पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:  अपने मन, वचन और कर्म में एक होने की जरूरत है
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: अपने मन, वचन और कर्म में एक होने की जरूरत है

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6 घंटे पहले

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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

पं. विजयशंकर मेहता

मनुष्य के शरीर की ये विशेषता है कि उसे जैसा ढालो वैसा ढल जाता है। इस शरीर से हम बहुत सारे पाप और पुण्य करते हैं। श्रीराम ने पुण्य की एक परिभाषा दी है। उन्होंने कहा है, ‘पुन्य एक जग महुं नहिं दूजा, मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा।’

जगत में पुण्य एक ही है, दूसरा नहीं, और वह है मन, कर्म और वचन से ब्राह्मणों के चरणों की पूजा करना। वैसे इसका सामान्य अर्थ ही ये निकलेगा कि ब्राह्मणों का मान किया जाए। लेकिन कृष्ण जी ने कहा है कि ब्राह्मण वो है, जिसका आचरण ब्रह्म जैसा है।

मनुष्य ऐसी जीवनशैली जिए, जो उसे ब्रह्म की ओर ले जाए, वही ब्राह्मण है। जाति का अपना मसला अलग है। तो श्रीराम का कहना है कि जो मन में है, वही बोलो और जो सोचो और बोलो, वही करो। यही श्रीराम की दृष्टि में बहुत बड़ा पुण्य है।

इसलिए हमें इस शरीर से लगातार ये प्रयास करना चाहिए कि मन, वचन और कर्म में हम एक हों। धर्म और आध्यात्मिक दुनिया में कभी-कभी भक्त परेशान हो जाते हैं। भक्त एक प्रयोग करके देख सकते हैं। थोड़े समय मन पर प्रयोग करें, कुछ समय वचन पर करें, कुछ समय कर्म पर करें और फिर तीनों पर एक साथ करें। फिर जो राम चाहते हैं वो हम कर रहे होंगे।

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