गौरव पाठक16 मिनट पहले
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शादी की तस्वीरें और वीडियो बहुत ज्यादा भावनात्मक महत्व रखते हैं। पीढ़ियों तक यादों को संजोकर रखने में इनका अमूल्य योगदान होता है। अब जबकि शादी की फोटोग्राफी के पैकेज लाखों में आने लगे हैं तो इस क्षेत्र में उपभोक्ता अधिकारों को समझना बहुत जरूरी हो गया है।
कानूनी उपाय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7) के तहत फोटोग्राफी सेवाओं को भाड़े पर लेने वाला कोई भी व्यक्ति उपभोक्ता है। धारा 2(11) में उस कमी को परिभाषित किया गया है, जिससे उपभोक्ता को नुकसान होता है। कानून ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरह के लेन-देन को मान्यता देता है और शिकायत घटना के दो साल के भीतर उपभोक्ता आयोगों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से दर्ज की जा सकती है। फोटोग्राफी सेवाएं अधिनियम की धारा 2(42) के तहत परिकल्पित “सेवाओं’ की परिभाषा के अंतर्गत आती हैं। अनुबंध संबंधी दायित्व उपभोक्ता मंच फोटोग्राफी सेवाओं में स्पष्ट अनुबंधों के महत्व पर जोर देते हैं। साक्षी कुमार बनाम राणा गुरतेज सिंह (2018) मामले में चंडीगढ़ राज्य आयोग ने कहा कि फोटोग्राफी अनुबंध में भले ही समय इतना मायने ना रखता हो, लेकिन फोटोग्राफरों को उचित समय के भीतर काम पूरा करना चाहिए। अनुबंध में स्पष्ट रूप से डिलीवरेबल्स (फोटो की संख्या, संपादन की जरूरत और डिलीवरी फॉर्मेट) का उल्लेख होना चाहिए। आयोग ने माना कि फोटो का चयन एक व्यक्तिगत मामला है और फोटोग्राफरों से उनके स्तर पर फोटो को शॉर्टलिस्ट करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि उन्हें आमंत्रित लोगों का शादी वाले परिवार से जुड़ाव के बारे में पता नहीं होता। इस मामले में अगर फोटोग्राफर ने उचित प्रक्रिया का पालन किया और अनुबंध के अनुसार संपादित फोटो वितरित किए तो आयोग ने उनके अधिकारों की भी रक्षा की। डेटा लॉस और बैकअप एक बड़ी चिंता तकनीकी विफलताओं के कारण शादी की तस्वीरों का नुकसान होता है। सत्यम गुरुंग बनाम सैमडेन योल्मो (2024) मामले में जब एक फोटोग्राफर ने दावा किया कि बिजली गिरने से शादी की तस्वीरों वाली हार्ड डिस्क क्षतिग्रस्त हो गई थी तो पश्चिम बंगाल राज्य आयोग ने 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया। आयोग ने कहा कि कि पेशेवर फोटोग्राफरों को उपकरण और डेटा बैकअप के लिए उचित सुरक्षा उपाय करने चाहिए। शिकायतकर्ता को तकनीकी विफलताओं के दावों को विशेषज्ञ रिपोर्ट या फोरेंसिक विश्लेषण जैसे साक्ष्यों से साबित करना चाहिए। आयोग ने कहा कि पेशेवर फोटोग्राफर होने के नाते इस तरह के डेटा नुकसान को रोकने के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए थी। ऐसे मामलों में केवल अग्रिम राशि वापस करने से फोटोग्राफरों की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। समय पर डिलीवरी जगदीश चंद्र शर्मा बनाम आर.के. वर्मा (2005) मामले में दिल्ली राज्य आयोग ने एक ऐसे मामले पर विचार किया, जिसमें फोटोग्राफर ने पांच साल तक शादी का एल्बम नहीं दिया था। आयोग ने कहा कि “किसी की बेटी के विवाह समारोह के फोटो एल्बम का भावनात्मक मूल्य होता है और इसकी अहमियत कभी भी खत्म नहीं हो सकती, क्योंकि यह आने वाले समय के लिए यादों को संजोए रखता है।’ फोटोग्राफर को एल्बम देने और लंबित भुगतान जब्त करने का निर्देश दिया गया। इसी तरह, पी. मुरलीकृष्णुडु बनाम वरिकल्ला श्रीनिवास (2016) मामले में जब फोटोग्राफर 85% अग्रिम भुगतान लेने के बावजूद वादा किए गए समय पर एल्बम देने में विफल रहा तो जिला फोरम ने ब्याज सहित राशि वापसी का आदेश दिया। गुणवत्ता मानक फोटोग्राफरों की जिम्मेदारी केवल तस्वीरों की क्वांटिटी से कहीं अधिक है। फोटोग्राफरों को वादा किए गए गुणवत्ता मानकों के अनुसार संपादित तस्वीरें देनी चाहिए। सत्यम गुरुंग मामले में गूगल ड्राइव के माध्यम से असंपादित फोटो साझा करने को पर्याप्त नहीं माना गया। आयोग ने नोट किया कि विवाह फोटोग्राफी अनुबंधों में क्वांटिटी और क्वालिटी दोनों मायने रखता है।
अपने अधिकारों की रक्षा स्मृतियों को संजोने के महत्व के मद्देनजर उपभोक्ताओं को विस्तृत लिखित अनुबंध हासिल करना चाहिए, जिसमें डिलीवरेबल्स, समयसीमा और गुणवत्ता मानकों का उल्लेख किया गया हो। अनुबंध में बैकअप प्रक्रियाओं, संपादित फोटो की जरूरतों और तकनीकी विफलताओं के मामले में वैकल्पिक व्यवस्था का भी जिक्र होना चाहिए। उपभोक्ता को सभी कम्युनिकेशन और भुगतानों का रिकॉर्ड रखना चाहिए। उपभोक्ता आयोगों ने विवाह फोटोग्राफी मामलों में लगातार पर्याप्त मुआवजा दिया है। हालांकि मौद्रिक मुआवजा भावनात्मक नुकसान की पूरी तरह से भरपाई नहीं कर सकता, फिर भी यह कीमती यादों को खोने की पीड़ा को कम करने में मदद कर सकता है। (लेखक सीएएससी के सचिव भी हैं।)