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- Neerja Chaudhary’s Column Rahul Had Told Sonia If You Become PM, I Will Take A Big Step
3 घंटे पहले
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नीरजा चौधरी
भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल में हिस्सा लेने पहुंचीं वरिष्ठ पत्रकार-लेखिका नीरजा चौधरी से दैनिक भास्कर के सम्पादक निमेश शर्मा ने विशेष बातचीत की। पढ़ें, इंटरव्यू के सम्पादित अंश : … … … … Q. आपकी किताब ‘हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ प्रधानमंत्रियों के फैसले लेने के तरीकों के बारे में है। लेकिन इसमें ना नेहरू हैं ना मोदी… जबकि ये सर्वाधिक समय के लिए पीएम रहे हैं। – पं. नेहरू के फैसले उस समय के हैं, जब मैं राजनीति समझती नहीं थी। अगर मैंने उन्हें इस किताब में शामिल किया होता तो यह सिर्फ कट-एंड-पेस्ट होता। वहीं मोदी का कार्यकाल अभी चल रहा है। मैंने जितने भी प्रधानमंत्रियों के बारे में किताब में लिखा है, उनके विश्वस्त और करीबी लोगों से बातचीत के आधार पर लिखा है… और लोग अपनी बात खुलकर तब रखते हैं जब आप सत्ता से बाहर होते हैं। मैं मोदी के फैसलों पर भी लिखूंगी, लेकिन वो मेरा फ्यूचर प्रोजेक्ट है।
Q. इंदिरा गांधी और संजय गांधी के संदर्भ में चामुंडा देवी मंदिर का किस्सा क्या था? – 1977 के बाद इंदिरा गांधी का मंदिर जाना बढ़ गया था। उनको डर था कि कहीं जनता पार्टी के लोग संजय को कुछ ना कर दें। वो अक्सर कहती थीं मैं तो पहाड़ों में चली जाऊंगी… छोटा-सा घर ले लूंगी, रिटायर हो जाऊंगी, मेरी जरूरतें ही क्या हैं? लेकिन वो चाहती थीं कि संजय गांधी सुरक्षित रहें। जब पहले इंदिरा प्रधानमंत्री बनी थीं 1966 में, तब उन्होंने संविधान की शपथ ली थी। लेकिन जब वो दोबारा 1980 में पीएम बनीं, तब उन्होंने ईश्वर के नाम पर शपथ ली। तब उनके करीबी सहयोगी अनिल बाली ने उनसे कहा था कि आपको चामुंडा मंदिर जाना चाहिए। यह हिमाचल के पालमपुर में है। उन्होंने 22 जून की तारीख तय की, लेकिन अचानक उन्होंने आने से इनकार कर दिया। इस बात से पुजारी बहुत नाराज हुए थे। उसने कहा था कि मां माफ कर देंगी सामान्य लोगों को अगर वो नहीं आते, लेकिन जब शासक ही नहीं आता तब मां माफ नहीं करतीं। पुजारी ने यह भी कहा कि देखना यह रोती हुई मंदिर में आएंगी। 23 जून को जब इंदिरा दिल्ली जा रही थीं, तब खबर आई कि संजय गांधी का प्लेन क्रैश कर गया है। जब अगले दिन इंदिरा जी के करीबी चामुंडा मंदिर से लौटे, तो इंदिरा जी ने पूछा, ‘क्या संजय की मौत इसलिए हुई क्योंकि मैं मंदिर नहीं गई?’ हालांकि, कुछ महीनों बाद इंदिरा जी चामुंडा मंदिर गईं और वे वहां खड़े रोए जा रही थीं।
Q. आपकी किताब में जिक्र है कि वीपी सिंह ने कहा था, ‘कुछ लोग सरकार चलाते हैं, पर मैंने इतिहास लिखा है।’ इसके पीछे क्या संदर्भ था? – हां, उन्होंने यह बात कही थी। मंडल के बाद उनको लगता था पूरा ओबीसी तबका उनके साथ खड़ा हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। देश में कई ओबीसी लीडर बन गए। वीपी सिंह दोबारा पावर में नहीं लौट पाए। उन्होंने एक बार कहा था, ‘मैंने गोल तो कर दिया, लेकिन मेरी टांग टूट गई।’ आज उनको कोई याद नहीं करता। कोई पार्टी वीपी सिंह पर कभी कोई कार्यक्रम नहीं करती।
Q. आपने किताब में आखिरी चैप्टर मनमोहन सिंह पर लिखा है। उन्हें आप कैसे देखती हैं? – जब मैंने यह किताब लिखी थी तब मनमोहन जी को मैंने पत्र लिखा था कि मैं उन्हें किताब उपहार करना चाहती हूं। उन्होंने मुझे बुलाया। जब मैं गई तो देखा कि टेबल पर मेरी किताब रखी थी। फिर उन्होंने अपना चैप्टर खुलवाया और मुझसे कहा कि आपने मेरे चैप्टर का जो शीर्षक (‘द अंडररेटेड पीएम हू ट्रायम्फ्ड’) दिया है, वो मुझे बेहद पसंद आया। मनमोहन सिंह को लोग कमजोर प्रधानमंत्री मानते थे, क्योंकि लोग कहते थे कि सोनिया गांधी ही वास्तविक पीएम हैं। हालांकि कम लोग जानते हैं कि सोनिया ही प्रधानमंत्री होतीं अगर राहुल ने उनसे नहीं कहा होता कि ‘अगर आप प्रधानमंत्री बनीं तो मैं कुछ बड़ा कदम उठा लूंगा।’ हालांकि मनमोहन का एक रुख यह भी है कि वो यूएस न्यूक्लियर डील पर पूरी कांग्रेस से अड़ गए थे। मनमोहन सिंह ने 39 महीने तक यह लड़ाई अपने ही लोगों से लड़ी और जीती।
Q. कई बार नरेंद्र मोदी की शैली की तुलना इंदिरा गांधी से होती है। मोदी के फैसले लेने के तरीके किस प्रधानमंत्री से मेल खाते हैं? – मुझे लगता है नरेंद्र मोदी ने हर प्रधानमंत्री से कुछ ना कुछ लिया है। अक्सर लोग उनकी तुलना इंदिरा गांधी से करते हैं। लेकिन मुझे डॉ. कर्ण सिंह ने कहा था कि मोदी खुद की तुलना पं. नेहरू से करना चाहते हैं। अगर आप प्रधानमंत्री म्यूजियम जाएंगे तो देखेंगे कि वहां तीन दीवारों पर सभी प्रधानमंत्रियों की तस्वीरें हैं, सिवाय दो के। जैसे ही आप घूमेंगे, जिस दरवाजे से आए थे, उसके दोनों तरफ दो तस्वीरें हैं- एक तरफ नेहरू, एक तरफ मोदी! यह वाकई दिलचस्प है!