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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column A Devotee Should Respect The Religion Of Others
36 मिनट पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
सारे अवतारों में महापुरुषों ने अलग-अलग तरीकों से एक ही बात बताई है कि मानव को भक्त होना चाहिए। भक्ति करना जीवन के प्रति एक आश्वासन होता है कि सारे काम हम कर रहे हैं, लेकिन कराने वाली शक्ति कोई और है।
एक भक्त की ये विशेषता होती है कि वह अपने धर्म के प्रति समर्पित रहता ही है। लेकिन दूसरे के धर्म का वह आदर करता है। श्रीराम ने भी एक बार कहा है कि- भगति पच्छ हठ नहिं सठताई। दुष्ट तर्क सब दूरि बहाई। अर्थात्, जो भक्त अपनी भक्ति के पक्ष में हठ करता है, लेकिन दूसरे के मत का खंडन करने की मूर्खता नहीं करता और जिसने दूसरे के धर्म के खंडन करने के कुतर्कों को बहा दिया है, ऐसा भक्त मुझे प्रिय है। अभी महाकुम्भ चल रहा है। ये इसी का प्रमाण है।
हमें अपने धर्म का मान करना चाहिए। दूसरे क्या कहते हैं, ये उन पर छोड़ दो। क्या जवाब देंगे लोगों का जब सवाल ही बेकार हो। जब आप एक धर्म के प्रति समर्पित हो रहे होते हैं तो दूसरे आपको अपने धर्म के प्रति बेहोश करने का प्रयास करेंगे।
भक्ति होश का एक नाम है। इसलिए एक भक्त को कभी बेहोश नहीं होना चाहिए। जब आप होश में होते हैं तो वही करते हैं, जो चाहते हैं। लेकिन जब बेहोश हो जाते हैं, तो करते कुछ और हैं लेकिन होता कुछ और ही है।