रूमी जाफरी13 घंटे पहले
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कैफ भोपाली ने ‘चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो’ जैसे यादगार गीत लिखे थे। इसी गीत का एक दृश्य।
कुछ अरसा पहले मैंने कमर जलालाबादी और आनंद बक्शी जी पर कॉलम लिखा था। उसके बाद मुझे बहुत से लोगों ने मेसेज दिए, मेल किए। पर्सनली भी कहा कि आपको और भी गीतकारों के बारे में भी लिखना चाहिए। तो मैंने सोचा कि शुरुआत मैं अपने शहर भोपाल के बेहतरीन शायर, गीतकार और ‘चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो’ जैसे यादगार गीत लिखने वाले कैफ भोपाली से करूं।
मुझे याद है सुभाष घई जी के ससुर थे अख्तर फारूकी साहब। मेरी उनसे जब मुलाकात हुई और मैंने बताया कि मैं भोपाल से हूं तो वो खड़े हो गए और मुझे गले लगाकर बोले कि तुम उस भोपाल से हो, जहां से मेरे अजीज दोस्त, शायर कैफ भोपाली आते हैं। उन्होंने मुझे बताया कि मैं कमाल अमरोही साहब के यहां प्रोडक्शन में काम करता था। जब कैफ साहब गाना लिखने के लिए भोपाल से आते थे तो मेरी ही ड्यूटी लगती थी। कमाल साहब कहते थे कि अख्तर तुम्हें कोई और काम नहीं करना है। तुम ऑफिस स्टूडियो सब भूल जाओ, तुम्हारा एक ही काम है कि तुम कैफ साहब का खयाल रखो।
उनको बेहतरीन खाना खिलाओ, रात को सबसे अच्छे होटल में लेकर जाओ, बस उनको खुश रखो क्योंकि कैफ साहब मूडी आदमी थे और सिर्फ कमाल अमरोही के लिए ही गाने लिखते थे। अख्तर साहब बताते हैं, जब इंडस्ट्री में लोगों को पता लगा कि कैफ साहब से मेरी इतनी दोस्ती है तो शंकर जयकिशन, मदन मोहन, सलिल चौधरी, अनिल बिस्वास, बी आर चोपड़ा, यश चोपड़ा, रामानंद सागर, उस वक्त के जितने भी बड़े म्यूजिक डायेक्टर और डायरेक्टर थे, मुझे बोलते थे कि हमारी कैफ भोपाली से मीटिंग करा दो, हम उनसे गाने लिखवाना चाहते हैं। मगर कैफ साहब साफ मना कर देते थे और बोलते थे कि फिल्मों में गाने लिखना मेरा काम ही नहीं है। मैं शायर हूं और कमाल मेरा दोस्त है, तो सिर्फ उसके लिए गाने लिख देता हूं। अख्तर साहब ने बताया कि कमाल अमरोही से कैफ साहब अक्सर मजाक में कहते थे कि तुम अपना नाम गलत लिखते हो। तुम्हारा नाम होना चाहिए कमाल अमरोहवी और तुम लिखते हो अमरोही। कमाल साहब हंसकर जवाब देते थे कि मैं हमेशा कुछ अलग करता हूं, इसीलिए नाम भी अलग तरह से ही लिखता हूं।
अख्तर साहब ने बताया कि शराब को या शराबी को बुरा कहो तो कैफ साहब को बहुत बुरा लग जाता था। उन्होंने बताया कि एक शाम काम खत्म होने के बाद अंधेरा होने वाला था और हम सब निकलने के लिए कमाल स्टूडियो के गेट पर खड़े थे। तभी एक भिखारी आ गया। गंदे फटे कपड़े, बाल उलझे हुए और आकर सीधा कमाल साहब और कैफ साहब की तरफ देखा और नजदीक आकर बोला कि साहब खाने को नहीं है, कुछ पैसे दे दो खाना खा लूंगा। जैसे ही उसने यह सब बोला, उसके मुंह से सस्ती शराब की बड़ी गंदी सी बदबू आई। कमाल साहब ने इसी बात पर उसको डांट दिया, तेरे पास खाने के पैसे नहीं हैं और शराब पीने के हैं, शराबी कहीं का, जा यहां से। जैसे ही कमाल साहब ने ये कहा, कैफ साहब को बुरा लग गया और उसी वक्त उन्होंने शेर सुनाया –
शाइस्तगान-ए-शहर मुझे ख्वाह कुछ कहें सड़कों का हुस्न है मिरी आवारगी के साथ
1991 की बात है। लिखने की मेरी शुरुआत हो रही थी। मैं साजिद नाडियाडवाला के लिए एक लव स्टोरी लिख रहा था, जिसका नाम था चांद चकोरी। मैंने साजिद से कहा कि गाने कैफ साहब से लिखवाएंगे तो साजिद ने कहा ठीक है। वहां पर एक राइटर फैज साहब बैठे हुए थे। उन्होंने कहा कि कैफ साहब तो कमाल अमरोही के सिवाय किसी और के लिए लिखते ही नहीं हैं। मैंने कहा कि मैं भोपाली हूं, उनको राजी कर लूंगा। मैं भोपाल जा रहा हूं, उनसे हां कराकर ही लौटूंगा।
मैं भोपाल पहुंचा। एयरपोर्ट से घर पहुंचा तो सामने टेबल के ऊपर अखबार रखा हुअा था। अखबार के सबसे पहले पेज पर कैफ भोपाली की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के साथ फोटो छपी थी और उस पर लिखा था कि कैफ भोपाली की तबीयत बहुत खराब है। वो अस्पताल में भर्ती हैं और उन्हें देखने प्रदेश के मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा पहुंचे हैं। मैंने वो फोटो देखी तो मुझे बहुत दुख हुआ। मैंने उनकी अच्छी सेहत की दुआ मांगी। शाम को रेडियो स्टेशन का ऑल इंडिया मुशायरा था। मैं वहां पहुंचा। वहां बड़े-बड़े शायर थे। शेरी भोपाली सदारत कर रहे थे। अचानक हलचल हुई तो देखा की कैफ साहब मुशायरे में लाए गए। मैं हैरान रह गया। उन्हें तीन चार तकिये लगाकर बैठा दिया गया। उनका वजन काफी गिर गया था। शेरी साहब ने कहा, ‘ये कैफ उम्र में मुझसे बहुत छोटा है। आप लोग इसकी सेहत की दुआ करो। मैं तो जी चुका हूं, अब इसे जीना है और बहुत अच्छे-अच्छे शेर कहना है।’
वहां मौजूद सब ये सोच रहे थे कि कैफ साहब आज बीमारी की हालत में शेर कैसे पढ़ेंगे, मगर जब कैफ साहब के सामने माइक लाया गया और उन्होंने पढ़ना शुरू किया तो ऐसा समां बांधा कि लोग भूल ही गए कि कैफ साहब बीमार हैं। वो कैफ साहब से फरमाइश पर फरमाइश करते जा रहे थे और कैफ साहब गजल और शेर सुनाए चले जा रहे थे। मेरे खयाल से वो कैफ साहब का आखिरी मुशायरा था। वो चले गए मगर उनका कलाम जिंदा है। उनकी बेटी परवीन कैफ बहुत अच्छी शायरा हैं और कैफ साहब का काम और नाम आगे बढ़ा रही हैं। कैफ भोपाली की याद में फिल्म ‘शंकर हुसैन’ का ये गाना सुनिए, अपना खयाल रखिए और खुश रहिए। अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं चौंकते हैं दरवाजें सीढ़ियां धड़कती हैं…