चिल्लाया और उसके बाद क्या हुआ होगा, आप कल्पना कर सकते हैं। उस व्यक्ति ने बस सॉरी कहा और जब तक बाकी यात्री उस घायल बच्चे को देख रहे थे, वह व्यक्ति पतली गली से निकल गया।
और तब मुझे लगा कि यह सबसे उपयुक्त समय है, जब हमें हमारे ट्रैवल एटिकेट्स और साथ ले जाने वाले सामान की बात करनी होगी। ऐसे कई यात्री हैं, जो अपने हैंडबैग में बहुत सारा सामान ठूंसकर भर लेते हैं और प्लेन में सिर के ऊपर बने बिन में सामान ऐसे रखते हैं, जैसा बिन का पूरा हिस्सा उनका हो। उन्हें अहसास ही नहीं होता कि इन ओवरहेड बिन को घेरने से न सिर्फ बिन की कीमती जगह भरती है, बल्कि बोर्डिंग में भी व्यवधान होता है, जिससे अंततः फ्लाइट भी लेट हो जाती है।
यहां बताने की भी जरूरत नहीं कि इससे साथी यात्रियों को भी परेशानी होती है। फ्लाइट में मौजूद क्रू ऐसे बेतरतीब हैंडबैग वाली जगह के कब्जे पर नज़र रखते हैं, लेकिन उनके पास इतना समय नहीं होता, न ही इतने लोग हैं कि लंबे विमान में दोनों तरफ की बिन की हर जगह पर निगरानी रखें। सच कहूं तो ट्रेन में भी हम ऐसे ही पेश आते हैं, जहां अपना लगेज बर्थ के नीचे ऐसे जमाते हैं, मानो बाकी की सात बर्थ पर और कोई यात्री ही न हो।
दिलचस्प बात है कि ट्रेन में यात्रियों, खासकर लोअर बर्थ के यात्रियों को लगता है कि उनकी सीट के नीचे की पूरी जगह उनकी है और वे जितना चाहें, उतना लगेज वहां रख सकते हैं। पर वे भूल जाते हैं कि वह जगह मिडिल और अपर बर्थ के यात्री के साथ भी साझा करनी होती है।
याद करें, जब कोई यात्री अपना मोटा-सा बैकपैक रखने के लिए आपका लगेज कुछेक इँंच खिसकाता है और आप डर जाते हैं कि कहीं आपका सामान चोरी तो नहीं हो जाएगा। और फिर आपकी यात्रा उन तनाव भरे क्षणों के साथ शुरू होती है। इसी तरह प्लेन में भी ओवरहैड बिन की वह जगह दो कतार में बैठे छह यात्रियों के लिए साझा रूप से होती है।
इसलिए किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट, खासकर प्लेन में सफर के दौरान ध्यान रखने वाली कुछ चीजें यहां आपको याद दिलाई हैं। अगर आप अपने बैग को ढंग से और साइड में रखें, जैसा बुकशेल्फ पर किताबें जमाते हैं, तो वहां ज्यादा बैग आ सकते हैं। बिना पूछे किसी का भी सामान यहां-वहां न खिसकाएं।
बैग ऊपर रखने से पहले जरूरी चीजें निकाल लें। कुछ यात्री बार-बार विमान में स्टोरेज बिन खोलते हैं या ट्रेन में बर्थ से नीचे उतरते हैं ताकि हेडफोन, चार्जर, टैबलेट, किताबें और यहां तक कि नाश्ता-पानी जैसी चीजें निकाल सकें। इसमें बस थोड़ी-सी योजना की जरूरत होती है, इससे सहयात्री कंफर्टेबल होते हैं।
फंडा यह है कि हर पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सामान रखने की जगह कम ही होती है, इसलिए सिर्फ अपनी ही जगह का इस्तेमाल करें, और कुछ नहीं।