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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column Have So Much Faith In Your God That Your Love Does Not Decrease
1 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
गुरु और शिष्य का सम्बंध होता अनूठा है। इसमें गुरु अपने शिष्य का अहंकार हर लेते हैं तो शिष्य के परमात्मा तक जाने का मार्ग सरल हो जाता है। और इसका माध्यम होता है गुरुमंत्र। लेकिन गुरु और शिष्य के सम्बंधों का एक अलग ही दृश्य देखने को मिला रामकथा में।
श्रीराम जब अपनी लीला समेटकर जाने वाले थे तो एकान्त में आकर उनके गुरु वशिष्ठ जी ने श्रीराम को ईश्वर मानकर कुछ निवेदन किया। वो निवेदन भी निराला था। वशिष्ठ जी कहते हैं- ‘नाथ एक बर मागउं राम कृपा करि देहु।
जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुं घटै जनि नेहु॥’ अर्थात्- हे नाथ रामजी, मैं आपसे एक वर मांगता हूं, कृपा करके दीजिए। आपके चरणकमलों में मेरा प्रेम जन्म-जन्मांतरों तक कभी ना घटे। यहां शब्द आए हैं कि प्रेम कभी ना घटे।
मनुष्य का स्वभाव होता है कि ईश्वर के प्रति उसका प्रेम घटता और बढ़ता रहता है। तो वशिष्ठ जी कहते हैं कि इतना भरोसा रखो अपने परमात्मा पर कि प्रेम घटे नहीं। भले ही बढ़े ना, पर कम से कम बना रहे।