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- N. Raghuraman’s Column Do ‘Hooponopono’ And See How Good Your Heart Rate Is!
7 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
ठीक इसी दिन- 27 दिसम्बर, 2004- को मैं इस अखबार के लिए ऑपरेशन सुनामी का नेतृत्व कर रहा था। जब सुनामी की लहरें तट से टकराईं तो तुरत-फुरत में इंदौर से मेरी टीम की एक महिला साथी को घटनास्थल पर भेजा गया।
मैं व्यक्तिगत रूप से हर उस ब्योरे को देख रहा था, जो वे वहां से मुझे भेज रही थीं। पहले मरने और लापता होने वालों की संख्या 10,000 को छू गई थी, जो बाद में कम होकर 8,018 पर आ गई। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र तमिलनाडु का नागापट्टिनम था, जहां हताहतों की अंतिम संख्या 6,065 थी।
उन्होंने मुझे भावुक लहजे में तीन और चार साल के कई बच्चों के बारे में बताया था, जो अभी भी अपने माता-पिता की तलाश कर रहे थे। शुरुआती हफ्तों में कुछ बच्चे परिवारों से मिल गए, जबकि कुछ के लिए स्थानीय कलेक्टर जे. राधाकृष्णन अभिभावक बन गए।
उन्होंने मुझे जो तस्वीरें भेजीं, वे मेरी याददाश्त से कभी नहीं मिटीं। मैंने सुनामी को कोसा। मैंने वास्तव में ईश्वर से पूछा कि वह इन बच्चों के साथ इतना क्रूर क्यों है। वह महिला साथी उन बच्चों को सुरक्षित हाथों में देखकर ही वहां से लौटीं।
इस गुरुवार को मुझे सौम्या (24) और मीना (23) के बारे में पता चला, जिन्हें राधाकृष्णन ने अपने संरक्षण में लिया था। बाद में उन्हें सरकारी बाल गृह भेज दिया गया और वे 18 साल की उम्र तक अनाथालय में रहीं। 2020 में एक दम्पती ने उन्हें अपना लिया।
सौम्या की शादी 2022 में हुई और हाल ही में उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। मुझे नहीं पता कि सौम्या और मीना उन तस्वीरों वाले वही सुनामी-पीड़ित बच्चे थे या नहीं, लेकिन मेरे दिल के कोने में कहीं न कहीं मुझे लगा कि वे वही होंगे और मुझमें खुशी की एक लौ जाग उठी, जैसे कि मैं उन्हें 20 साल पहले से जानता था।
इस घटना को याद करने का एक और कारण है। बीते रविवार को, बेंगलुरू के मणिपाल हॉस्पिटल्स में नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. गरिमा अग्रवाल, केम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर अपनी फ्लाइट में सवार होने के लिए दिल्ली रवाना हो रही थीं। उन्होंने समीप के गेट पर हंगामा देखा।
शुरू में उन्होंने इसे अनदेखा किया, लेकिन जब अफरातफरी मच गई तो उन्हें एहसास हुआ कि यह एक मेडिकल इमरजेंसी थी। एक आदमी को बेहोश पड़ा देखकर वे अपने सारे बैग छोड़ वहां जा पहुंचीं और उसकी स्थिति का आकलन किया।
उनके पास स्टेथेस्कोप भी नहीं था, लेकिन वे यह महसूस कर सकती थीं कि उस व्यक्ति का शरीर ठंडा पड़ चुका था, वह बेहोश था और उसकी नाड़ी नहीं चल रही थी। उन्हें लगा उस व्यक्ति की सांस की नली को साफ करना जरूरी था, इसलिए उन्होंने सीपीआर करना शुरू कर दिया। लेकिन उसके मुंह में उल्टी के कारण गंदगी थी, इसलिए उन्होंने उसे घुमाया ताकि सांस की नली साफ हो जाए और फिर सीपीआर शुरू कर दिया।
कुछ मिनट बाद, डॉक्टर और नर्स की एयरपोर्ट मेडिकल टीम ऑटोमेटेड एक्सटर्नल डिफिब्रिलेटर लेकर पहुंची और उन्होंने मरीज के दिल को झटके दिए। उन्होंने प्रयास जारी रखे और महत्वपूर्ण दवाएं दीं। धीरे-धीरे, मरीज की नब्ज वापस आ गई, हालांकि वह अब भी बेहोश था।
15 मिनट बाद उसकी हालत स्थिर हो गई और उसे एक अस्पताल ले जाया गया, जहां बाद में उसे बेहतर स्थिति में बताया गया। जब डॉ. अग्रवाल सबसे अंत में फ्लाइट में चढ़ीं तो उनके कारण हुई देरी के चलते दूसरे यात्री नाराज हुए होंगे और उन्हें कोसा होगा, लेकिन जब उन्हें पता चला कि एक जान बचाने में उन्होंने कितना महत्वपूर्ण योगदान दिया था तो उन्होंने ‘हूपोनोपोनो’ किया होगा।
यह एक हवाईयन प्रार्थना है, जिसे माफी मांगने के लिए किया जाता है। इसमें कहा जाता है : ‘मुझे माफ कर दो, कृपया मुझे माफ कर दो, शुक्रिया, मैं तुमसे प्यार करता हूं।’ विज्ञान कहता है कि जब आप ‘हूपोनोपोनो’ करते हैं तो आपकी उत्तेजित हृदय गति ‘संतुलन में वापस आ जाती है’ या ‘चीजों को सही कर देती है।’
फंडा यह है कि अपने शरीर को ग्लानि, शर्म, तंग करने वाली यादों या बुरे अहसासों- जो आपके मन को नकारात्मक विचारों पर कायम रखते हैं- से साफ करने के लिए प्रार्थना का बार-बार जप करना एक ताकतवर जरिया है। ‘हूपोनोपोनो’ उन्हीं में से एक है।