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- Chetan Bhagat’s Column Success Is Impossible Without A Good Narrative
8 घंटे पहले
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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार
कहानियां केवल किताबों या फिल्मों में ही नहीं होतीं। वे जीवन में भी हैं। हम किन कहानियों पर विश्वास करते हैं, इससे हमारी सोच बनती है। कहानियां राजनीति का भी हिस्सा हैं। आज विपक्ष बदहाल अवस्था में क्यों है। क्योंकि, उनके पास कोई अच्छी कहानी नहीं है।
इंडिया गठबंधन ने लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन जल्द ही उसने लय खो दी। आम चुनाव के बाद मात्र नौ महीनों में भाजपा पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गई है। इस दौरान उसने हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में बड़ी जीत हासिल की। ये क्यों हुआ, इस पर विश्लेषकगण मंथन कर रहे हैं।
तमाम कारण गिनाए जा रहे हैं- विपक्ष को सत्तापक्ष की तुलना में समान अवसर नहीं मिलना, मीडिया का साथ न देना, बूथ प्रबंधन में नाकामी, संघ की जमीनी पहुंच, प्रधानमंत्री की लोकप्रियता, हिंदू वोटों का एकजुट होना, विपक्षी एकता का अभाव, किसी मजबूत नेता का न होना आदि।
ये तमाम बातें अपनी जगह पर सही हैं, लेकिन वे मूल मुद्दे को नहीं बतातीं और वह है- किसी अच्छी कहानी का न होना। क्योंकि अगर विपक्ष के पास कोई अच्छी कहानी हो, जिस पर लोग विश्वास करना चाहें, तो ऊपर गिनाए कारण फीके पड़ जाएंगे।
एक अच्छी कहानी कैसी होती है? विडम्बना यह है कि यह विपक्ष की नजरों के ठीक सामने घटित हुई है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के बाद से ही भारतीयों के सामने यह नैरेटिव प्रस्तुत किया है कि विकास के माध्यम से भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाया जाए, जिससे नागरिकों के जीवन में सुधार आए और विदेश में भारत का कद बढ़े, साथ ही भारतीय राष्ट्रवाद और हिंदू धर्म की प्रमुख संस्कृति को पुनर्स्थापित करते हुए उसका उत्सव मनाया जाए। खुद से पूछें, क्या यह कहानी बड़ी संख्या में भारतीयों को पसंद नहीं आएगी?
क्या भाजपा के पास हमेशा से यह कहानी थी? नहीं। उससे भी अतीत में नैरेटिव की भूलें हुई हैं। 2014 से पहले, भाजपा ने केवल हिंदुत्व पर केंद्रित नैरेटिव बनाने की कोशिश की थी। इससे लाभ तो हुआ, लेकिन इतना नहीं कि उन्हें ठोस बहुमत मिल सके। कालांतर में इसमें ‘विकास’, ‘गुजरात मॉडल’ भी जोड़ा गया।
इसके लिए सुशासन में सक्षम और भारतीय संस्कृति के प्रति भावनात्मक झुकाव रखने वाले नेता की आवश्यकता थी। नरेंद्र मोदी के उदय के साथ हिंदुत्व और ‘अच्छे दिन’ के वादों ने भाजपा को वह नैरेटिव दिया, जिससे उसे प्रभुत्व मिला है। इसके बावजूद भाजपा अपने नैरेटिव को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए उसमें बदलाव करती रहती है। ‘विकसित भारत’ ऐसा ही लक्ष्य है।
दूसरी ओर, विपक्ष के पास आज न तो कोई बड़ी कहानी है और न ही ऐसे नेता हैं, जो लोगों को उनमें विश्वास दिला सकें। वर्तमान में विपक्ष का नैरेटिव जिन फैक्टर्स के इर्द-गिर्द घूमता है, उनमें से एक है जातिगत असमानता।
इसे वे दूर करना चाहते हैं, लेकिन हम ठीक से नहीं जानते कि वे इसे कैसे करेंगे। हमारे यहां शीर्ष सरकारी नौकरियों और कॉलेजों के दाखिलों में पहले से ही 50% आरक्षण है। क्या हम इसे और बढ़ाएंगे? इसे अमल में कैसे लाया जाएगा, कानून कैसे बनेगा?
दूसरा नैरेटिव सेकुलरिज्म के इर्द-गिर्द घूमता है। इसको लेकर एक अच्छी कहानी बुनी जा सकती है कि कैसे एक सामंजस्यपूर्ण समाज सबसे समृद्ध भी होता है। लेकिन विपक्ष का सेकुलरिज्म मुख्यतः अल्पसंख्यक वोट बैंक को सुरक्षित रखने के इर्द-गिर्द ही मंडराता रहता है।
उन्होंने वेलफेयर योजनाओं के नैरेटिव को भी आगे बढ़ाने की कोशिश की है। समस्या यह है कि भाजपा ने भी ऐसी ही योजनाएं शुरू कर दी हैं और केंद्र व अनेक राज्यों में सत्ता में नहीं होने के कारण विपक्ष इसमें भाजपा से होड़ नहीं कर सकता।
लेकिन क्या भारत एक गरीब देश बना रहेगा और अपने गरीब नागरिकों की सहायता के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाता रहेगा? या क्या आपके पास भारत को समृद्ध बनाने और केवल तभी तक कल्याणकारी योजनाएं चलाने की योजना है, जब तक कि नागरिक स्वयं समृद्ध न हो जाएं? यह एक बारीक अंतर है, लेकिन ये अलग-अलग कहानियां हैं।
विपक्ष कामचलाऊ गठबंधनों, सत्ता-विरोधी भावनाओं और इस उम्मीद के सहारे बैठा है कि भाजपा कुछ गलतियां करेगी। लेकिन उन्हें अपनी कहानी और उसे विश्वसनीय बनाने वाले तत्वों को सही ढंग से प्रस्तुत करने की जरूरत है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)