रसरंग में आपके अधिकार:  बगैर नोटिस वाहन जब्त करने पर कर्जदाता मुआवजे का हकदार
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रसरंग में आपके अधिकार: बगैर नोटिस वाहन जब्त करने पर कर्जदाता मुआवजे का हकदार

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गौरव पाठक3 घंटे पहले

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फाइनेंस की गई गाड़ियों की जब्ती को लेकर बढ़ते विवादों की वजह से उपभोक्ता अदालतें फाइनेंस कंपनियों और कर्जदाताओं के अधिकारों के बीच संतुलन साधने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाने को विवश हुई हैं। डिफॉल्ट के बढ़ते मामलों और जबरन कब्जे की शिकायतों के बीच हालिया कुछ फैसलों ने कर्ज की वसूली और गाड़ियों की जब्ती से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर स्पष्टता प्रदान की है।

उपभोक्ता का दर्जा और संरक्षण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत वाहन फाइनेंस लेने वाला व्यक्ति आमतौर पर उपभोक्ता माना जाता है। हालांकि चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट बनाम बलजीत सिंह (2024) मामले में पंजाब राज्य आयोग के एक फैसले में एक महत्वपूर्ण अपवाद स्थापित हुआ: अगर वाहन पूरी तरह से वाणिज्यिक उद्देश्य जैसे टैक्सी व्यवसाय के लिए उपयोग किए जाते हैं तो कर्जदाता को तब तक ‘उपभोक्ता’ नहीं माना जा सकता, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह वाहन का उपयोग केवल स्व-रोजगार के माध्यम से आजीविका कमाने के लिए कर रहा है। आयोग ने यह भी नोट किया कि एक से अधिक वाणिज्यिक वाहनों का स्वामित्व आमतौर पर व्यवसाय संचालन को दर्शाता है, न कि स्व-रोजगार को।

सबूत पेश करने का दायित्व जबरन या अवैध वाहन जब्ती साबित करने का पूरा दायित्व कर्जदाता पर होता है। महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड बनाम गुरमीत सिंह (2024) मामले में राष्ट्रीय आयोग के समक्ष एक ऐसा प्रकरण आया, जिसमें शिकायतकर्ता ने पुलिस की मदद से वाहन को जबरन जब्त किए जाने का आरोप लगाया था। आयोग ने पाया कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत पुलिस रिपोर्ट ने भी जबरन जब्ती के दावों का निर्णायक रूप से समर्थन नहीं किया था। इस निर्णय ने यह स्थापित किया कि बिना पर्याप्त पुख्ता साक्ष्य के मात्र आरोप अवैध जब्ती को साबित करने के लिए अपर्याप्त हैं। यहां तक कि पुलिस शिकायत में भी यदि अन्य साक्ष्य न हों तो ऐसे दावों को स्थापित करने के लिए उसे पर्याप्त नहीं माना जा सकता।

नोटिस की आवश्यकता और प्रक्रिया हालिया कुछ फैसलों में जब्ती की प्रक्रिया संबंधी पहलुओं के बारे में विस्तार से स्पष्ट किया गया है। सीमा जितेंद्र लोंगानी बनाम सिटीकॉर्प फाइनेंस (2024) मामले में आयोग ने फाइनेंस कंपनी की कार्रवाई को सही ठहराया, जिसने जब्ती से पहले व्यवस्थित नोटिस जारी किए गए थे। फाइनेंस कंपनियों को डिफॉल्ट नोटिस जारी करने चाहिए, जिसमें यह स्पष्ट रूप से बताना जरूरी है कि बकाया राशि कितनी है और उसे चुकाने के लिए उचित समय भी प्रदान किया जाना चाहिए। साथ ही कर्जदाता के साथ किए गए सभी कम्युनिकेशन का दस्तावेजीकरण भी किया जाना चाहिए। इस निर्णय ने जोर दिया कि प्रक्रिया का पालन करने से फाइनेंसर और कर्जदाता दोनों के हितों तथा अधिकारों की रक्षा होती है।

प्रक्रियाओं का पालन और मुआवजा मैग्मा फिनकॉर्प लिमिटेड बनाम राजेश कुमार तिवारी (2021) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर राष्ट्रीय आयोग ने एचडीएफसी बैंक लिमिटेड बनाम सैयद मुशीर अब्बास (2024) प्रकरण में महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित किए। कर्ज के भुगतान में चूक होने पर फाइनेंस कंपनियों को वाहन जब्त करने का अधिकार होता है, लेकिन प्रक्रिया कानूनन और अच्छी तरह से डॉक्यूमेंटेड होनी चाहिए। आयोग ने कर्जदाता के डिफाल्टर होने के बावजूद उचित नोटिस न दिए जाने पर कर्जदाता को मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया। इसने यह स्थापित किया गया कि डिफाल्ट होने वाले मामलों में भी प्रक्रियात्मक खामियों के कारण वित्तीय कंपनियों पर जुर्माना लगाया जा सकता है।

कर्जदाताओं के लिए क्या जरूरी?

कर्जदाता कर्ज की राशि के भुगतान का रिकॉर्ड रखें और डिफॉल्ट नोटिस का तुरंत जवाब देना आवश्यक है। यदि अवैध जब्ती का सामना करना पड़े तो तत्काल पुलिस शिकायत करें। उपभोक्ता अदालतों में अपने केस को पुख्ता बनाने के लिए पूरी घटना का उचित दस्तावेजीकरण महत्वपूर्ण हो जाता है। हालिया फैसलों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अदालतें जब्ती के दावों को साबित करने के लिए ठोस सबूत मांगती हैं, न कि केवल आरोप।

(लेखक सीएएससी के सचिव भी हैं।)

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