देवदत्त पट्टनायक2 घंटे पहले
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अहल्या को मुक्त करते श्रीराम की अति प्राचीन प्रतिमा। यह प्रतिमा नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हुई है।
एक लोकप्रिय धारावाहिक में राम की बड़ी बहन ‘शांता’ को दर्शाया गया है। वाल्मीकि रामायण के बालकांड के अनुसार वे दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं। उन्हें अंग के राजा रोमपद को दत्तक दे दिया गया था। उन्होंने ऋश्यशृंग ऋषि से विवाह किया, जिन्होंने वह यज्ञ किया जिससे राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए थे। यह कहानी बाद की लोक रामायणों में विस्तारपूर्वक वर्णित है। उदाहरणार्थ, आंध्र प्रदेश के लोकगीतों में शांता एक महत्वपूर्ण शख्यियत थीं, जिन्होंने पारिवारिक अनुष्ठानों में भाग लिया था।
क्या यह बाद में की गई कल्पना है? वास्तव में आज हम जिन कई कहानियों को रामायण का भाग मानते हैं, वे दो हजार वर्ष पहले उसे संस्कृत में लिखित रूप दिए जाने तक उसका भाग नहीं थीं। लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला की कहानी, जिसमें वे चौदह वर्ष तक लक्ष्मण की ओर से सोती रहीं, मेघनाद की पत्नी कुलीन सुलोचना की कहानी, जो रणभूमि से अपने पति का शव ले आई और लक्ष्मण-रेखा की लोकप्रिय कहानी, ये सभी पहली बार क्षेत्रीय और लोक रामायणों में बताई गईं, जो करीब हजार वर्ष पहले ही रची गई हैं।
इसी समय महाभारत को भी लिखित रूप दिया गया। उसमें रामोपाख्यान अर्थात राम की कहानी है, जो मार्कण्डेय ऋषि ने पांडवों को बताई। उसमें ब्रह्मा ने दुंदुभी नामक गंधर्वी को मंथरा के रूप में पुनर्जन्म लेकर कैकेई के मन में विष घोलने के लिए कहा, ताकि राम वन में जाकर रावण का वध कर सकें। यह कहानी वाल्मीकि रामायण में नहीं पाई जाती है।
हाल ही में कोलकाता में कुछ विद्वानों को वन्हि पुराण की छठीं सदी की रामायण मिली, जिसमें पारंपरिक सात कांड के बजाय केवल पांच कांड हैं। उसकी शुरुआत में दशरथ ने राम को राजा बनाने का निर्णय लिया। फिर सीता का अपहरण हुआ, जिसके बाद राम ने रावण का वध करके सीता को बचाया। अंत में राम का राज्याभिषेक हुआ। इस वर्णन में राम द्वारा सीता को त्यागने का कोई उल्लेख नहीं है।
जैन रामायण के अनुसार कैकेई उदार थीं। राम कैकेई के पुत्र भरत को वन में जाने से रोकने के उद्देश्य से स्वयं वन में जाकर तपस्वी बन गए। इस रामायण में रावण का लक्ष्मण के हाथों वध हुआ, जबकि राम जैन धर्म की शिक्षाओं के अनुसार अहिंसक बने रहे।
5वीं और 10वीं सदियों के बीच राम को महान राजा, महान नायक और विष्णु का अवतार दिखाया गया। लेकिन दसवीं सदी के बाद एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ। राम को परमात्मा माना जाने लगा और उनकी कहानी अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में बताई गई: तमिल, तेलुगु, कन्नड़, ओडिशा, बंगाली, मराठी और अंत में 15वीं सदी के बाद अवधी जैसी उत्तर भारतीय भाषाओं में। अवधी में रचित रामचरितमानस में तुलसीदास ने दिखाया कि कैसे राम और रावण दोनों शिव तथा शक्ति के पूजक थे। इससे उन्होंने उस समय शिव और विष्णु भक्तों के बीच तथा वैदिकों और तांत्रिकों के बीच की प्रतिद्वंद्विता को कम करने का प्रयास किया।
समय के साथ रामायण की कई कहानियां बदली हैं। वाल्मीकि रामायण में अहल्या गौतम ऋषि के श्राप से अदृश्य बन गई थीं। अगली रामायणों में वे एक पत्थर में बदल गईं और राम के पैर के स्पर्श से श्राप से मुक्त हुईं। वाल्मीकि रामायण में शबरी राम से मातंग आश्रम में मिली। शबरी का राम को बेर खिलाने वाली आदिवासी या ‘निम्न’ जाति की महिला के रूप में उल्लेख केवल 18वीं सदी के बाद भक्ति परंपरा में हुआ। इन बदलावों से यह स्पष्ट है कि भारतीय समाज में महिलाओं का दर्जा बदल रहा था, जाति व्यवस्था का महत्व बढ़ गया था और कैसे इन सामाजिक-राजनीतिक संबंधों में परमात्मा की अपनी जगह थी।
किन्नर समुदाय की भी अपनी मौखिक रामायण है। उसके अनुसार जब राम लंका से लौटे, तब उन्होंने पाया कि कुछ किन्नर अयोध्या के बाहर रह रहे थे। पूछने पर उन्होंने राम से कहा कि जब वे (राम) अयोध्या छोड़कर वन में रहने जा रहे थे, तब उन्होंने उनका पीछा कर रहे पुरुषों और स्त्रियों को अयोध्या लौटने के लिए कहा। लेकिन राम ने किन्नरों से कुछ नहीं कहा, जो न पुरुष हैं और न ही स्त्री। इसलिए ये किन्नर अयोध्या के बाहर राम के लौटने तक रुके रहे, इस आशा में कि राम उन्हें अयोध्या ले जाएंगे। इस प्रकार, रामायण को उदारता का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है।