माघ पूर्णिमा से जुड़ी मान्यताएं
माघी पूर्णिमा पर प्रयाग में श्रद्धालुओं का कल्पवास भी खत्म हो जाएगा। कल्पवास में श्रद्धालु गंगा, संगम आदि पवित्र नदियों के तट पर माघ मास में ठहरते हैं और रोज नदी स्नान, पूजा-पाठ, मंत्र जप करते हैं।
माघ मास में सभी देवी-देवता मनुष्य रूप में प्रयाग के संगम में स्नान करने आते हैं। ऐसी मान्यता है।
माघ पूर्णिमा पर नदी स्नान के साथ ही अपने इष्टदेव की विशेष पूजा करनी चाहिए। इस दिन हवन, व्रत और मंत्र जप भी करना चाहिए।
जो लोग नदी स्नान नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए।
स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। जो लोग नदी स्नान करते हैं, वे नदी के जल से ही सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं।
माघी पूर्णिमा की दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए। इसके लिए कंडों (उपले) के अंगारों पर पितरों का ध्यान करते हुए गुड़-घी अर्पित किया जाता है। हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को चढ़ाया जाता है।
माघी पूर्णिमा पर लोग व्रत करते हैं, इस व्रत में तिल का सेवन करने की और तिल का दान करने का विशेष महत्व है।
इस पर्व पर भगवान विष्णु का देवी लक्ष्मी के साथ अभिषेक करना चाहिए। भगवान को तुलसी के पत्तों के साथ मिठाई का भोग लगाएं। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।
पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ने-सुनने की भी परंपरा है।
हनुमान जी का चोला चढ़वाएं। चोला चढ़वाना यानी हनुमान जी की प्रतिमा का श्रृंगार करवाना। अगर ये संभव न हो तो हनुमान जी को सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ा सकते हैं। भगवान के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें।