रूमी जाफरी3 घंटे पहले
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‘बाजीगर’ के एक दृश्य में शाहरुख खान और काजोल। इसे कई फिल्म फेयर अवार्ड मिले थे।
हमारे देश की पहचान पूरी दुनिया में सबसे अलग है। अनेकता में एकता हमारी सबसे बड़ी विशेषता है। हमारे मुल्क में अनेक धर्म हैं, अनेक भाषा हैं, अनेक त्योहार हैं, हर त्योहार का अपना महत्व है, अपनी सुंदरता है। खास तौर पर हमारी फिल्म इंडस्ट्री हर त्योहार को बहुत मिल-जुलकर मनाती है। दो दिन पहले होली का त्योहार मनाया गया। इस मौके पर सभी पाठकों को होली की बहुत बधाइयां।
अभी रमजान चल रहे हैं, इसलिए मेरे हिस्से के किस्से में आज कुछ किस्से रमजान से जुड़े हुए साझा करता हूं। रमजान के महीने में फिल्म शूटिंग के दौरान हर शाम को यूनिट में रोजा इफ्तार का प्रबंध किया जाता है और सारे लोग भले ही किसी का रोजा हो या ना हो, सब साथ मिलकर इफ्तार करते हैं। मेरी फिल्म थी ‘रंग’ जिसमें जितेंद्र, अमृता सिंह, कमल सदाना, दिव्या भारती, आयशा जुल्का, कादर खान वगैरह थे। संगीत नदीम श्रवण का था। फैसला किया गया कि मुहूर्त गाने की रिकॉर्डिंग से करेंगे। मगर गाने की रिकॉर्डिंग की डेट मिली सनी सुपर साउंड में रमजान में रोजों के दरमियान। तो प्रोड्यूसर मंसूर सिद्दिकी ने सनी सुपर साउंड में मुहूर्त में सभी को रोजा इफ्तार करवाने का तय किया। सनी सुपर साउंड धरम जी का स्टूडियो है। वहां की पार्किंग से सब गाड़ियां बाहर निकाल दी गईं और रोजे इफ्तार और नमाज का प्रबंध किया गया। मेरे खयाल से पहली बार इंडस्ट्री में किसी रिकॉर्डिंग स्टूडियो में गाने का मुहूर्त हुआ, वह भी रोजा इफ्तार और नमाज के साथ। ये खासियत है हमारी फिल्म इंडस्ट्री की ।
मुझे रमजान का एक बहुत दिलचस्प किस्सा भी याद आ रहा है। हमारी एक फिल्म थी। उसकी शूटिंग करने हम आउटडोर गए और एक फाइव स्टार होटल में रुके। रमजान के रोजे चल रहे थे। यूनिट में कई लोग थे, जिनका रोजा था। तो प्रोड्यूसर साहब ने उनसे कहा कि रात को 4 बजे सहरी के वक्त तुम लोग रूम सर्विस से आर्डर करोगे। क्या मांगोगे? बर्गर, पिज्जा, सैंडविच! फिर बोले कि रमजान का मजा तो गरमा-गरम भजिये खाने में है। हम लोगों ने कहा कि हम होटल वाले से कह देंगे तो वो यह भी बना देगा। तो वो बोले कि फाइव स्टार होटल में वो टेस्ट कहां आता है जो घर के बने हुए, घर के तले हुए गरम-गरम पकोड़ों में और कबाब में आता है। तो हमने कहा कि अब फाइव स्टार होटल में घर के बने हुए गरमा-गरम भजिये और कबाब कहां से मिलेंगे? वो बोले कि देखो, मैं चुपचाप छुपाकर इलेक्ट्रिक सिगड़ी, तेल, कड़ाही और भजिया बनाने का पूरा सामान रूम में ले आता हूं। तुम्हारी भाभी तुमको गरमा-गरम भजिये तलकर खिलाएंगी। तो हमने कहा, वाह भाई, यह तो अच्छा आइडिया है।
तो रात को हमारी भाभी जान ने तैयारी शुरू की, सब्जियां काटी और तड़के सहरी के वक्त इलेक्ट्रॉनिक सिगड़ी जमीन पर रखकर गरम-गरम भजिये, कबाब तलकर सबको खिलाए। तभी देखा कि सिगड़ी के नीचे से धुआं आ रहा है। जब सिगड़ी उठाकर देखी तो पता चला कि नीचे का जो कारपेट था, वह सिगड़ी की गर्मी से पूरी तरह से जल गया था। फिर बाद मंे हमको यह भी पता चला कि जो प्रोड्यूसर साहब हमको भजिये खिलाना चाह रहे थे, वह मोहब्बत की वजह से नहीं, बल्कि पैसे बचाने की वजह से ऐसा कर रहे थे। तो पैसे बचाने की चाहत में उनको कारपेट की कीमत देनी पड़ी जो पूरी यूनिट के खाने से भी कहीं ज्यादा महंगी साबित हुई। तो पैसे बचाने के चक्कर में उन्होंने रुपयों में आग लगा दी। इसी बात पर मुझे अल्लामा इकबाल का एक शेर याद आ रहा है:
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक्ल लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
रमजान का एक और यादगार किस्सा, जो मुझको अब्बास और मस्तान भाई ने सुनाया था, याद आ रहा है। उन्होंने बताया था कि 1994 में जब फिल्म फेयर अवार्ड हुए, उस वक्त रमजान के रोजे चल रहे थे। हमारी ‘बाजीगर’ कई केटेगरी में नॉमिनेटेड थी, इसलिए हम अवार्ड फंक्शन में गए। बाजीगर को कई अवार्ड मिले। लेकिन अवार्ड जैसे ही खत्म हुए, हम (अब्बास भाई, मस्तान भाई) वहां से फौरन भाग गए, क्योंकि रोजे चल रहे थे। हम घर पहुंच गए, रोजा-इफ्तार किया और फिर आराम करने लगे। अब्बास भाई ने बताया, सुबह चार या साढ़े चार बजे दरवाजे पर नॉक हुई। मेरी वाइफ ने दरवाजा खोला तो हैरान रह गईं। हमको बुलाया और कहा कि देखो कौन आया है। हमने देखा कि शाहरुख खान फिल्म फेयर की ट्रॉफी लिए खड़े हैं। उनके साथ में रतन जैन और उनके भाई, अनु मलिक और 10-15 और लोग भी खड़े हुए थे। हम सब बाहर आए और बहुत इमोशनल हो गए। शाहरुख बोले कि अब्बास भाई, मस्तान भाई, ये अवार्ड जो मुझे मिला है, ये आप लोगों की वजह से मिला है। जब तक आपकी दुआएं न ले लूं, तब तक घर नहीं जाऊंगा। शाहरुख बोले, मैंने सोच लिया था कि पहले आपको ये अवार्ड दिखाऊंगा, फिर गौरी को दिखाऊंगा।
अब्बास भाई ने बताया, उस समय आसपास के कई लोग सहरी और नमाज के लिए तड़के उठे थे। तो वे सहरी का खाना छोड़कर हमारे घर के बाहर शाहरुख को देखने के लिए जमा हो गए। तकरीबन 2 हजार लोग थे।
रमजान की एक और अनोखी मिसाल आप लोगो को बताता हूं। हमारी फिल्म इंडस्ट्री में रमजान के दौरान किसी फिल्म की रिलीज नहीं की जाती, क्योंकि यह माना जाता है कि रमजान में फिल्म चलती नहीं है। लेकिन एक फिल्म से यह धारणा भी टूटी। इस फिल्म के प्रोड्यूसर थे नासिर हुसैन, डायरेक्टर थे मंसूर खान और हीरो थे आमिर खान। फिल्म का नाम था कयामत से कयामत तक। फिल्म सुपर डुपर हिट हुई। इसी बात पर बजरंगी भाईजान फिल्म का ये गीत सुनिए, अपना खयाल रखिए और खुश रहिए।
भर दो झोली मेरी या मोहम्मद, दर से तेरे न जाऊं मैं खाली…