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4 घंटे पहले
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राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार
एक समय था, जब हिंदी पट्टी में राजनीति के अपराधीकरण को लेकर फिल्मों में गाने बनाए जाते थे और उनमें ‘यूपी-बिहार लूटने’ के संकेत किए जाते थे। उत्तर-भारत के दोआब में नेताओं और अपराधियों के गठबंधन से निर्मित ‘कैश-एंड-कैरी’ राजनीति लोकप्रिय-संस्कृति के जुमलों को प्रेरित करती थी।
इस पर उत्तर प्रदेश और बिहार के राजनेता यह कहते हुए भड़क भी जाया करते थे कि उनके व्यक्तित्व का खाका दबंगों और बाहुबलियों के रूप में खींचा जा रहा है, वहीं देश के दूसरे हिस्सों के लोग यही मानकर राहत की सांस लेते थे कि कम से कम उनके यहां तो ऐसा जंगल-राज नहीं है।
लेकिन अब स्पष्ट है कि अपराध का राजनीतिकरण कुछ राज्यों तक ही सीमित नहीं रह गया है। पिछले सप्ताह वायरल हुए एक वीडियो में दिखाया गया था कि कैसे महाराष्ट्र के बीड जिले के एक गांव में आरोपियों ने एक सरपंच संतोष देशमुख की डंडों से पिटाई की, उन्हें प्रताड़ित किया और उनकी हत्या करने से पहले उसके शरीर पर पेशाब भी की।
यह लोमहर्षक हत्या कैमरे में कैद हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे आरोपियों में इतना दु:साहस था कि वे ऐसा करके लोगों के सामने अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहे थे। महाराष्ट्र को झकझोर देने वाले इस मामले का मुख्य आरोपी राज्य के मंत्री धनंजय मुंडे का प्रमुख सहयोगी है। यह हत्या दिसंबर के प्रारम्भ में हुई थी, लेकिन वीडियो अभी सामने आए हैं। जनाक्रोश भड़कने पर मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा है।
धनंजय मुंडे दिवंगत भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे के भतीजे हैं। 49 वर्षीय धनंजय कभी भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष थे। 2013 में वे पार्टी से इस्तीफा देकर राकांपा में शामिल हो गए और बीड के अपने पारिवारिक गढ़ परली से चचेरी बहन पंकजा मुंडे के खिलाफ चुनाव लड़ा।
उन्होंने अपने चाचा की छत्रछाया में राजनीतिक करियर शुरू किया था, लेकिन बाद में उन्हें शरद पवार का वरदहस्त मिला। 2021 में दुष्कर्म की शिकायत सहित कई विवाद उनके इर्द-गिर्द घूमते रहे। 2023 में महायुति सरकार का हिस्सा बनने के लिए मुंडे ने चतुराई से अजित पवार का पक्ष ले लिया।
लेकिन सरपंच की जघन्य हत्या के बाद मुंडे को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा है। हत्या के मुख्य आरोपी वल्मीक कराड ने वर्षों तक मुंडे के निर्वाचन-क्षेत्र का प्रबंधन किया है। और दोनों के व्यापारिक हित कथित तौर पर समान हैं।
हालांकि, विलम्ब से दिया गया एक इस्तीफा इस हकीकत को नहीं छिपा सकता कि देश के कई हिस्सों में राजनीति एक आपराधिक उद्यम बन गई है। उपरोक्त मामले के आरोपी कथित तौर पर एक जबरन वसूली रैकेट चला रहे थे तथा इस क्षेत्र में निवेश करने वाली मुम्बई स्थित पवन ऊर्जा कम्पनी से पैसे की मांग कर रहे थे। जब साहसी सरपंच ने हस्तक्षेप कर जबरन वसूली को रोकने की कोशिश की तो उन्हें रास्ते से हटा दिया गया। क्या राजनीतिक संरक्षण बिना आरोपी इस तरह से बेखौफ होकर वारदात को अंजाम दे सकते थे?
बीड महाराष्ट्र और देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। मराठवाड़ा का यह सूखाग्रस्त क्षेत्र दक्षिणी महाराष्ट्र के समृद्ध चीनी क्षेत्र के लिए लगभग 70 प्रतिशत कृषि-श्रम उपलब्ध कराता है। बीड में कई परिवार काम की तलाश में अन्य क्षेत्रों में पलायन करते हैं, विशेषकर गन्ना कटाई के मौसम में।
आय के सीमित स्रोतों ने कर्ज और गरीबी का ऐसा दुष्चक्र खड़ा कर दिया है, जिससे बीड खुद को बाहर निकालने में असमर्थ रहा है। ऐसे में कई बेरोजगार युवाओं के लिए अपराध एक आकर्षक विकल्प बन जाता है। पड़ोसी औरंगाबाद के एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया कि बीड में पिछले कुछ वर्षों में ऐसी कई ‘राजनीतिक’ हत्याएं हुई हैं।
यही कारण है कि बीड में हुआ ‘महा-अपराध’ एक और ऐसा वेकअप-कॉल बन गया है, जिसकी महाराष्ट्र और वास्तव में पूरे देश को सख्त जरूरत है। लुम्पेन-राजनीति की इमारत पर ‘मैग्नेटिक महाराष्ट्र’ या ‘विकसित भारत’ का निर्माण शायद ही किया जा सकता है।
दु:ख की बात है कि ‘5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था’ जैसे चमकीले नारों के नीचे छिपी देश की स्याह हकीकतों की ओर लोगों का ध्यान नहीं खींचा जा रहा है। बीड वह पिछड़ा इलाका है, जो गरीबी, अपराध, सत्ता की राजनीति और ध्वस्त पुलिस-व्यवस्था में फंसा हुआ है। लेकिन वह इकलौता ऐसा इलाका नहीं है।
बीड की तरह भारत के कई अन्य कोने-अंतरे हैं, जहां स्थानीय माफिया और उनके राजनीतिक आका अभी भी अपना दबदबा कायम रखते हैं। शहरी क्षेत्रों में सफेदपोश अपराधी तुलनात्मक रूप से अधिक परिष्कृत होते हैं, लेकिन बीड जैसे धूल भरे इलाकों में तो बंदूक का ही बोलबाला रहता है।
पांच सितारा होटलों में भव्य निवेश शिखर सम्मेलन आयोजित करने के बजाय हमारी सरकारों को प्रत्येक जिला मुख्यालय में कानून-व्यवस्था पर बैठकें आयोजित करनी चाहिए, जहां यह स्पष्ट संदेश दिया जाए कि कानून तोड़ने वालों के प्रति जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी, फिर चाहे उनका राजनीतिक रसूख जो भी हो।
पुनश्च : मरीन ड्राइव पर सुबह की सैर के दौरान मेरी मुलाकात एक सेवानिवृत्त आईएएस से हुई, जिन्होंने कहा कि बीड में जो कुछ हुआ, उससे वे आश्चर्यचकित नहीं हैं। उन्होंने आगे जोड़ा, पहले राजनेता अपराधियों से दोस्ती करते थे, अब अपराधियों ने राजनीति पर कब्जा कर लिया है!
कानून तोड़ने वालों पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएं हमारी सरकारों को जिला मुख्यालयों में कानून-व्यवस्था पर बैठकें आयोजित करनी चाहिए, जहां स्पष्ट संदेश दिया जाए कि कानून तोड़ने वालों पर जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी, चाहे उनका राजनीतिक रसूख जो भी हो। (ये लेखक के अपने विचार हैं)